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Alangudi where Devguru worshiped Lord Shiva

26-April ,2023 | Comment 0 | gotoastro team

Alangudi where Devguru worshiped Lord Shiva

अलनगुड़ी जहाँ की थी देवगुरु ने शिवाराधना

देवगुरु बृहस्पति देवताओं के गुरु हैं। यही बृहस्पति नवग्रहों में गुरु के नाम से भी जाने जाते हैं। सभी ग्रहों में इनका विशेष महत्त्व माना गया है। सर्वाधिक शुभ ग्रह और सभी शुभ फलों के प्रदाता होने के कारण वे अत्यधिक वन्दनीय और पूजनीय हैं। ज्ञान और वाणी के कारक गुरु न केवल मानव जाति के लिए, वरन् सभी प्राणियों के लिए वन्दनीय हैं। ग्रहों और देवी-देवताओं के समान इनके तीर्थस्थल भी भारत में कई स्थानों पर स्थित हैं। ॠग्वेद के अनुसार बृहस्पति ॠषि अंंगिरा और सुरूपा के पुत्र थे। इनके दो भाई थे : उतथ्य और समवर्तन इनके तीन पत्नियाँ थीं शुभा, तारा और ममता। भगवान् शिव ने इन्हें नवग्रहों में स्थान दिया था ।
गुरु के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में तमिलनाडु के कुम्भकोणम् के निकट अलनगुडी में देवगुरु बृहस्पति का मन्दिर है। इस स्थान को दक्षिणाभिमुख अवष्टक के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ देवगुरु के अतिरिक्त शिव, सूर्यदेव, सोम और सप्तर्षि के मन्दिर भी हैं। यहाँ स्थित गुरु मन्दिर की स्थापना 7वीं शताब्दी में पल्लव शासकों के समय की गई थी। बाद में जीर्णोद्धार चोल शासकों के समय करवाया गया था।
यहाँ गुरु के मन्दिर में जो विग्रह स्थित है, उसके चार हाथ हैं। तीन हाथों में क्रमश: बृहस्पति ने दण्ड, कमण्डल और जपमाला धारण की है और चौथा हाथ आशीर्वाद मुद्रा में है। भक्त पीले वस्त्र धारण करके देवगुरु को दीपदान करते हैं और चमेली के पुष्प अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इस मन्दिर की 24 परिक्रमा करने से देवगुरु बृहस्पति का आशीर्वाद मिलता है और कष्टों का हरण होता है। चोल शासकों के समय इसकी मान्यता बढ़ी थी। भगवान् शिव एवं तीर्थस्थल निकट होने के कारण यहाँ श्रद्धालु आने लगे। आदिगुरु शंकराचार्य ने भी यहीं पर शिवजी की उपासना की थी ।
मान्यता है कि इस स्थान पर आकर गुरु ने भगवान् शिव की उपासना की थी। इससे उन्हें नवग्रहों में सबसे श्रेष्ठ ग्रह होने का सम्मान प्राप्त हुआ था। इस कारण यह स्थान देवगुरु बृहस्पति को अत्यधिक प्रिय है। इसी स्थान पर भगवान् शिव ने समुद्र मन्थन से निकलने वाले विष का पान किया था। लौकिक मान्यताओं के अनुसार एक राजा के सात पुत्र थे। उन्होंने एक बार एक ब्राह्मण का अपमान कर दिया था। इससे उनका सम्पूर्ण वैभव नष्ट हो गया और वे दरिद्र हो गए। उन सात पुत्रों में से सबसे छोटे पुत्र की पत्नी ने देवगुरु की उपासना की, जिससे उनका खोया हुआ वैभव लौट आया।
अलनगुडी स्थान का आध्यात्मिक महत्त्व और भी विशिष्ट है। विश्वामित्र ने इसी स्थान पर भगवान् शिव की उपासना करके ब्रह्मर्षि की उपाधि प्राप्त की थी । जिन व्यक्तियों की जन्मपत्रिका में गुरु प्रतिकूल स्थिति में है अथवा गुरु के अशुभ गोचर के प्रभाव में है, तो उन्हें अलनगुडी जाकर इस मन्दिर में देवगुरु बृहस्पति के दर्शन कर आशीर्वाद अवश्य लेना चाहिए। यह मन्दिर भारत के दक्षिण में स्थित तमिलनाडु राज्य के थिरुवर जिले में स्थित है। यह स्थान कुम्भकोणम से 79 कि.मी. और तंजावूर से 50 कि.मी. की दूरी पर है। कुम्भकोणम् तक चेन्नई तथा बेंगलूरु से बस अथवा रेलमार्ग से पहुँचा जा सकता है। आगे का रास्ता सड़क मार्ग द्वारा तय करना होता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन नीदमंगलम् है, जो अलनगुडी से 7 कि.मी. दूर है। इस मन्दिर में गुरुवार को भक्तजनों की विशेष भीड़ रहती है, क्योंकि गुरुवार भगवान् बृहस्पति का प्रमुख दिन माना जाता है। 

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