Jaimini Astrology |

जैमिनि ज्योतिष और कॅरियर

14-September ,2021 | Comment 0 | gotoastro

जैमिनि ज्योतिष और कॅरियर

जैमिनि ज्योतिष और कॅरियर
Jaimini Astrology and Career
जून, 2007
भारतीय फलित ज्योतिष शास्त्र में महर्षि जैमिनि का विशिष्ट योगदान है| उन्होंने अपनी रचना ‘जैमिनि सूत्र’ में आजीविका जानने के लिए जो सूत्र दिए हैं, वे बड़े सटीक तथा प्रामाणिक हैं, परन्तु जैमिनि मत से किसी जातक का कॅरियर कैसा और क्या होगा, यह जानने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्यों को सदैव ही हृदयंगम रखना अनिवार्य है|
1. राशि दृष्टि : जैमिनि के मत से राशियों की दृष्टि राशियों पर होती है और उनमें बैठे हुए ग्रह राशि दृष्टि के अनुसार देखते हैं| जैमिनि मत से राशि दृष्टि का चक्र नीचे दिया जा रहा है :
जैमिनि मत से राशि दृष्टि का चक्र


2. कारक विचार : जैमिनि ने फलादेश के लिए कारक का विचार दिया है और उन्हें चरकारक नाम दिया है| सूर्यादि सात ग्रहों में राशि को छोड़कर जिस ग्रह के सर्वाधिक अंशादि होते हैं, उसे आत्मकारक कहते हैं| उससे कम अंशादि वाला ग्रह अमात्यकारक होता है| आत्म कारक ग्रह जिस नवांश में हो, उसे लग्न स्थान पर स्थापित कर शेष ग्रहों को उनके नवांश में रखने से कारकांश कुण्डली बनती है|
3. आरूढ़ लग्न (पद लग्न) का विचार : लग्न से लग्नेश जितने स्थान पर हो, उससे उतने ही स्थान आगे गणना करने पर लग्न का पद (आरूढ़) होता है| मान लीजिए मेष लग्न है तथा लग्नेश मंगल मिथुन राशि में बैठा है| तब मिथुन सहित गणना करने पर तीसरा स्थान सिंह होगा अत: सिंह पद (आरूढ़) होगा| सिंह को लग्न स्थान में रखकर शेष ग्रहों को यथास्थान रखकर कुण्डली बना लें| वही पद लग्न कुण्डली होगी|
4. चरराशि दशा : जिस प्रकार पराशरीय फल विंशोत्तरी दशान्तर्दशाओं में घटता है तथैव जैमिनि का फल चरराशि दशाओं में घटित होता है| चरराशि दशा जैमिनि की मुख्य दशा है| बिना चरराशि दशा की गणना किए जैमिनि के फलादेश घटित होने का समय नहीं जाना जा सकता|
5. भाव तथा राशियों की एकरूपता : महर्षि जैमिनि ने भावों तथा राशियों को एक माना है| अत: राशि की राशि पर दृष्टि तथा भाव की भाव पर दृष्टि एक ही बात है, पर उसका विचार चर-स्थिर-द्विस्वभाव के अनुसार होता है, तद्नुसार :
(क) चर राशियों की दृष्टि 5,8,11 स्थानों पर होती है|
(ख) स्थिर राशियों की दृष्टि 3,6,9 भावों पर होती है|
(ग) द्विस्वभाव राशियों की दृष्टि 4, 7, 10 भावों में होती है|
किसी भी राशि की दृष्टि 1,2,12 भावों में नहीं होती|
ऊपर वर्णित 5 तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जैमिनि के आजीविका के योगों का विचार करते हैं :
आत्मकारक के नवांश से कॅरियर का विचार
1. यदि आत्मकारक ग्रह तुला के नवांश में होता है, तो जातक की आजीविका वाणिज्य से चलती है|
2. यदि आत्मकारक ग्रह वृष के नवांश में हो, तो वाहन तथा चौपाये सुख तथा आजीविका के साधन होते हैं|
3. आत्मकारक का नवांश वृश्‍चिक में होने पर जल संसाधन घाटा देते हैं|
यदि व्यक्ति नौकरी करता है, तो भी उपर्युक्त व्यवसायों से संबद्ध रहता है| आत्मकारक ग्रह के नवांश में अन्य ग्रह की स्थिति से आजीविका विचार :
1.  यदि आत्मकारक के नवांश में सूर्य हो, तो प्रशासनिक अधिकारी या कर्मचारी होता है|
2. यदि आत्मकारक के नवांश में पूर्ण चन्द्र तथा शुक्र दोनों की स्थिति हो, तो शिल्प कला, ललित कला आदि से आजीविका चलती है| 
3. यदि कारकांश (आत्मकारक नवांश) में मंगल स्थित हो, तो रसायन, शस्त्रविद्या, आग्नेयास्त्र आदि से आजीविका चलने का सूचक है| सुरक्षा, रक्षा तथा आरक्षी के कार्य इसी के अन्तर्गत हैं|
4. कारकांश में बुध की स्थिति से व्यापार, हौजरी, टैक्सटाइल्स, फोटोग्राफी, पेण्टिंग, मशीनरी, एकाउण्ट्‌स, कंप्यूटर आदि जीविकोपार्जन के साधन होते हैं| पुस्तक प्रकाशनादि की भी सूचक स्थिति है|
5. कारकांश के साथ गुरु की स्थिति, धर्मकथा, प्रवचन, दर्शनशास्त्र तथा धर्मोपदेश के द्वारा आजीविका चलने का संकेत है|
6. कारकांश के साथ शुक्र की स्थिति नृत्य, संगीत आदि में निष्णात करती है|
7. शनि जब कारकांश में होता है तब उसके शिल्प की प्रसिद्धि बहुत दूर-दूर तक होती है|
8. राहु की कारकांश में स्थिति दूर तक मार करने वाले शस्त्र, गुप्तचरी विष विज्ञान, सपेरे का व्यवसाय, प्रशिक्षित खोजी कुत्ते आदि का उपयोग, खोजी पत्रकारिता, डॉटकॉम आदि कार्यों से आजीविका की सूचक होती है| कमीशन एजेण्ट तथा वकील भी हो सकता है|
9. केतु की स्थिति किसी के जन्मांग में यदि कारकांश में हो, तो भारी वाहनों, टैंकों, बुलडोजरों, हाथियों, क्रेनों, खुदाई मशीनों तथा दलाली आदि के धंधे से सम्बद्ध कर जीविकोपार्जन कराता है|
कारकांश पर ग्रह दृष्टि वशात् आजीविका का विचार
जब कारकांश में (अर्थात् आत्मकारक के नवांश में) कोई ग्रह न हो तब जैमिनि की राशि दृष्टि के अनुसार उसमें बैठे हुए ग्रह की दृष्टि के आधार पर आजीविका विचार हेतु निम्न योग हैं :
1. यदि कारकांश में कोई ग्रह स्थित न हो, तो कारकांश पर सूर्य तथा शुक्र दोनों की दृष्टि हो तब अन्य राजयोगों के बलवान् होने पर राजदूत या प्रतिनिधि, मध्यम बली होने पर स्वागत अधिकारी आदि तथा अल्प बली राजयोग होने पर शासकीय भृत्य के कर्म से आजीविका चलती है|
2. यदि कारकांश कुण्डली के दशम भाव में बुध स्थित हो, तो न्यायाधीश या न्यायकर्मी होता है, परन्तु इस बुध पर जैमिनि मत से शुभ ग्रह की दृष्टि आवश्यक है|
3. यदि कारकांश कुण्डली में दशम भाव में केवल सूर्य स्थित हो और उस पर जैमिनि मत से गुरु की दृष्टि हो, तो गोपालन आदि कर्म से आजीविका चलती है अथवा किसी छात्रावास का अधीक्षक या फिर किसी कार्यालय, प्रशासन आदि से संबंधित अधीक्षण का कार्य करता है|
4. यदि कारकांश से तृतीय तथा षष्ठ स्थान में पाप ग्रह हों, तो कृषिकर्म से आजीविका चलती है अथवा कारकांश से नवम में गुरु होने पर भी कृषक होता है|
5. यदि कारकांश में अथवा उसके पंचमभाव में चंद्र तथा गुरु की युति हो, तो पुस्तक लेखन, लेखक आदि के व्यवसाय से जीविका चलती है|
6. इसी प्रकार कारकांश में अथवा उससे पंचम में चंद्र, शुक्र या चंद्र, बुध की युति अथवा केवल शुक्र की स्थिति, कवि, लेखक, चित्रकार, व्यंग्यकार, नाटककार, गीतकार, कैमरामेन आदि बनाती है|
पदलग्न (आरूढ़) से आजीविका विचार
1. यदि लग्न पद से 11वें भाव में किसी ग्रह की दृष्टि या स्थिति हो, उस ग्रह की प्रकृति से संबंधित पदार्थों का लाभ होता है तथा वे कार्य आजीविका का साधन होते हैं| शुभ ग्रह होने से नीति मार्ग से तथा अशुभ ग्रह की दृष्टि या स्थिति से अनीति मार्ग से आजीविका चलती है, धन का लाभ होता है|
2. यदि लग्न पद से 11वें भाव में उच्च, स्वराशि या मूल त्रिकोण का ग्रह हो, तो धनादि का विशेष लाभ होता है| इन योगों में सदैव जैमिनि की राशि दृष्टि का ही उपयोग करना चाहिए|
3. यदि लग्न पद से द्वितीय भाव में चंद्र, गुरु या शुक्र की स्थिति हो, तो विशेष धन लाभ होता है| यह श्रीमान् योग है|
4. यदि द्वितीय में कोई भी ग्रह स्वराशि, उच्च राशि या मूल त्रिकोण का हो तब भी श्रीमान् योग होता है| इसमें कॅरियर को ऊँचा उठाने की शक्ति होती है|
सप्तम भाव के पद से आजीविका की सम्पन्नता का विचार
जिस प्रकार लग्न का पद विचारते हैं, उसी प्रकार से सप्तम भाव का पद भी विचारना चाहिए| सप्तमेश सप्तम भाव से जितने स्थान पर हो सप्तमेश अधिष्ठित राशि से उतने ही स्थान गिनने पर सप्तम भाव का पद होता है| वह सप्तम भाव का पद यदि लग्न के पद से केन्द्र (1,4,7,10) या त्रिकोण (5,9) में पड़ता हो तब आजीविका के कर्म से सम्पन्नता आती है तथा दाम्पत्य जीवन सुखद रहता है, साथ ही आजीविका में जीवन साथी का पूर्ण सहयोग भी प्राप्त होता है|
यदि पद लग्न कुण्डली में मंगल, शुक्र, केतु ये तीनों जैमिनि मत से परस्पर दृष्ट हों तो लालबत्ती आदि प्रतिष्ठा के प्रतीकों के साथ आजीविका चलती है|
यदि लग्नेश, सप्तमेश इन तीनों से 3 भाव या 6 भावों में पाप ग्रहों की स्थिति हो, तो सेना या पुलिस में उच्च पद की प्राप्ति होती है|•



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