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कुण्डली में गुरु-केतु के सम्बन्ध से होता है सर्वाधिक विकास

25-April ,2023 | Comment 0 | Dr. Laxmi Narayan Sharma 'Mayank'

कुण्डली में गुरु-केतु के सम्बन्ध से होता है सर्वाधिक विकास

कुण्डली में गुरु-केतु के सम्बन्ध से होता है सर्वाधिक विकास

नवग्रहों के परिवार में केतु नौवाँ ग्रह है। यह यद्यपि राहु की तरह छाया ग्रह है, लेकिन इसके स्वतंत्र परिणाम भी अनुभव में आते हैं। जन्मकुंडली में कालपुरुष की जो कल्पना की गई है, उसमें केतु को राहु एवं शनि के समान ही कालपुरुष का दु:ख माना गया है। केतु को अंग्रेजी भाषा में ‘ड्रेगन्स टेल’ और ‘डिसेंडिंग नोड’; उर्दू, फारसी और अरबी में ‘जनब’ कहते हैं। यह निम्नलिखित का कारक होता है : मोक्ष, शिवोपासना, डॉक्टरी कुत्ता, मुर्गा, ऐश्वर्य, टीबी, पीड़ा, ज्वर, तप, वायुविकार, स्नेह, सम्पत्ति का हस्तान्तरण करने वाला, पत्थर की चोट, काँटा, ब्रह्मज्ञान, आँख का दर्द, अज्ञानता, भाग्य, मौनव्रत, वैराग्य, भूख, उदरशूल, सींगों वाले पशु, ध्वज, शूद्रों की सभा, बन्धन की आज्ञा को रोकना, जमानत आदि का।
जब यह कुंडली में बलवान् होता है, तो उपर्युक्त पदार्थों की प्राप्ति होती है और सम्बन्धित घटनाओं, बीमारियों आदि से रक्षा करता है। यह व्यक्ति के जीवन में 48 से 54वें वर्ष तक विशेष प्रभाव डालता है। केतु ग्रह से प्रभावित व्यक्ति निम्नलिखित व्यवसायों में सफल रहते हैं : जासूसी, औषधि विक्रय, पुरातत्व विभाग, योग विद्या, आविष्कार, संचार विभाग, ड्राइवर, रबड़ उद्योग, चिकित्सा, पर्यटन, कलाकार, अध्यात्म, अनुवादक, धर्म गुरु, भविष्यवक्ता, िफल्म व्यवसाय और कैमिकल इंजीनियरिंग आदि। वे अन्य पदार्थों से सम्बन्धित व्यवसायों से भी लाभ कमा सकते हैं। 
केतु को मोक्ष का कारक भी माना जाता है, अत: केतु का शुभ स्थिति में होना या गुरु के साथ होना शुभ फलदायक होता है। उसे इस लोक में आध्यात्मिक सफलता देता है एवं मृत्यु के पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति  करवाता है। यदि इसके साथ शनि और बुध ग्रह का लग्न या लग्नेश से शुभ सम्बन्ध हो, तो विशेष लाभ मिलता है। केतु ग्रह धनु राशि में 15 अंश तक उच्च का, मिथुन राशि में 15 अंश तक नीच का, मकर राशि में मूल त्रिकोण का, मतान्तर से वृषभ राशि में और मीन राशि में स्वराशि का होता है। कुंडली में बारह भावों में से 3, 6, 10 और 11वाँ भाव शुभ, 1, 2, 5, 7 और नौवाँ भाव अरिष्ट कारक और 4, 8, 12वाँ अत्यन्त अरिष्टकारक होता है। यह गोचर में एक राशि पर 18 माह रहता है। इसकी महादशा 7 वर्ष रहती है। यदि केतु अपनी स्वराशि या उच्च राशि में हो, गुरु के साथ स्थित हो या गुरु से समसप्तक हो, तो व्यक्ति को सर्वाधिक प्रगति हैं। 
केतु जिस राशि के स्वामी ग्रह के साथ होता है, उसी के अनुसार फल देता है या जिस राशि में स्थित होता है, उस राशि के स्वामी का फल देता है। यदि कुंडली में केतु केन्द्रेश या त्रिकोणेश या दोनों के साथ युति बनाए, तो बहुत शुभ और प्रगतिकारक होता है। केतु का अर्थ ध्वजा भी होता है, अत: केतु जिस भाव से सम्बन्धित शुभ परिणाम देता है। उसे ध्वजा जैसी ऊँचाई तक ले जाता है। 
केतु गुरु के साथ होकर सर्वाधिक शुभ और प्रगतिदायक हो जाता है। चाहे वे धनु राशि में हों या मीन में हों अथवा गुरु से युति सम्बन्ध बनाता हो अथवा यदि गुरु उस कुंडली के लिए कारक ग्रह हुआ, तो िफर कहना ही क्या? ऐसी स्थिति में केतु अपनी महादशा में सर्वाधिक प्रगतिदायक हो जाता है। केतु आकस्मिकता का कारक ग्रह है, अत: यह जीवन में अच्छा या बुरा जो भी हो, अपनी स्थिति के अनुसार आकस्मिक फल देता है। गुरु एवं केतु दोनों ही ग्रहों की अपने से पंचम, नवम एवं सप्तम भावों पर दृष्टि होती है। उदाहरण कुंडलियों द्वारा गुरु-केतु का प्रभाव प्रस्तुत है :

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद; जन्म दिनांक : 3 दिसम्बर, 1884; जन्म समय : 08:45 बजे; जन्म स्थान : जीरादेई
जन्मपत्रिका

उपर्युक्त कुण्डली स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की है। यह धनु लग्न की कुंडली है। इस कुंडली में केतु चतुर्थ भाव में गुरु की राशि मीन में स्थित है। केतु की पूर्ण दृष्टि गुरु की उच्च राशि कर्क पर तथा कर्म भाव पर है और भाग्येश सूर्य पर है, अत: केतु के प्रभाव से वे राजनीति में विभिन्न प्रकार के संघर्ष को झेलते हुए देश के सर्वोच्च पद पर पहुँचे और दस वर्षों तक भारत के राष्ट्रपति रहे। धनु लग्न में चतुर्थ भाव में स्थित केतु व्यक्ति को भूमि, भवन, वाहन का सर्वोच्च सुख देता हैं। 

पं. जवाहर लाल नेहरू; जन्म दिनांक : 14 नवम्बर, 1889; जन्म समय : 23:06 बजे; जन्म स्थान : इलाहाबाद
जन्मपत्रिका


उपर्युक्त कुण्डली भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की है। कर्क लग्न की इस कुंडली में धनु राशि में गुरु और केतु की युति है। गुरु इस लग्न में प्रबल कारक अर्थात् भाग्येश होता है। गुरु और केतु की पंचम पूर्ण दृष्टि कर्म भाव पर और नवम पूर्ण दृष्टि धन भाव पर पड़ रही है। नेहरू के जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रहा। सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ उन्हें उपलब्ध हुयीं। चूँकि छठा भाव शत्रु का भाव है और उसमें गुरु-केतु की युति पड़ रही है, अत: नेहरू जी की शत्रुता उस समय की सर्वोच्च शक्ति ब्रिटिश साम्राज्य से रही और जिसे हराने में सफल रहे।

नजमा हेपतुल्ला; जन्म दिनांक : 13 अप्रैल, 1940; जन्म समय : 12:30 बजे; जन्म स्थान : मुंबई
जन्मपत्रिका

उपर्युक्त कुण्डली नजमा हेपतुल्ला की है। ये वर्षों तक राज्यसभा की उपाध्यक्षा रही हैं। इनका पूरा जीवन राजनीति के लिए समर्पित रहा है। इनको राजनीति में सर्वोच्चता दिलाने में गुरु-केतु की महती भूमिका है। इनकी (कर्क लग्न की) जन्म पत्रिका में गुरु नवम भाव में अपनी मीन राशि में केतु के साथ स्थित है। बुध भी इसी के साथ है। केतु ने गुरु और बुध दो शुभ ग्रहों के प्रभाव को बढ़ाया है। गुरु और केतु की संयुक्त पूर्ण दृष्टि लग्न पर, पराक्रम भाव पर और पंचम भाव पर है। इन ग्रहों ने अपने प्रभावित भावों को सर्वोच्चता पर पहुँचाया और जातक को सफलताएँ प्राप्त हुई। 

एडोल्फ हिटलर; जन्म दिनांक : 20 अप्रैल, 1889; जन्म समय : 18:30  बजे; जन्म स्थान : Braunau (Austria)
जन्मपत्रिका

उपर्युक्त कुण्डली जर्मनी के तानाशाह चांसलर हिटलर की है। ये अपने जीवन में गुरु-केतु की युति के कारण आकस्मिक घटनाओं के उदाहरण बने। अचानक राजनीति में आकर सर्वोच्च पद पर पहुँचे और द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बने, लेकिन अचानक ही इनकी जीवन लीला समाप्त हुई। तुला लग्न के लिए गुरु तृतीयेश और अष्टमेश होकर प्रबल अकारक होता है। केतु अपनी उच्च राशि में गुरु की राशि धनु में गुरु और चन्द्र के साथ है। पराक्रम भाव में इस ग्रह-युति ने हिटलर को प्रबल पराक्रमी बनाया और इसे पराक्रमी के साथ अति दुस्साहसी भी बना दिया, क्योंकि मन का कारक चन्द्रमा भी केतु के साथ में स्थित है। हिटलर ने सम्पूर्ण विश्व को द्वितीय विश्व युद्ध की आग में झौंक दिया। उसने विश्व को जीतने की योजना बना डाली। गुरु और केतु की पूर्ण दृष्टि मारक भाव में स्थित मंगल और सूर्य दोनों पर तथा लग्नेश और भाग्येश पर भी है। सूर्य और मंगल अग्नि कारक ग्रह हैं। इनका प्रभाव लग्न और लग्नेश पर भी है, अत: हिटलर ने स्वयं को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। जिस केतु ने उसको ऊँचाई पर पहुँचाया, उसी ने उसका अंत भी कर दिया। 

एच.डी. देवेगौड़ा; जन्म दिनांक : 18 मई, 1933; जन्म समय : 11:00 बजे; जन्म स्थान : हासन
जन्मपत्रिका

यह कुण्डली अचानक देश के सामने आए और प्रधानमंत्री बने एच.डी. देवेगौड़ा की है। राहु-केतु आकस्मिकता देने वाले ग्रह हैं, अत: एच.डी. देवेगौड़ा भले ही थोड़े समय के लिए ही सही, लेकिन देश का सर्वोच्च कार्यकारी पद उन्हें प्राप्त हुआ। कर्क लग्न की कुंडली में गुरु और केतु की युति पंचमेश और दशमेश के साथ द्वितीय भाव सिंह राशि में है। गुरु-केतु की संयुक्त पूर्ण दृष्टि गुरु की धनु राशि, मंगल के साथ चन्द्र लग्न पर और दशम भाव पर है, अत: एच.डी. देवेगौड़ा को अचानक प्रधानमंत्री के रूप में उच्च पद प्राप्त हुआ था। 
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि केतु अपने अर्थ ध्वजा की सार्थकता को सिद्ध करते हुए जन्मकुंडली की स्थिति के अनुसार शुभाशुभता को चोटी तक पहुँचा देता है।

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