उच्च के शनि ने बनाया शिवाजी को छत्रपति
The exalted Saturn makes Shivaji the Chhatrapati
प्रकाशन तिथि - अप्रैल, 2007
छत्रपति शिवाजी के जन्मकाल को लेकर इतिहासकारों में काफी विरोध रहा है| सर जादुनाथ सरकार आदि कई इतिहासकारों ने शिवाजी का जन्म 20 अप्रैल, 1627 ई. को माना है, किन्तु ज्योतिष के प्रसिद्ध विद्वान् बी.वी. रमन ने विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इनकी जन्म तिथि 19 फरवरी, 1630 ईस्वी निर्धारित की है| जून, 1674 ई. में शिवाजी ने मराठा राज्य की स्थापना कर स्वयं राजसिंहासन संभाला| छत्र धारण कर वे छत्रपति शिवाजी कहलाए|
शिवाजी के पिता का नाम शाहजी और माता का नाम जीजाबाई था| इन्होंने पुत्र कामना हेतु मॉं भवानी से मनौती मॉंगी| इसी कारण पुत्र जन्म के बाद उसका नाम शिवाजी रखा| शिवाजी बचपन से ही बुद्धिमान्, सहनशील, आज्ञाकारी तथा हर कार्य में प्रवीण थे| कुछ ही समय बाद शाहजी ने दूसरा विवाह कर लिया, तो जीजाबाई अपने पुत्र को लेकर पूना के पास छोटी-सी जागीर में रहने लगीं| शिवाजी अधिक पढ़ नहीं सके थे, किन्तु उनकी मॉं ने ही भारतीय धर्म, संस्कृति और संस्कारों का ज्ञान कथाओं के माध्यम से कराया| इसी कारण शिवाजी के व्यक्तित्व पर उनकी मॉं का बहुत अधिक प्रभाव था| शाहजी के एक विश्वस्त कर्मचारी दादाजी कोंडदेव जो जागीर प्रबंधक थे, वे ही शिवाजी के संरक्षक बने| शिवाजी उनका पिता तुल्य सम्मान किया करते थे| कोंडदेव ने ही शिवाजी को राजनीति, युद्ध तथा कूटनीति की पूरी शिक्षा दी| दादाजी कोंडदेव ने ही उनको अत्यन्त बलशाली, वीर और सामरिक कलाओं में निपुण बनाया था| तत्पश्चात् शिवाजी के गुरु रामदास ने उनको कुशल राजनीतिज्ञ, धर्मानुकूल शासक, वीर और राष्ट्र निर्माता के रूप में प्रशिक्षित किया| एक साधारण सामन्त के पुत्र शिवाजी ने अपनी बुद्धि और भाग्य के माध्यम से स्वयं को विकसित कर हिन्दू आत्मसम्मान और गौरव को जागृत किया, संगठित किया और दिल्ली के बादशाह के सामने चुनौती रखी| 16 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने आस-पास के किलों पर हमला कर उन्हें जीतना आरम्भ कर दिया था| 16 वर्ष की आयु से ही शिवाजी छापामार युद्ध के द्वारा कोंकण, जावली, सिंहगढ़, औरंगाबाद ओर सूरत के किले जीत लिए| काफी क्षेत्र पर कब्जा कर लेने के बाद उन्होंने मराठा राज्य घोषित किया और सिंहासन पर विराजमान हुए|
राशि कुंडली
नवांश कुंडली
प्रसिद्ध ज्योतिष-विद्वान् बी.वी. रमन के अनुसार शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 ईस्वी को सायंकाल में सिंह लग्न और धनु नवांश में हुआ था|
इनका जन्म नक्षत्र चित्रा तथा जन्म राशि कन्या है| चन्द्रमा वर्गोत्तमी होकर अत्यन्त बलवान् स्थिति में है तथा उस पर धनेश और लाभेश बुध की दृष्टि है| मन के स्वामी चन्द्रमा तथा वाणी के स्वामी बुध के श्रेष्ठ सम्बन्धों के कारण ही शिवाजी अपने जीवन में इतने सफल हुए| नवांश लग्न में उच्च के बुध की चन्द्र से युति ने शिवाजी को इतना बड़ा कूटनीतिज्ञ बनाया|
लग्नेश की लग्न पर दृष्टि तथा गुरु की भी लग्न पर दृष्टि होने से शिवाजी इतने बलिष्ठ तथा पराक्रमी देह वाले और प्रसिद्ध थे| षष्ठेश एवं सप्तमेश शनि के तृतीय भाव में उच्च का होने के कारण शिवाजी ने सभी शत्रुओं का शमन किया| तृतीयेश शुक्र की अपने भाव पर दृष्टि से वे महान् पराक्रमी हुए|
योगकारी ग्रह गुरु पंचमेश तथा अष्टमेश होकर सप्तम भाव में स्थित है तथा नवांश में स्वराशिगत है| गुरु का कुंडली में मध्यम फल होने के कारण शिवाजी की शिक्षा बचपन में जरूर कमजोर रही, लेकिन उत्तरोत्तर अवस्था में माता और गुरु के आशीर्वाद से वे राज विद्या में प्रवीण हो गए थे|
शनि-शुक्र का नवम भाव से सम्बन्ध तथा इनका परस्पर सम्बन्ध होने के कारण शिवाजी मॉं भवानी के भक्त थे| तभी तो 16 वर्ष की आयु में जैसे ही राहु की महादशा में शुक्र का अन्तर आया उन्होंने तोरण नामक किले पर विजय प्राप्त कर ली|
सिंह लग्न में योगकारी ग्रह मंगल होता है| शिवाजी की कुंडली में मंगल राहु से युति कर एकादश भाव में स्थित है| मंगल-राहु की युति जातक को बहुत बड़ा कूटनीतिज्ञ बनाती है| मंगल की स्थिति अत्यधिक बली नहीं होने के कारण तथा अष्टमेश गुरु की स्थिति भी थोड़ी कमजोर होने के कारण कम उम्र में ही शिवाजी का स्वर्गवास हो गया था|
गुरु की तृतीय भाव में स्थित शनि, लाभ भाव पर स्थित मंगल तथा लग्न पर दृष्टि होने के कारण उन भावों के फलों में वृद्धि हुई|
जब शिवाजी ने 38 वर्ष की आयु पूर्ण की, तो उन्हें शनि की महादशा प्रारम्भ हुई| कुछ ही समय बाद शनि ने उन्हें सम्राट् बनाया| 7 जून, 1674 को शिवाजी हिन्दू रीति के अनुसार राजगद्दी पर बैठे| लगभग छह वर्ष पश्चात् 3 अप्रैल, 1680 को शनि में मंगल का अन्तर आने पर शिवाजी का स्वर्गवास हो गया|