किस समय करें श्राद्ध?
हमारे धर्मशास्त्रों में सभी श्राद्धों के सही समय पर करने का विधान बताया गया है। यदि हम उक्त समय पर उक्त श्राद्ध को नहीं करते हैं, तो श्राद्ध में दिया गया भोजन हमारे पूर्वजों तथा पितरों को नहीं मिल पाता है। इससे पितरों को कष्ट और दु:ख प्राप्त होता है, अत: अपना कल्याण चाहने वाले मनुष्य को चाहिए कि वह सही समय पर श्राद्ध को प्रारम्भ करे। सही समय पर श्राद्ध करने से हमारी वंश उन्नति और हमारे पितरों को परम गति प्राप्त होती है। जब पूर्वाह्ण का समय चल रहा हो, तब हमें अन्वष्टका (वृद्धि) श्राद्ध करना चाहिए और जब अपराह्ण समय हो, तो हमें पितृश्राद्ध करना सही होता है तथा जब मध्याह्न का समय प्रारम्भ हो रहा हो, तो उसी समय पर हमें एकोद्दिष्ट श्राद्ध करना चाहिए। हमेशा प्रात:काल के समय ही अपनी वंश वृद्धि के निमित्त आभ्युदयिक श्राद्ध करना युक्तिसम्मत होता है। ध्यातव्य रहे कि एकोद्दिष्ट श्राद्ध के लिए हमेशा उसी तिथि को ग्रहण करना चाहिए, जो मध्याह्न तक व्याप्त हो रही हो। इस श्राद्ध में तिथि के ह्रास और वृद्धि का विचार नहीं करना चाहिए। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि व्रत के पारण में तथा मृत्यु में तात्कालिक तिथि ही ग्राह्य होती है तथा जो तिथि पूर्वाह्ण व्यापिनी हो, वह देवकार्य के लिए बहुत ही फलप्रद होती है और स्वयं ब्रह्मा ने अपराह्ण व्यापिनी तिथि पितृकार्य के लिए प्रशस्त कही है। पार्वण श्राद्ध अपराह्ण में किया जाता है, जिसका औसत समय 01:12 बजे से 03:36 बजे तक का है। महालय पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध पार्वण श्राद्ध हैं। इसलिए इन्हें अपराह्ण में किया जाना उचित होता है। कुतप काल भी श्राद्धकर्म के लिए शुभ माना गया है। इसका औसत समय 11:36 बजे से 12:24 बजे तक माना जाता है।