शुक्र-शनि की युति और मानव जीवन
Venus-Saturn Conjunction and Human Life
लेखक : सुरेश तंवर
प्रकाशन तिथि : मई, 2007
सौरमंडल में शुक्र सबसे अधिक चमकता हुआ ग्रह है| इसकी चमक से ही इसे आकाश में आसानी से पहचाना जा सकता है| अन्य ग्रहों की तुलना में इसकी चमक सर्वाधिक होने से यह सौन्दर्य प्रदान करने के लिए विख्यात है| जिनका शुक्र बली होता है, वे दूसरों को, विशेष रूप से विपरीत लिंगी को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं| सुंदरता पुरुष की अपेक्षा स्त्री में अधिक होती है| एक स्त्री सौन्दर्य के प्रति अधिक जागरूक होती है| संभवत: इसी कारण ज्योतिष-आचार्यों ने इसे स्त्रीग्रह माना है| यह भोग और ऐश्वर्य प्रदान करता है| भोग के लिए धन की आवश्यकता होती है, इसलिए इसे धनकारक भी कहा गया है| वर्तमान युग अर्थ प्रधान युग है, इसलिए शुक्र वर्तमान में विशेष महत्त्वपूर्ण एवं प्रासंगिक ग्रह माना गया है| शुक्र को ‘राक्षसों का गुरु’ कहा जाता है| आज इस कलियुग में जहॉं राक्षसी प्रवृत्तियॉं चरम सीमा पर हैं और भौतिक सुख एवं विलासिता की कामना सर्वोपरि है, शुक्र का महत्त्व बहुत बढ़ गया है, अत: कुण्डली में इसकी स्थिति अत्यन्त विचारणीय है|
शुक्र सप्तम भाव एवं उससे सम्बन्धित विषयों का कारक माना गया है| जैसे-भोग, विवाह, स्त्रीसुख, रसिकता, भार्या, यौवन, प्रेम की बातें और ऐश्वर्य| सुन्दरता प्रदान करने वाला शुक्र सौन्दर्य, सुकुमारता, सुन्दर चाल, अंगों की सुन्दरता, काले-लम्बे बाल, कामुक क्रियाओं में आसक्ति, इत्र, वीणा, बॉंसुरी, गाना, बजाना, नाटक, अभिनय, फिल्मी क्षेत्र पर भी अपना पूर्ण प्रभाव रखता है| दक्षिण-पूर्व दिशा का स्वामी शुक्र पार्वती एवं लक्ष्मी का भी प्रतिनिधि माना गया है|
शुक्र के गुणों के विपरीत शनि गरीबी, वैराग्य, शिथिलता, अंधकार, कायरता एवं कुरूपता का कारक ग्रह माना जाता है| इसे सूर्य का विरोधी पुत्र, दंडकारक और दु:खदाता भी कहा गया है| शनि को कालपुरुष का दु:ख, काला एवं मन्द भी माना जाता है| इसलिए एक गरीब, काला-कलूटा, मैले वस्त्रों वाले व्यक्ति को ‘शनिश्चर’ कहा जाता है| यह एक बाधाकारक ग्रह है, जो प्रत्येक कार्य में विलम्ब और बाधा प्रदान करता है| शनि आलस्य प्रदान करता है, किन्तु जब काम पर जुट जाए, तो पूरा करके ही दम लेता है| यह कंजूस है, किन्तु देता है, तब छप्पर फाड़कर देता है| संभवत: इसी कारण इसे नैसर्गिक कुण्डली (मेष लग्न) में दशम और एकादश का स्वामित्व प्रदान किया है|
यह एक आलसी, सुस्त, मूर्ख और कर्महीन जातक को दर्शाता है, इसलिए इसे दु:ख, दुर्भाग्य, निराशा और गरीबी का कारक बताया गया है| इसे पापी ग्रह की श्रेणी में रखा गया है| वैराग्य और संन्यास शनि ही दिलाता है| सूर्य का शत्रु होकर अहंकार का विनाश करता है| ज्योतिषाचार्यों का मत है कि शनि सूर्य से पराजित, किन्तु मंगल पर विजय प्राप्त करने वाला है| चन्द्रमा शनि से बहुत भयभीत रहता है, इसलिए शनि की साढ़ेसाती और ढैया से लोग घबराते हैं| मकर और कुंभ राशि का स्वामी शनि तुला में उच्च का होता है| आम गरीब जनता का प्रतिनिधि होने के कारण इसे प्रजातंत्र का कारक भी माना गया है| पुष्य, अनुराधा और उत्तर-भाद्रपद नक्षत्रों का स्वामी शनि है| इसे शुष्क, बंधनकारक, पृथ्वी तत्त्व वाला, शिथिल और बाधक ग्रह भी माना गया है| यदि अशुभ भाव का स्वामी होकर किसी अन्य पाप ग्रह के प्रभाव में हो, तो मृत्यु भी (अपनी दशा में) दे सकता है| रोग का तो यह कारक है ही|
शनि-शुक्र युति
शनि को बुध और शुक्र का मित्र कहा गया है| शनि-शुक्र के कारकत्व यद्यपि एक-दूसरे के विपरीत हैं, किन्तु इनमें गहरी मित्रता है| इसके साथ-साथ यह भी सत्य है कि शनि में शुक्र का अन्तर या शुक्र में शनि का अन्तर एक राजा को भी सड़क पर भिखारी की तरह खड़ा कर सकता है| श्री बी.वी. रमन के अनुसार ‘शुक्र एवं शनि की युति जहॉं धैर्य एवं विवाह में स्थायित्व देती है, वहीं जातक को अभिनय, नाटक, नृत्य आदि में प्रवीणता भी प्रदान करती है|’ फिल्मी क्षेत्र के अनेक सफल कलाकारों की कुण्डली में यह योग पाया गया है| दोनों की परम मित्रता के बावजूद वैवाहिक जीवन में यह अशुभ फल देता पाया गया है| विद्वान् ज्योतिषी श्री देवधर पाण्डेय के अनुसार, ‘शनि के साथ शुक्र का सम्बन्ध नेष्ट ही स्वीकार किया जाता है| ऐसे जातक प्राय: निजी पत्नी से द्वेषपूर्ण सम्बन्ध रखते हैं|’ यद्यपि प्रखर रूप से दृष्टिगोचर नहीं भी हों, तो भी उनके जीवन में अन्य स्त्री की गुंजाइश का होना अस्वीकार नहीं किया जा सकता| कन्या की जन्म कुण्डली में शुक्र-शनि की युति किसी भी भाव में हो, तो विवाह में रुकावट/देरी उत्पन्न करती है| यदि यह युति लग्न या दशम भाव में हो, तो अवैध सम्बन्ध जगजाहिर हो जाते हैं| यदि चतुर्थ या सप्तम भाव में हो, तो नपुंसक बनाता है| दोनों का सम्बन्ध होने पर वर-वधू की आयु में अधिक अन्तर रहता है|
जिन जातकों की कुण्डली में शुक्र-शनि की युति होती है, उन्हें जीवन के किसी कालखंड में इस युति की स्थिति के अनुसार किसी दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है| यह एक ज्योतिषीय विरोधाभासी सत्य ही कहा जाएगा कि दोनों ग्रह अति भिन्न होने के बावजूद शुभ फल देने के स्थान पर अशुभ फल देते हैं|’
शुक्र एवं शनि की युति के विषय में विभिन्न ग्रन्थों/विद्वानों के विचार
जातक पारिजात
शुक्र-शनि की युति हो, तो ऐसा जातक कसरती बदन वाला, कृषि भूमि का स्वामी, दूरदृष्टि की कमी रखने वाला होता है| उसका भाग्य किसी महिला पर निर्भर करता है| वह चित्रकारी एवं लेखन में कुशल होता है| यदि सम्बन्ध शुभ भाव में हो और दोनों ग्रह योगकारक हों, तो जातक अपने धैर्य, ईमानदारी, स्पष्टवादिता, निष्ठा के लिए प्रसिद्ध होता है| वह स्वतंत्र आय वाला और तेजी से तरक्की करने वाला होता है| वैवाहिक जीवन खुशी और सम्पन्नता से परिपूर्ण होता है| यदि शुक्र या शनि अशुभ ग्रह हों, तो यह प्रतिष्ठा और व्यवसाय पर अशुभ प्रभाव डालते हैं| ऐसा जातक चरित्रहीन और कामी होता है| उसे सामाजिक और पारिवारिक चिन्ताएँ परेशान करती हैं| वह चिन्तातुर रहता है और उसका जीवन साथी से अलगाव हो सकता है|
शुभ युति होने पर : जातक में संगठनात्मक और प्रशासनिक प्रतिभा होती है| वह उत्साही, धैर्यवान् और नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता रखता है| वह निष्ठावान्, ईमानदार और वफादार होता है| मध्यायु के बाद सफलताएँ प्राप्त होती हैं|
अशुभ युति होने पर : जातक में अपार क्षमताएँ तो होती हैं, किन्तु उसे भौतिक और पारिवारिक खुशी नहीं मिलती| उसे रोग, कर्जा, रुकावटें और असफलताएँ प्राप्त होती हैं|
मानसागरी
उन्मत्त, पशुओं को पालने वाला, लकड़ी चीरने में चतुर, क्षारीय, अम्लीय, खट्टे पदार्थों का प्रेमी और शिल्पकला का जानकार होता है|
सारावली
लग्न में : स्त्री सुख में लीन, सुन्दर रूप, सुख, धन, भोग से युक्त, बहुत से नौकरों वाला होकर अंत में शोक-संताप होता है|
चतुर्थ भाव में : मित्र से धन और बंधु से आदर पाता है और राजा का विश्वासपात्र होता है|
सप्तम भाव में : स्त्री, धन, रत्न, सुख, समस्त सम्पत्ति और विषयों का भोगी होता है|
दशम भाव में : समस्त द्वन्द्व (सुख, दु:ख, राग, द्वेष आदि) से रहित विशेष कार्य करने वाला राजमंत्री होता है|
जातक तत्त्वम्
दूरदृष्टि नहीं होती| रंगाई, पुताई, लिखाई, चित्रकला के कार्य को जानने वाला होता है|
लग्न में : सुन्दर शरीर वाला, अनेक स्त्रियों को भोगने वाला, सुखी, धनवान्, भोगयुक्त एवं शोक से संतप्त होता है|
चतुर्थ भाव में : मित्रों से धन लाभ, बांधवों से सत्कार प्राप्त, राजा का प्रिय पुरुष होता है|
सप्तम में : स्त्री तथा रत्नादिक का सुख भोक्ता, धन-कीर्ति, ऐश्वर्य प्राप्त करने वाला, विषय लाभ पाने वाला होता है|
दशम में : सर्वउद्वेगरहित, लोक में प्रसिद्ध, विशेष प्रकार के काम करने वाला राजा का मंत्री होता है|
यह एक महत्त्वपूर्ण युति है| यह एक सेवा-त्याग का कर्म क्षेत्र प्रदान करती है, जिसके लिए रास्ता कष्टकारी और कठोर होता है| जातक को चिलचिलाती धूप में अकेले ही चलना पड़ता है और उसे उसमें आनन्द प्राप्त होता है| देखने वाले को यह स्वप्न-सा लगता है| इसमें आराम और लाभ-प्राप्ति से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कर्त्तव्य निर्वहण और सेवा का भाव निहित होता है| यह जातक वफादार और कला के गुणों से युक्त होता है| हास्यप्रवृत्ति वाला यह जातक
वाहनयुक्त, किन्तु संघर्षरत रहने वाला होता है|
विभिन्न लग्नों में कैसी रहेगी शुक्र-शनि की युति?
मेष लग्न और शुक्र-शनि की युति
मेष लग्न के लिए शनि और शुक्र दोनों अशुभ फल देते हैं| शुक्र द्वितीय और सप्तम दो मारक भावों का स्वामी होने से मारक ग्रह बनता है,किन्तु मृत्यु का कारक शनि मारक भावों का स्वामी नहीं होने पर भी मारकेश शुक्र के साथ युति कर प्रबल मारक हो जाता है, अत: इन दोनों की युति प्रबल मारक होती है| दोनों की निकटता जितनी अधिक होगी मारकत्व उतना ही अधिक होगा, लेकिन शुक्र द्वितीय (धन) एवं शनि एकादश (अल्प) भाव के स्वामी होने के कारण यदि शुभ स्थान में हों, तो धन पक्ष के लिए शुभ फलदायक है| शुक्र सप्तमेश और पत्नी का नैसर्गिक कारक होने से शनि के प्रभाव के कारण वैवाहिक पक्ष पर नकारात्मक प्रभाव देता है| मेष चर राशि का लग्न है, अत: शनि एकादश भाव का स्वामी होकर प्रबल बाधक ग्रह भी बनता है| कुंभ राशि शनि की मूल त्रिकोण राशि होने से शनि बाधक प्रभाव अधिक देता है, अत: शुक्र- शनि की युति शुक्र के कारकत्व और उसके भाव द्वितीय और सप्तम भाव के लिए अशुभ/बाधक होती है|
श्री रमेश सैनी
जन्म दिनांक: 10 सितम्बर, 1950
जन्म समय: 21:15 बजे
जन्म स्थान: अजमेर
लग्न कुण्डली
नवांश कुण्डली
यह जन्मचक्र राज्य सरकार में कार्यरत एक पुलिस अधिकारी का है| इसमें शुक्र-शनि की युति पंचम भाव में सूर्य और चन्द्रमा के साथ है| यद्यपि इस युति पर भाग्येश गुरु की भी पूर्ण दृष्टि है| गुरु सप्तम भाव पर भी दृष्टि डाल रहा है,किन्तु इस युति ने अपना पूर्ण दुष्प्रभाव दर्शाया है| विवाह के बाद ही कलह और अन्य समस्याएँ (शुक्र की महादशा में) सामने आयीं| वर्तमान में पत्नी असाध्य रोगी है और कुटुम्ब एवं भाई-बहिनों से सम्बन्ध विच्छेद हो रखा है| यद्यपि गुरु ने तीन पुत्र प्रदान किए, लेकिन अपेक्षित सुख/सहारा प्राप्त नहीं हुआ| बली भाग्येश के कारण अनेक सम्मान और नकद पुरस्कार तो प्राप्त हुए, किन्तु जीवन में अपेक्षित सुख नहीं मिला|
वृषभ लग्न और शुक्र-शनि की युति
यह एक स्थिर राशि का लग्न है| शुक्र लग्नेश होने के साथ-साथ षष्ठेश भी होता है, अत: विद्वान् ज्योतिषियों का एक पक्ष शुक्र को अशुभ ग्रह (इस लग्न के लिए) मानते हैं| शनि अकेला ही राजयोग कारक ग्रह है| शुक्र-शनि की युति इस लग्न के लिए सबसे अधिक सफल योगकारक युति मानी जाती है| जिस भाव में भी यह युति होती है, उस भाव के फलों में वृद्धि होती है| चौथे घर में यह युति अनेक स्त्रियों से धनप्राप्ति कराती है| सप्तम भाव में व्यक्ति का चरित्र गिरा देती है| दशम भाव में राजा के समान वैभव प्रदान कराती है| शुक्र लग्नेश और षष्ठेश एवं शनि दशम और नवम भाव का स्वामी होता है|
मिथुन लग्न और शुक्र-शनि की युति
मिथुन लग्न की कुण्डली में शुक्र-शनि की युति पर अन्तरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त ज्योतिर्विद् श्री बी.वी. रमन ने लिखा है कि शुक्र अकेला सर्वश्रेष्ठ शुभ ग्रह है और शनि से यदि शुभ राशि में युत हो, तो श्रेष्ठ फलदायक कर्मक्षेत्र प्रदान करता है, जिसमें जातक को प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त होता है| यहॉं यह युति दो त्रिकोणों के स्वामी की युति के साथ-साथ दो पापी भावों के स्वामियों की युति भी होती है, क्योंकि मूल त्रिकोण राशि दोनों ग्रहों की त्रिकोण में पड़ती है, अत: इसमें शुभ फल की प्रमुखता रहती है|
श्री धर्मवीर
जन्म दिनांक : 19 अगस्त, 1945
जन्म समय : 03:30 बजे
जन्म स्थान : छावा (पंजाब)
लग्न कुण्डली
नवांश कुण्डली
यह एक अभियन्ता की जन्म कुण्डली है| यद्यपि विवाह 40 वर्ष की आयु में देरी से हुआ, किन्तु राजकीय सेवारत पत्नी ने आर्थिक पक्ष को ऊँचा किया| विवाह के बाद मकान, वाहन और सम्पन्नता प्राप्त हुई| विवाह चन्द्रमा में शुक्र के अन्तर में सम्पन्न हुआ था|
कर्क लग्न और शुक्र-शनि की युति
इस लग्न के लिए शुक्र एवं शनि दोनों शत्रु ग्रह हैं| शुक्र बाधक ग्रह है और शनि सप्तमेश और अष्टमेश होकर प्रबल मारक ग्रह बनता है| यह युति यद्यपि कला और कर्मक्षेत्र तो प्रदान करती है, किन्तु वैवाहिक पक्ष के लिए अहितकर भी है| यह दो केन्द्रों की युति के कारण राजयोग कारक होने के साथ-साथ राजयोग भंग भी करती है| यदि शुक्र और शनि किसी योग का निर्माण करते हैं, तो यह युति श्रेष्ठ राजयोगकारक होती है|
श्री राजकपूर
जन्म दिनांक: 14 दिसंबर, 1924
जन्म समय: 21:55 बजे
जन्म स्थान: पेशावर
लग्न कुण्डली
नवांश कुण्डली
उपर्युक्त जन्मकुण्डली भारतीय सिनेमा के महान् कलाकार स्व. श्री राजकपूर की है| इनकी कुण्डली में शुक्र-शनि की युति चतुर्थ भाव में है| यह ‘शश’ और ‘मालव्य’ योग का निर्माण कर रही है, लेकिन कर्क लग्न में इसको शुभ नहीं माना गया है| अत: सिने जगत् में उच्च सफलताओं के बावजूद शुक्र की महादशा (15 सितम्बर, 1963 - 15 सितम्बर, 1983) ने शिखर पर ले जाकर इन्हें जमीन पर ला दिया| इस दौरान ‘मेरा नाम जोकर’ ने व्यावसायिक स्तर पर बड़ा झटका दिया|
सिंह लग्न और शुक्र-शनि की युति
सिंह लग्न के लिए भी शुक्र और शनि दोनों शत्रु ग्रह हैं| शुक्र तृतीय और दशम का स्वामी होकर पूर्णत: अशुभ ग्रह है और शनि षष्ठ एवं सप्तम भाव का स्वामी होकर मारक तो है ही, किन्तु सप्तम भाव में मूल त्रिकोण राशि होने से कारक भी माना गया है| शुक्र का बलवान् होना घातक होता है| यह जितना कमजोर होगा, उतना ही शुभ फल देगा|
श्री पंकज शर्मा
जन्म दिनांक: 18 अक्टूबर, 1957
जन्म समय: 02:12 बजे
जन्म स्थान: अजमेर
लग्न कुण्डली
नवांश कुण्डली
यह राज्य सरकार के एक अभियन्ता की जन्मकुण्डली है| यहॉं चतुर्थ भाव में शुक्र-शनि की युति है| शुक्र की महादशा में इनका प्रेम विवाह हुआ| अपनी श्रेष्ठ योग्यता के बावजूद शुक्र की महादशा में सेवा में अपेक्षित महत्त्व नहीं मिला| शुक्र में शनि के अंतर में इनके पिता की अचानक मृत्यु हो गई| शुक्र विवाह का नैसर्गिक कारक होकर और सप्तमेश से संयुक्त होकर विवाह तो करवा पाया, लेकिन जीवन में अपेक्षित शुभ फल नहीं दे पाया|
कन्या लग्न और शुक्र-शनि की युति
कन्या लग्न के लिए शुक्र शुभ और कारक ग्रह माना गया है| शनि पंचमेश होकर शुभ है, किन्तु षष्ठेश (मूल त्रिकोण राशि) होकर पापी ग्रह बनता है| शुक्र-शनि की युति को विद्वानों ने शुभ फलदायक और राजयोगकारी बताया है| यदि यह शुभ भाव में हो, तो अधिक श्रेष्ठ फल प्रदान करती है| विशेष रूप से केन्द्र, त्रिकोण, एकादश, द्वितीय आदि भावों में|
श्रीमती अनिता असावा
जन्म दिनांक: 24 दिसंबर, 1963
जन्म समय: 02:00 बजे
जन्म स्थान: सीकर
लग्न कुण्डली
नवांश कुण्डली
यह एक व्यावसायिक परिवार की महिला का जन्म-चक्र है| जन्म के साथ ही परिवार में सुख-समृद्धि में वृद्धि हुई| उस समय शनि की महादशा थी| पहला विवाह असफल होकर तलाक हो गया| जब शुक्र की दशा 17 दिसम्बर, 1999 से शुरू हुई है, तब शुक्र ने जीवन का नया अध्याय शुरू कर जीवन में पुन: सुख-सौभाग्य का संचार किया| प्रथम विवाह की असफलता के अन्य कारण और परिस्थितियॉं भी रही थीं| शुक्र अपनी महादशा में भाग्य वृद्धि कराएगा|
तुला लग्न और शुक्र-शनि की युति
समस्त लग्नों में तुला लग्न के लिए शुक्र-शनि की युति सबसे अधिक प्रभावी और शुभ फलदायक मानी जाती है| यदि यह युति केन्द्र अथवा त्रिकोण भावों में हो, तो प्रबल राजयोग का निर्माण करती है| तुला लग्न के लिए शुक्र लग्नेश और अष्टमेश होता है, किन्तु उसकी मूल त्रिकोण राशि लग्न में होने से यह लग्नेश होने का फल अधिक देता है| शनि चतुर्थेश-पंचमेश होकर अकेला ही राजयोग कारक ग्रह बनता है| युति होने पर तो यह उत्कृष्ट फल देता है|
सम्राट् अकबर
जन्म दिनांक: 24 नवम्बर, 1542
जन्म समय: 04:15 बजे
जन्म स्थान : अमरकोट
लग्न कुण्डली
नवांश कुण्डली
यह महान् मुगल सम्राट् अकबर की जन्म कुण्डली है| इसमें शुक्र-शनि की युति लग्न में बनी है| गुरु भी लग्न में स्थित है, किन्तु भाव संधि पर होने के कारण (अशुभ भाव स्वामी तृतीय-षष्ठ) अप्रभावी बना है| शनि की महादशा के प्रारम्भ होते ही अकबर का साम्राज्य पूरे भारत में फैल गया था| इसी शनि की महादशा में अकबर ने अपने प्रशासनिक सुधारों को जन्म दिया और न्यायिक प्रणाली में सुधार किया| उसने हिन्दू-मुस्लिम समाज में आपसी भाईचारे के अनेक कार्य किए| नाड़ी ग्रन्थ (चन्द्रकला नाड़ी) ने भी इस युति का फल जन्म से ही ऐश्वर्यशाली होना कहा है|
वृश्चिक लग्न और शुक्र-शनि की युति
वृश्चिक लग्न के लिए शुक्र सप्तमेश-द्वादशेश होकर प्रबल मारक ग्रह है| शुक्र-शनि की युति अमंगलकारी और मारक होती है| कुछ विद्वान् केन्द्र का स्वामी होने के कारण आंशिक शुभ फलदायक मानते हैं| अनुभव में यह पाया गया है कि शुक्र-शनि की युति एकादश भाव में राजयोगकारक होती है| वृश्चिक लग्न की हेनरी फॉर्ड की कुण्डली में एकादश भाव में यह युति राजयोग कारक थी|
साहित्यकार जॉन मिल्टन की कुण्डली में यह युति तृतीय भाव में है| तृतीय भाव की इस युति ने उसे जमीन पर ला दिया|
शनि की महादशा के प्रारम्भ होते ही मिल्टन के सबसे बुरे दिनों की शुरुआत हुई| शनि में बुध और केतु के अन्तर में इनका पूर्ण पतन हो गया था और अन्त में शनि में राहु की अन्तर्दशा में (सन् 1674 ई. में) मिल्टन की मृत्यु हो गई थी| शुक्र की अन्तर्दशाओं में भी मिल्टन को बुरे दिन देखने पड़े थे|
जॉन मिल्टन
जन्म दिनांक: 09 दिसंबर, 1608
जन्म समय: 06:30 बजे
लग्न कुण्डली
नवांश कुण्डली
धनु लग्न और शुक्र-शनि की युति
धनु लग्न के लिए शुक्र छठे और एकादश भाव का स्वामी होकर अकारक ग्रह होता है| शनि भी दूसरे और तीसरे भाव का स्वामी होकर मारक ग्रह बनता है| यदि शुक्र-शनि की युति पंचम भाव में हो, तो जातक निरन्तर उदर रोगों से ग्रस्त होता है| शनि और शुक्र की युति जिस भाव में भी हो या ये दोनों ग्रह जिस भाव पर दृष्टि डालें, उस भाव से सम्बन्धित शरीर के अंग में रोग होता है| शनि तृतीय भाव में और शुक्र नवम भाव में आमने-सामने हों, तो प्रबल भाग्योदयवर्द्धक होता है|
यह जन्म कुण्डली राजस्थान के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री मोहनलाल सुखाड़िया जी की है| इसमें शुक्र-शनि की युति सप्तम भाव में है| शुक्र की महादशा में ये युवा होते ही मेवाड़ प्रजामंडल में सक्रिय रहे| शुक्र में शनि के अन्तर में इन्होंने अन्तरजातीय विवाह करके लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया|
श्री मोहनलाल सुखाड़िया
जन्म दिनांक: 31 जुलाई, 1916
जन्म समय: 18:00 बजे
जन्म स्थान: झालरापाटन
लग्न कुण्डली
नवांश कुण्डली
शुक्र-शनि की युति अपनी अशुभता के बावजूद द्वितीयेश- एकादशेश की युति भी होने के कारण धनकारक तो होती ही है| यहॉं शनि वर्गोत्तम और दिग्बली भी है| चन्द्र लग्न से लाभ स्थान में है|
मकर लग्न और शुक्र-शनि की युति
मकर लग्न के लिए शुक्र पंचमेश-दशमेश (केन्द्र-त्रिकोण) का स्वामी होकर अकेला ही प्रबल योगकारक बनता है| शनि लग्नेश-द्वितीयेश होकर कारक ग्रह है, अत: इनकी युति प्रबल राजयोग का निर्माण करती है|
दशम भाव में यह युति शनि के द्वितीयेश-लग्नेश और शुक्र के दशमेश-पंचमेश होने से महान् धनयोग भी बनाती है, किन्तु पारिवारिक और वैवाहिक जीवन में यह हानि कराती है| यह जन्मकुण्डली महान् साहित्यकार श्री हरबर्ट वेल्स की है| इसमें शुक्र-शनि की युति दशम भाव में बनकर श्रेष्ठ राजयोग का निर्माण
हरबर्ट जॉर्ज वेल्स
जन्म दिनांक: 21 सितंबर, 1866
जन्म समय: 15:33 बजे
जन्म स्थान : 51:24 दक्षिण; 00:01 पश्चिम
लग्न कुण्डली
नवांश कुण्डली
कर रही है| शनि-शुक्र की यह युति दशम भाव में द्वितीयेश-पंचमेश और लग्नेश-दशमेश की भी युति होकर प्रबल राजयोग कारक है, किन्तु दशम भावस्थ शनि माता-पिता का मारक भी है| (नवम और सूर्य से द्वितीय और चतुर्थ भाव पर दृष्टि के कारण) शनि की महादशा प्रारम्भ होते ही इनकी माता की मृत्यु हुई| कुछ वर्षों बाद केतु के अन्तर में पिता की मृत्यु हो गई, अत: शनि ने श्रेष्ठ धन और राजयोग के साथ आत्मीयजनों का बिछोह भी दिया|
कुंभ लग्न और शुक्र-शनि की युति
कुंभ लग्न के लिए शुक्र सुखेश और भाग्येश होकर पूर्ण कारक ग्रह होता है| शनि भी लग्नेश और द्वादशेश होकर योगकारक ग्रह बनता है| इन दोनों (शुक्र+शनि) की युति प्रबल राजयोगकारक होती है| यदि दशम भाव में हो, तो जातक सामान्य कुल में जन्म लेकर भी करोड़पति बनता है| एकादश भाव में हो, तो शुक्र की महादशा मंगलमय और धनदायक होती है|
एक जातिका
जन्म दिनांक: 15 नवम्बर, 1955
जन्म समय: 13:22 बजे
जन्म स्थान: लखनऊ
लग्न कुण्डली
नवांश कुण्डली
यह जन्मकुण्डली राजकीय सेवा में कार्यरत एक महिला की है| इनके पति राजकीय सेवा में उच्चाधिकारी हैं| शुक्र की महादशा ने जीवन में सभी वैभव और राजयोग प्रदान किया, किन्तु दशम भावस्थ शनि ने जीवन में प्रबल संघर्ष से गुजारा और फिर राजयोग प्रदान किया|
मीन लग्न और शुक्र-शनि की युति
मीन लग्न के लिए शुक्र तृतीयेश और अष्टमेश होकर अशुभकारक ग्रह बनता है| शनि एकादश और द्वादश भाव का स्वामी होकर अकारक ग्रह है| कुछ विद्वानों का मानना है कि शनि द्वादशेश होकर अपनी दूसरी राशि लाभ भाव (मकर) का फल देता हुआ धन पक्ष के लिए शुभ है, फिर भी शुक्र-शनि की युति हानिकारक ही मानी गई है, किन्तु यदि यह दु:ख स्थान (छठा, आठवॉं और बारहवॉं) में हो, तो श्रेष्ठ विपरीत राजयोग का निर्माण करती है|
बाबूलाल देव
जन्म दिनांक: 7 सितंबर, 1950
जन्म समय: 20:00 बजे
जन्म स्थान: बालोतरा
जन्म कुण्डली
नवांश कुण्डली
उपर्युक्त जातक का विवाह धनी ससुराल में होने से भाग्योदय हुआ और जातक धन और सम्मान का धारक बना| कुण्डली में शुक्र-शनि की युति षष्ठ भाव में होकर प्रबल विपरीत राजयोग का निर्माण कर रही है| शुक्र भाग्येश मंगल द्वारा अधिष्ठित राशि का स्वामी भी है| चन्द्रकुण्डली से भी सप्तमेश- भाग्येश आमने-सामने हैं| सूर्य कुण्डली से भी सप्तमेश की भाग्येश पर दृष्टि की युति है| शनि की महादशा में भाग्योदय शुरू हुआ और वर्तमान में शुक्र की महादशा चल रही है|
उपसंहार
यह आलेख विभिन्न 12 लग्नों की कुण्डली में शुक्र-शनि की युति के फल तक ही सीमित है| यदि शुक्र-शनि में भाव परिवर्तन, नक्षत्र परिवर्तन, आमने-सामने की स्थिति बने तब भी समानान्तर फल प्राप्त होते हैं|
निष्कर्ष रूप में हमने वृष, मिथुन, कन्या, तुला, मकर, कुंभ लग्न के लिए शुक्र-शनि की युति को राजयोग कारक पाया है| इस संदर्भ में कुछ विद्वान् वृष लग्न के लिए सही नहीं मानते हैं| अन्य लग्नों के लिए भी यदि शुक्र-शनि की स्थिति योग का निर्माण करती है, तो शुभ फल अधिक प्रदान करती है| जैसा कि हमने कर्क लग्न में श्री राजकपूर की कुण्डली में पाया| शनि के केन्द्र में स्थित होने पर राजयोग के साथ-साथ संघर्ष के बाद ही सफलता प्राप्त होती है| यह युति शुक्र के कारकत्व जैसे विवाह, सांसारिक भोग आदि को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है| मीन लग्न के लिए यदि दु:ख, स्थान (6, 8, 12 भाव) में हो, तो विपरीत राजयोग का निर्माण करती है| धनु और मीन लग्न को छोड़कर अन्य लग्नों की कुण्डली में शुक्र महादशा में शनि का अन्तर और शनि की महादशा में शुक्र का अन्तर पतन की स्थिति पैदा करता है|