Amla Navami [Akshay-Kushmanda Navami]
(02 November, 2022)
Kartik Shukla Navami is celebrated as Amla Navami. A fast is observed on this day and the Amla tree is worshipped. It is also known as 'Kushmanda Navami' or 'Akshaya Navami' and 'Dhatri Navami'. A resolution of fasting should be taken on this day in the morning. After bathing, meditating etc., sitting under the Amla tree facing east, perform Shodashopachar worship with the mantra 'Om Dhatryai Namah' and offer the ancestors by pouring a stream of milk into the root of the Amla tree with the following mantras:
पिता पितामहाश्चानये अपुत्रा ये च गोत्रिणः।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽक्षयं पयः।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवाः।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽक्षयं पयः।।
After this, tie the thread in the trunk of the Amla tree with the following mantra:
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नमः।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोऽस्तु ते।।
After this, perform aarti of the gooseberry tree with camphor or ghee-filled lamp and circumambulate it with the following mantra:
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे।।
After this, Brahmin food should also be done under the Amla tree and in the end, one should also sit near the Amla tree and eat food. Take a ripe Kumhada (Kushmanda) and place gems gold, silver or rupee etc. in it and make the following resolution:
ममाखिल-पापक्षय-पूर्वक-सुख-सौभाग्यदीनामुत्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डं दानमहं करिष्ये।
Thereafter, after tilak to a learned and virtuous brahmin, give Kushmanda with dakshina and pray the following:
कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितॄणां तारणाय च।।
For the protection of the ancestors, blankets etc. Urnavas (wool clothes) should also be given to a satpatra brahmin.
आँवला नवमी [अक्षय-कूष्माण्ड नवमी]
(02 नवम्बर, 2022)
कार्तिक शुक्ल नवमी को आँवला नवमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखा जाता है और आँवले के वृक्ष का पूजन किया जाता है। यह ‘कूष्माण्ड नवमी’ या ‘अक्षय नवमी’ और ‘धात्री नवमी’ के रूप में भी जानी जाती है। इस दिन प्रातःकाल व्रत का संकल्प लिया जाना चाहिए। तदुपरान्त स्नान-ध्यान आदि करने के पश्चात् आँवले के वृक्ष के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर ‘ॐ धात्र्यै नमः’ मन्त्र से षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मन्त्रों से आँवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें :
पिता पितामहाश्चानये अपुत्रा ये च गोत्रिणः।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽक्षयं पयः।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवाः।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽक्षयं पयः।।
इसके बाद आँवले के वृक्ष के तने में निम्नलिखित मन्त्र से सूत्र बाँधें :
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नमः।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोऽस्तु ते।।
इसके बाद कर्पूर या घृतपूर्ण दीप से आँवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मन्त्र से उसकी प्रदक्षिणा करें :
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे।।
इसके अनन्तर आँवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण-भोजन भी करवाना चाहिए और अन्त में स्वयं भी आँवले के वृक्ष के सन्निकट बैठकर भोजन करना चाहिए। एक पका हुआ कुम्हड़ा (कूष्माण्ड) लेकर उसके अन्दर रत्न सुवर्ण, रजत या रुपया आदि रखकर निम्न संकल्प करें :
ममाखिल-पापक्षय-पूर्वक-सुख-सौभाग्यदीनामुत्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डं दानमहं करिष्ये।
तदन्तर विद्वान् तथा सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणासहित कूष्माण्ड दे दें और निम्न प्रार्थना करें :
कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितॄणां तारणाय च।।
पितरों के शीतनिवारण के लिए यथाशक्ति कम्बल आदि ऊर्णवस् (ऊनीवस्त्र) भी सत्पात्र ब्राह्मण को देना चाहिए।