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When and how effective is Guruchandal Yoga?

22-April ,2023 | Comment 0 | gotoastro team

When and how effective is Guruchandal Yoga?

कब और कितना प्रभावी है गुरुचाण्डाल योग?


राहु की विभिन्न ग्रहों के साथ युति से बनने वाले योगों में गुरु-चाण्डाल योग सर्वाधिक प्रचलित  माना जा सकता है। सामान्यत: इसे गुरु के साथ राहु की युति के रूप में ही देखा जाता है, परन्तु गुरु की केतु के साथ युति भी गुरु-चाण्डाल योग का निर्माण करती है। सामान्य धारणा के अनुसार इस योग से गुरु के शुभ फलों की हानि होती है और जातक नास्तिक, अनैतिक आचरण करने वाला, धोखेबाज, व्यभिचारी, कुसंगति वाला, नीच कर्मों से आजीविका प्राप्त करने वाला इत्यादि  फल कहे जाते हैं। वास्तव में गुरु-चाण्डाल योग का यह सामान्यीकरण इसको अत्यन्त सीमित करने वाला ही कहा जाएगा, क्योंकि गुरु-चाण्डाल योग का प्रभाव क्षेत्र इतना विस्तृत है कि इस पर एक पृथक् पुस्तक की रचना की जा सकती है।
शास्त्रीय पृष्ठभूमि : सर्वार्थचिन्तामणि में गुरु-चाण्डाल योग को केवल 'चाण्डाल योग' कहते हुए इसकी परिभाषा निम्नानुसार की गई है : 
जीवे सकेतौ यदि वा सराहौ चाण्डालता पापनिरीक्षिते चेत्।        (सर्वार्थचिन्तामणि 9/39)
गुरु यदि केतु अथवा राहु के साथ स्थित हो और पापग्रह से द्रष्ट हो, तो जातक में चाण्डालता होती है।
जीवे राहुयुतेऽथवा शिखियुते पापेक्षिते नीचकृत्।                     (जातकपारिजात 6/6)
गुरु राहु अथवा केतु से युत हो और पापग्रहों से द्रष्ट हो, तो जातक नीचकर्म करने वाला होता है। 
शास्त्रीय परिभाषा के अनुसार गुरुचाण्डाल योग निम्नलिखित स्थितियों में निर्मित होता है :
1.    गुरु राहु अथवा केतु के साथ युत हो और
2.    गुरु की उक्त युति पर पापग्रह की दृष्टि हो।
आधुनिक मत : गुरु-चाण्डाल योग पर बहुत अधिक शोधकार्य आधुनिक ज्योतिष में भी नहीं हुआ है। इस सम्बन्ध में के.एन.राव एवं शिवराज शर्मा का शोधकार्य उल्लेखनीय है। काटवे, एम.सी. जैन, डी.पी. सक्सेना इत्यादि विद्वानों ने राहु पर विचार करते समय इसकी गुरु के साथ युति पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। इसलिए सर्वप्रथम आधुनिक विद्वानों के विचारों का उल्लेख करना प्रासंगिक प्रतीत हो रहा है।
के.एन.राव ने अपनी पुस्तक ‘Yogis, Destiny and the Wheel of Time’ में गुरु-चाण्डाल योग पर अपने गुरु योगी भास्करानन्दजी तथा स्वयं के शोध निष्कर्ष व्यक्त किए हैं। वे लिखते हैं कि “जन्मपत्रिका में गुरु और राहु एक साथ स्थित हों, तो गुरु-चाण्डाल योग होता है। उनके गुरुजी की मान्यता थी कि जब तक यह अशुभग्रह से द्रष्ट या युत नहीं हो, तब तक आधुनिक युग में यह बहुत खराब नहीं होता। यदि मंगल से द्रष्ट या युत हो, तो अत्यधिक खराब तथा शनि से द्रष्ट या युत हो, तो खराब होता है।
गुरु-चाण्डाल योग को उन्होंने अनेक श्रेणियों में विभक्त किया :
1.    सिंह एवं वृश्चिक लग्न में गुरु पंचमेश होता है। यदि इन लग्नों में गुरु-चाण्डाल योग हो और वह शनि अथवा मंगल से द्रष्ट या युत हो, तो अत्यधिक अशुभ फलदायक होता है। इसके परिणामस्वरूप जातक की सन्तान अपराधी होती है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को माँ सरस्वती की आराधना करनी चाहिए और इससे मानसिक शान्ति भी प्राप्त होती है।
    वृश्चिक और सिंह लग्न में यह योग यदि पंचम या नवम भाव में स्थित हो, तो यह पारिवारिक अभिशाप होता है, जो कि पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। इस प्रकार के परिवारों में अनेक बच्चों की मृत्यु होती है और जीवित बच्चों की पथभ्रष्टता सामान्य होती है।
2.    मेष एवं कर्क लग्न में गुरु जहाँ नवमेश होता है, वहाँ इस योग से मंगल की युति अलग मायने रखती है, जबकि शनि की युति अलग अर्थ रखती है।
3.    अन्य लग्नों में सर्वप्रथम इस योग की रोगोत्पन्न करने की क्षमता का परीक्षण करना चाहिए।
4.    गुरु-चाण्डाल योग 22736 प्रकार का हो सकता है।
शिवराज शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘The Mystery of Rahu in a Horoscope’ में गुरु-चाण्डाल योग के सम्बन्ध में निम्नलिखित शोध-निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं :
1. गुरु को सम्मानित आध्यात्मिक व्यक्ति मान सकते हैं और राहु को पथभ्रष्टकर्ता। यह योग राहु और गुरु की युति के साथ-साथ गुरु-केतु की युति तथा गुरु की राहु-केतु की धुरी में आने से भी बनता है। 
2. गुरु-चाण्डाल योग यदि पापग्रह से द्रष्ट या युत हो, तो अधिक प्रबल हो जाता है। गुरु-चाण्डाल योग व्यक्ति को सौम्य असहमति से लेकर तीव्र ईर्ष्यालु और हिंसक एवं भद्दी गाली देने वाला तक बना देता है।
3. गुरु-चाण्डाल योग का परीक्षण करते समय निम्नलिखित का ध्यान रखना चाहिए :
(क)    लग्न, जिससे गुरु का भाव स्वामित्व निर्धारित होता है।
(ख)    गुरु की भावगत स्थिति।
(ग)    गुरु से युत राहु अथवा केतु।
(घ)    गुरु-चाण्डाल योग पर पापग्रह (विशेषकर मंगल अथवा शनि) का प्रभाव।
(ङ)    गुरु एवं सम्बन्धित ग्रह का ग्रहबल।
(च)    गुरु-चाण्डाल योग की प्रबलता का परीक्षण।
4. गुरु-चाण्डाल योग पर सौम्यग्रह का प्रभाव उसकी अशुभता को कम करता है।
5. गुरु राहु से युत हो और किसी अन्य पापग्रह (मंगल अथवा शनि) से प्रभावित हो, तो केवल कन्या सन्तति देता है अथवा पुत्रों की तुलना में कन्या सन्तति अधिक होती है। यदि केवल पुत्र ही होता है, तो वह आदर्शन नहीं होता।
माणिकचन्द जैन ने अपनी पुस्तक ‘Rahu & Ketu in Predictive Astrology’ में यद्यपि गुरु-चाण्डाल योग की पृथक् से व्याख्या नहीं की है, परन्तु उन्होंने राहु की गुरु के साथ युति के सम्बन्ध में अपने विचार अवश्य व्यक्त किए हैं। वे लिखते हैं कि :
1.    राहु-गुरु की युति सिंह राशि में हो, तो दीर्घायु देता है।
2.    गुरु से द्रष्ट शनि और राहु-केतु की युति महान् योगी बनाती है।
3.    गुरु से केन्द्र अथवा त्रिकोण में स्थित राहु लेखक बनाता है। 
4.    राहु-गुरु की युति यदि अष्टम भाव में हो, तो जातक को उदर रोग होते हैं और नाभि के पास जन्मजात चिह्न होता है। 
5.    नवम भाव में वृषभ राशि में राहु-गुरु एवं शुक्र की युति हो, तो जातक दीर्घायु होता है।
6.    गुरु राहु अथवा केतु से युत हो, और उस पर किसी भी शुभ ग्रह का प्रभाव नहीं हो, तो जातक धर्म एवं जीवन के उच्चतर मूल्यों का निन्दक होता है, परन्तु यदि सौम्य ग्रहों की उस पर दृष्टि हो, तो जातक विद्वान् एवं धार्मिक व्यक्तियों का आदर करने वाला होता है। 
7.    चतुर्थ भाव में राहु-गुरु की युति हो और वह सौम्य ग्रहों से द्रष्ट हो, तो जातक धार्मिक एवं ईश्वर से डरने वाला होता है। वह धनी एवं समृद्ध होता है और अधिवक्ता के रूप में प्रसिद्ध होता है।
8.    केतु-गुरु जिस भाव में स्थित हों, उस भाव के शुभ फलों को समाप्त करते हैं। 
9.    गुरु राहु से स्व, उच्च अथवा मित्र राशि में प्रथम, पंचम अथवा नवम भाव में स्थित हो, तो जातक उच्च, प्रगति करता है तथा वह सभी से सम्मानित होता है।
10.    मकर लग्न में नवम भाव में राहु-गुरु की युति हो, तो जातक की उन्नति तो होती है और वह सभी प्रकार की भौतिक सम्पन्नता से युक्त होता है, परन्तु उसकी किसी न किसी सन्तान की मृत्यु होती है।
11.    राहु-पंचम भाव में गुरु से युत हो, तो सन्तति की हानि या गर्भपात होता है।
ह.ने. काटवे ने भी राहु-केतु पर अच्छा काम किया है। उनकी कालजयी रचना ‘राहु-केतु एवं ग्रहण विचार’ में यद्यपि गुरु-चाण्डाल योग को पृथक् से विवेचित नहीं किया गया है, परन्तु उन्होंने राहु और गुरु की युति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त किए हैं। वे लिखते हैं कि इनकी युति शुभ सम्बन्ध में हो, तो बहुत सम्मान मिलता है। अधिकार की इच्छा नहीं होते हुए भी अधिकार मिलता है। लोकप्रिय होकर विधानसभा आदि का सदस्य चुना जाता है। बुद्धिमान् एवं होशियार होता है। यह युति प्रथम, पंचम, नवम एवं दशम भाव में बहुत अच्छा फल देती है। द्वितीय चतुर्थ, सप्तम एवं एकादश में कुछ कम फल मिलता है। शिक्षा कम होती है। तृतीय, षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश इन स्थानों में सम्पत्ति कम एवं शिक्षा अधिक होती है। ... साधारणत: गुरु ब्राह्मणवर्ण का और राहु चाण्डाल जाति का माना जाता है, अत: इनकी युति गुरु-चाण्डाल योग के रूप में अशुभ मानी जाती है, किन्तु अनुभव में यह शुभ फल देने वाली सिद्ध हुई है। इन ग्रहों की युति अथवा प्रतियोेग के फलस्वरूप कोई व्यक्ति बहुत धनी या कीर्तिमान हो, तो उसके वंशजों की स्थिति प्राय: बिगड़ती जाती है। यदि जातक को कीर्ति मिली हो और धन न मिला हो, तो अगली पीढ़ी के लोग शिक्षा पूरी कर अच्छा धनार्जन करते हैं, परन्तु उन्हें कीर्ति नहीं मिलती।
विश्लेषण : ज्योतिषशास्त्र में ऐसे कई योग हैं, जो पर्याप्त अध्ययन के अभाव के कारण कई बार आलोचना के शिकार हो जाते हैं। उसी प्रकार के योगों में गुरु चाण्डाल योग है। गुरु-चाण्डाल योग की परिभाषा केवल युति तक सीमित होकर रह गई है। राहु अथवा केतु के साथ गुरु की युति हो, तो उसे गुरु-चाण्डाल योग कहा जाता है और उसके अशुभ फल इतने अधिक माने जाते हैं कि कुण्डली को ही दूषित या व्यक्ति को मिलने वाले सभी अशुभ फलों का मुख्य कारक इस योग को मान लिया जाता है। 
गुरु-चाण्डाल योग में योग निर्माता ग्रहों (गुरु एवं राहु अथवा केतु) की युति अधिकतम तेरह माह तक रह सकती है। इस प्रकार यह कहना हास्यास्पद स्थिति होगी कि उक्त अवधि में जन्म लेने वाले सभी व्यक्ति कथित गुरु-चाण्डाल योग के प्रभाव में रहेंगे, इसलिए गुरु-चाण्डाल योग का निरीक्षण निम्नलिखित मापदण्डों से गुजरकर करना चाहिए :
1.    गुरु का भाव स्वामित्व।
2.    चाण्डाल योग के साथ गुरु की भावगत स्थिति।
3.    चाण्डाल योग के साथ गुरु की राशिगत स्थिति।
4.    गुरु का बल; निर्बल होने पर अधिक अशुभ तथा बली होने पर कम अशुभ। तृतीय, षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश में विपरीत।
5.    चाण्डाल योग पर सौम्य या पापग्रहों का प्रभाव। 
6.    गुरु एवं राहु-केतु की वर्गगत स्थिति।
इन सामान्य तथ्यों के साथ गुरु चाण्डाल योग का परीक्षण करना चाहिए और उसके उपरान्त ही निष्कर्ष निकालना चाहिए।
‘भारतीय ज्योतिष एवं वैदिक विज्ञान संस्थान’ में हुए एक अध्ययन में गुरु-चाण्डाल योग के सन्दर्भ में निम्नलिखित निष्कर्ष प्राप्त हुए :
(क) विभिन्न भावों में गुरु-चाण्डाल योग :
1. प्रथम भाव : प्रथम भाव में गुरु-चाण्डाल योग न केवल स्वभाव एवं स्वास्थ्य पर वरन् अन्य क्षेत्रों पर भी प्रभाव डालता है। मेष, वृश्चिक, तुला एवं कुम्भ लग्न में जातक को मिथ्याभिमानी, जिद्दी, धर्म के प्रति तार्किक दृष्टिकोण रखने वाला, ईर्ष्यालु तथा किसी दीर्घावधि रोग से पीड़ित करता है। सिंह एवं मकर लग्न में प्रथम भाव में स्थित गुरु-चाण्डाल योग जातक को हिंसक बनाता है। वृषभ, मिथुन, कन्या एवं मीन लग्न में प्रथम भावस्थ गुरु-चाण्डाल योग जातक को मनोरोगों से पीड़ित करता है और जातक शीघ्र ही विचलित हो जाता है अथवा तनाव की अधिकता होने पर अवसाद आदि स्थिति में आ जाता है। कर्क और धनु लग्न में गुरु-चाण्डाल योग के बहुत अधिक अशुभ प्रभाव नहीं देखे गए हैं।
2. द्वितीय भाव : सामान्यत: सभी लग्नों में द्वितीय भावस्थ गुरु-चाण्डाल योग जातक के वैवाहिक सुख में कमी करता है। उसे पारिवारिक कलह का सामना करना पड़ता है। शिक्षण, धर्मगुरु, वक्ता, ज्योतिष, राजनीति आदि क्षेत्रों वाले जातक अधिक सफल और धन एवं यश कमाते देखे गए हैं।

एक महिला जातिका जन्म दिनांक : 10 नवम्बर, 1983; जन्म समय : 05:51 बजे; जन्म स्थान : जयपुर (राज.)
जन्मकुण्डली

कॉलेज में व्याख्याता इस जातिका का विवाह जून, 2012 में हुआ। विवाह के बाद से ही पति से झगड़ा होने लगा और नवम्बर, 2012 में राहु में राहु में मंगल की दशा में पीहर आ गई। राहु में गुरु की अन्तर्दशा में जनवरी, 2013 में कोर्ट में केस किया। राहु में गुरु में शुक्र की अन्तर्दशा में मार्च, 2014 में आपसी सहमती से तलाक हो गया। 
3. तृतीय भाव : मेष, वृषभ, कर्क, सिंह, वृश्चिक, धनु, मकर एवं मीन लग्न वाले जातक अपेक्षाकृत अधिक धार्मिक, गुरु के प्रति आस्था रखने वाले, तीर्थयात्रा अथवा सत्संग में भाग लेने वाले होते हैं। सामान्यत: सभी लग्नों में जातक को भ्रातृसुख कम प्राप्त होता है। वृषभ, तुला एवं मकर लग्न वाले जातक में अधिकनायकवादी एवं हिंसक प्रवृत्ति भी उत्पन्न होती है। ऐसा जातक अपने विचारों के प्रति कट्टर भी होता है।

एडोल्फ हिटलर जन्म दिनांक : 20 अप्रैल, 1889; जन्म समय : 18:30 बजे; जन्म स्थान : ब्रॉनाउ (आॅस्ट्रिया)
जन्मकुण्डली

हिटलर की कुण्डली में तृतीय भाव में गुरु-चाण्डाल योग अधिनायकवादी एवं कट्टरविचारधारा की प्रवृत्ति को जन्म दे रहा है। साथ ही भ्रातृसुख को भी कम कर रहा है। राहु की महादशा में हिटलर का उत्थान हुआ और इस दशा के अन्त में इसका पतन हो गया। राहु में गुरु की अन्तर्दशा में वह अपने राष्ट्र का सर्वेसर्वा बन गया।

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जन्म दिनांक : 18 दिसम्बर, 1878; जन्म समय : 05:20 बजे; जन्म स्थान : थोरापल्ली (त.ना.)
जन्मकुण्डली

तृतीय भाव में बन रहे गुरु-चाण्डाल योग पर मंगल की पूर्ण दृष्टि है। गुरु नीच राशिस्थ है। तृतीयेश एवं पंचमेश के मध्य परस्पर राशि परिवर्तन सम्बन्ध बन रहा है। वृश्चिक लग्न के तृतीय भाव में बनने वाला गुरु-चाण्डाल योग सामान्यत: अनुकूल फलप्रद होता है। यही कारण है कि राजगोपालाचारी को जहाँ भ्रातृ एवं सन्तानसुख पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हुआ, वहीं वे प्रतिष्ठित एवं यशस्वी राजनेता माने जाते हैं।
4. चतुर्थ भाव : ऐसे जातक राजनीति, इंजीनियरिंग, कम्प्यूटर, शिक्षा आदि क्षेत्रों में आजीविका प्राप्त करते हैं। माता अथवा पिता की मृत्यु अपेक्षाकृत जल्दी एवं अचानक हो जाती है। क्षुद्र साधनाओं अथवा सकाम साधनाओं में प्रवृत्त होते हैं। सन्तान सुख प्राय: कम मिलता है।

विजयलक्ष्मी पण्डित जन्म दिनांक : 18 अगस्त, 1900; जन्म समय : 06:50 बजे; जन्म स्थान : इलाहाबाद (उ.प्र.)
जन्मकुण्डली

प्रस्तुत कुण्डली के चतुर्थ भाव में गुरु-चाण्डाल योग बन रहा है। उस पर चन्द्रमा का दृष्टि प्रभाव है। विजयलक्ष्मी पण्डित राजनेता एवं राजनयिक रही हैं। वे संयुक्त राष्ट्र महासभा की पहली अध्यक्षा रही हैं। सन्तानसुख कम मिला, एक ही पुत्री है।
5. पंचम भाव : सभी लग्नों में सन्तान से सम्बन्धित समस्याएँ आती हैं। गर्भपात, सन्तान की बचपन में मृत्यु, पर्याप्त सन्तान सुख का अभाव जैसे अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। वृद्धावस्था में सन्तान से दूरी हो जाती है या तो यह दूरी अलग रहने के कारण होती है अथवा मतभिन्नता के कारण होती है। कई बार यह योग पूर्वजन्म के किसी अभिशाप को भी सूचित करता है, जिससे शिक्षा, सन्तान एवं अन्य क्षेत्रों में प्रगति अवरुद्ध हो जाती है। पंचम भावस्थ गुरु-राहु की युति पूर्वजन्म के पुण्यों के कारण अपार सफलता भी दिलाती है, परन्तु इसके बहुत कम उदाहरण मिलते हैं।

माला सिन्हा जन्म दिनांक : 11 नवम्बर, 1936; जन्म समय : 01:50 बजे; जन्म स्थान :  कोलकाता (प. बंगाल)
जन्मकुण्डली

प्रसिद्ध अभिनेत्री माला सिन्हा की जन्मपत्रिका में पंचम भाव में गुरु-चाण्डाल योग निर्मित हो रहा है। उस पर मंगल की पूर्ण दृष्टि है। केवल एक ही सन्तान है और वह भी पुत्री। इनका विवाह सन् 1968 में हुआ था।
6. षष्ठ भाव : षष्ठ भाव में जहाँ गुरु-चाण्डाल योग प्राय: सभी लग्नों में वैवाहिक एवं सन्तान सुख दोनों को ही कम करता है। इसके अतिरिक्त जातक कितना ही अच्छा क्यों न हो, उसे जीवनभर शत्रुओं एवं आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातक न्यायाधीश, अधिवक्ता आदि कानून से सम्बन्धित क्षेत्रों में सफल होते हैं। मेष, मिथुन, कर्क, वृश्चिक एवं मीन लग्न वाले व्यक्ति विद्वान् भी होेते हैं और उनकी विद्वत्ता के कारण यश भी प्राप्त होता है।

पं. जवाहरलाल नेहरू जन्म दिनांक : 14 नवम्बर, 1889; जन्म समय : 23:03 बजे; जन्म स्थान :  इलाहाबाद (उ.प्र.)
जन्मकुण्डली

उपर्युक्त कुण्डली में षष्ठ भाव में गुरु-केतु की युति से गुरु-चाण्डाल योग बन रहा है। उस पर मंगल का पूर्ण दृष्टि प्रभाव है। नेहरू जी बेरिस्टर थे, विद्वान् थे और अपनी विद्वत्ता से प्रसिद्ध भी थे। उनके आलोचकों की भी कोई कमी नहीं है। उनके एक ही सन्तान इन्दिरा गाँधी थी। एक पुत्र हुआ था, जिसकी 1924 में मृत्यु हो गई। पत्नी की भी फरवरी, 1936 में मृत्यु हो गई।
7. सप्तम भाव : सप्तम भाव में गुरु-चाण्डाल योग जातक में धार्मिक भावना को तीव्र करता है और संन्यास की ओर प्रवृत्त करता है। ऐसे जातक के धार्मिक विचार क्रान्तिकारी होते हैं। वह कठोर परिश्रमी होता है। पारिवारिक एवं वैवाहिक सुख कम होता है, परन्तु इसके लिए उसमें असन्तोष का भाव नहीं होता। इस प्रकार के फल मुख्यत: मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर एवं कुम्भ लग्न में देखे गए हैं।

एक जातिका जन्म दिनांक : 25 अक्टू., 1979; जन्म समय : 15:34 बजे; जन्म स्थान :  दिल्ली
जन्मकुण्डली

जातिका की अरेंज मैरिज हुई, परन्तु पति के किसी और से संबंध होने के कारण दोनों आपसी सहमति से बंधनमुक्त हो गए। जातिका ने दूसरा विवाह नहीं किया।

मधुबाला जन्म दिनांक : 14 फरवरी, 1933; जन्म समय : 07:00 बजे; जन्म स्थान :  दिल्ली
जन्मकुण्डली

प्रसिद्ध अभिनेत्री मधुबाला की जन्मपत्रिका में सप्तम भाव में केतु-मंगल एवं गुरु की युति है। उस पर सूर्य एवं बुध का पूर्ण दृष्टि प्रभाव भी है। पूर्व में जिनसे विवाह करना चाहती थी, उनसे विवाह नहीं हुआ। बाद में राहु में सूर्य की अन्तर्दशा में सन् 1960 में किशोर कुमार से विवाह हुआ, परन्तु वैवाहिक जीवन केवल नौ वर्ष ही रहा। फरवरी, 1969 में उनकी मृत्यु हो गई।

गुरुनानक देव जन्म दिनांक : 14 अप्रैल, 1469; जन्म समय : 00:55:40 बजे; जन्म स्थान :  तलवण्डी (पाक.)
जन्मकुण्डली

गुरु नानकदेव की जन्मपत्रिका में गुरु-केतु की युति सप्तम भाव में गुरु-चाण्डाल योग बन रहा है। वे गृहस्थ संन्यासी थे और इनके धार्मिक विचार भी क्रान्तिकारी हैं।
8. अष्टम भाव : अष्टम भावस्थ गुरु-चाण्डाल योग जातक को प्राच्य विद्याओं, परामनोविज्ञान, तन्त्र, ज्योतिष, धर्म इत्यादि से जोड़ता है। वह किसी भी क्षेत्र में क्यों न हो, इनके प्रति उसकी अभिरुचि होती है। सामान्यत: ऐसे जातक शोध प्रवृत्ति वाले होते हैं। धर्म एवं प्राचीन मूल्यों के प्रति उनकी अपनी अवधारणा होती है। वे हर तथ्य को अपनी कसौटी पर कसने के पश्चात् ही स्वीकार करते हैं। ऐसे जातकों को उदर रोग अथवा कोई घातक रोग होने की आशंका अधिक होती है।

कामराज जन्म दिनांक : 15 जुलाई, 1903; जन्म समय : 08:15 बजे; जन्म स्थान :  विरुदुनगर (त.ना.)
जन्मकुण्डली

अष्टम भाव में गुरु-केतु की युति तथा उस पर मंगल एवं शनि के दृष्टि प्रभाव के कारण गुरु-चाण्डाल योग बन रहा है। बचपन में पिता की मृत्यु होने के कारण माता को सहयोग देने के लिए स्कूल छोड़ना पड़ा। सन् 1920 में कांग्रेस की सदस्यता लेकर स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। बाद में तमिलनाडु एवं केन्द्र में दबंग नेता के रूप में प्रसिद्धि पायी।
9. नवम भाव : नवम भाव में गुरु-चाण्डाल योग के सम्बन्ध में सामान्यत: यह मान्यता है कि ऐसा व्यक्ति नास्तिक होता है, परन्तु अध्ययन में यह तथ्य सही सिद्ध नहीं हुआ। दोनों प्रकार के व्यक्ति देखे गए। महानास्तिक भी देखे गए और ऐसे व्यक्ति भी देखे गए, जो महासाधक थे। ऐसा किसी लग्न विशेष में नहीं था। इसके विशेष कारण भी स्पष्ट नहीं हुए। ऐसा प्रतीत होता है कि नवम भावस्थ गुरु-चाण्डाल योग प्रारब्ध के अनुसार फल प्रदान करता है। यह कुल के किसी अभिशाप की ओर भी संकेत करता है।

देशबन्धु चितरंजनदास जन्म दिनांक : 05 नवम्बर, 1890; जन्म समय : 06:45 बजे; जन्म स्थान :  विक्रमपुर, कोलकाता
जन्मकुण्डली

जन्मपत्रिका में नवम भाव में राहु एवं गुरु की युति है तथा उस पर शनि का पूर्ण दृष्टि प्रभाव है। 
10. दशम भाव : दशम भाव में स्थित गुरु-चाण्डाल योग सामान्यत: कॅरिअर में बाधक नहीं होता। परिवार के सम्बन्ध में इसके अशुभ फल अवश्य प्राप्त होते हैं। माता अथवा पिता की अचानक अथवा कम आयु में मृत्यु हो जाती है।
11. एकादश भाव : एकादश भाव में गुरु-चाण्डाल योग सामान्यत: शुभ फल प्रदान करता है। ऐसा जातक अत्यधिक उन्नति प्राप्त करता है और महाधनी होता है। 

रामकृष्ण डालमिया जन्म दिनांक : 07 अप्रैल, 1893; जन्म समय : 11:26 बजे; जन्म स्थान :  चिड़ावा (राज.)
जन्मकुण्डली

रामकृष्ण डालमिया की जन्मपत्रिका में एकादश भाव में गुरु-राहु की युति है। जीवन में अपार धन कमाया, एक से अधिक विवाह हुए और एक बार जेलयात्रा भी हुई। 
आमिर खान, जुबिन मेहता, मीना कुमारी इत्यादि सफल व्यक्तियों की जन्मपत्रिका में भी एकादश भाव में इस योग का निर्माण हो रहा है। 
12. द्वादश भाव : द्वादश भाव में गुरु-चाण्डाल योग सामान्यत: शारीरिक कष्टों में वृद्धिकारक सिद्ध हुआ। ऐसे जातकों की वृद्धावस्था तो रोगकारक होती है, वहीं उन्हें कोई दीर्घावधि रोग होगा है। यह प्रगति में बाधाकारक भी सिद्ध हुआ। 
(ख) गुरुचाण्डाल योग पर शुभ ग्रह का प्रभाव इसके अशुभ फलों को कम करता है।
(ग) गुरुचाण्डाल योग पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव केवल भावगत अशुभ स्थिति होने पर भी अशुभ प्रभाव उत्पन्न करता है, अन्यथा इसके कोई विशेष अशुभ फल प्राप्त नहीं होते। 
(घ) गुरु-चाण्डाल योग का सन्तान, शिक्षा एवं धन पर मुख्य रूप से प्रभाव पड़ता है। स्त्री जातक के सन्दर्भ में वैवाहिक सुख पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।
(ङ) गुरु-चाण्डाल योग का सम्बन्ध यदि पंचम भाव अथवा पंचमेश से बन रहा हो, तो जातक के अल्प सन्तति होती है और वह सामान्यत: पुत्री होती है। यदि सन्तति अधिक हो, तो उस स्थिति पुत्रों की तुलना में पुत्रियों की संख्या अधिक होती है। देखिए विजयलक्ष्मी पण्डित, माला सिन्हा, पं. जवाहरलाल नेहरू की जन्मपत्रिकाएँ।
(ङ) गुरु-चाण्डाल योग होने पर जीवन में कभी न कभी एक ऐसा अवसर आता है, जब व्यक्ति को अत्यधिक आत्मग्लानि अथवा अपयश अथवा लांछन का सामना करना पड़ता है। रामकृष्ण डालमिया का उदाहरण स्पष्ट है।
(च) गुरु-चाण्डाल योग का शुभाशुभ परिणाम योग निर्माता ग्रहों एवं इनसे युत या इनको देखने वाले ग्रहों की दशा-अन्तर्दशा में प्राप्त होता है। हिटलर राहु की दशा में ही उन्नति के शिखर पर पहुँचा, वहीं इसकी दशा में ही उसका पतन हो गया।
(छ) गुरु-चाण्डाल योग का प्रभाव जीवन पर तब अत्यधिक पड़ता है, जब व्यक्ति इस योग से सम्बन्धित दशाओं के प्रभाव में 14 वर्ष की अवस्था से लेकर 35 वर्ष की अवस्था के मध्य आता है।
(ज) गुरु-चाण्डाल योग राजनीति, तकनीकी एवं सामाजिक सेवा इत्यादि क्षेत्र में उन्नति दिलाता है, जबकि इसका सम्बन्ध लग्न, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ, दशम एवं एकादश भाव से हो। यह उन्नति योगनिर्माता ग्रहों की दशा-अन्तर्दशा में होती है। 
इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह जानना चाहिए कि गुरु-चाण्डाल योग कब और कितना प्रभावी है? इस योग पर और भी अध्ययन की आवश्यकता है। इस योग को भी अन्य योगों की भाँति एक योग मानना चाहिए। केवल इसी के आधार पर कुण्डली का अध्ययन करना भूल होगी। कुण्डली के अध्ययन में ‘समग्रता का दृष्टिकोण’ अपनाना चाहिए।

When and how effective is Guruchandal Yoga?
Among the yogas formed by the conjunction of Rahu with various planets, Guru-Chandala yoga can be considered as the most common. It is usually seen as the conjunction of Rahu with Guru, but the conjunction of Guru with Ketu also forms the Guru-Chandala yoga. According to the general belief, this yoga causes the loss of the auspicious fruits of the Guru and the Jataka is said to be an atheist, immoral, cheater, adulterer, inconsistent, earning a living from lowly deeds, etc. fruits. In fact, this generalization of Guru-Chandala Yoga would be said to be very limiting, because the sphere of influence of Guru-Chandala Yoga is so wide that a separate book could be written on it.
Classical background
In Sarvarthachintaman, Guru-Chandala Yoga is defined as 'Chandala Yoga' only:
If the living being is sacked or appreciated, the prostitute is observed to be sinful.
Sarvarthachintamani (9/39)
If the Guru is situated with Ketu or Rahu and is seen from the planet of sin, then the Jataka has Chandala.
If the living being is in conjunction with Rahu or with the peacock, he is a lowly person.
(Jatakaparijat 6/6)
If the Guru is conjunct with Rahu or Ketu and is seen by the sinful planets, the Jataka is a doer of lowly deeds.
According to the classical definition, Guru Chandal Yoga is formed in the following conditions:
1. Guru is conjunct with Rahu or Ketu and
2. The Guru has the sight of the Papagraha on the said conjunction.
Modern opinion
Much research on Guru-Chandala yoga has not been done in modern astrology either. The research work of KN Rao and Shivraj Sharma is noteworthy in this regard. Katway, M.C. Jain, D.P. Saxena and other scholars have expressed their views on the conjunction of Rahu with its Guru when considering it. It therefore seems pertinent to mention first of all the views of modern scholars.
In his book ‘Yogis, Destiny and the Wheel of Time’, KN Rao has expressed the research findings of his Guru Yogi Bhaskaranandaji and himself on Guru-Chandala Yoga. He writes that “If Guru and Rahu are situated together in the birth chart, there is Guru-Chandala yoga. His Guruji believed that unless it was seen or conjunct with an evil planet, it would not be very bad in the modern age. If it is seen or conjunct with Mars, it is very bad and if it is seen or conjunct with Saturn, it is bad.
He divided Guru-Chandala yoga into several categories:
1. Guru is in Panchamesh in Leo and Scorpio Lagna. If there is a Guru-Chandala conjunction in these Lagnas and it is seen or conjunct with Saturn or Mars, it is extremely ominous. As a result, the child of the Jataka is a criminal. Therefore, such a person should worship Maa Saraswati and this also gives mental peace.
If this yoga is situated in the fifth or ninth house in Scorpio and Leo Lagna, it is a family curse, which continues from generation to generation. Many children die in this type of families and the waywardness of surviving children is common.
2. In Aries and Cancer Lagna where Guru is in Navamesh, the conjunction of Mars with this yoga has a different meaning, while the conjunction of Saturn has a different meaning.
3. In other Lagnas, the disease-causing ability of this yoga should first be tested.
4. Guru-Chandala yoga can be of 22736 types.
Shivraj Sharma in his book ‘The Mystery of Rahu in a Horoscope’ has presented the following research findings regarding Guru-Chandal yoga:
1. Guru can be considered as a respected spiritual person and Rahu as a misleader. This yoga is formed by the conjunction of Rahu and Guru as well as the conjunction of Guru-Ketu and Guru coming into the axis of Rahu-Ketu.
2. Guru-Chandala Yoga becomes more dominant if seen or conjunct with Papagraha. The guru-chandal yoga makes a person range from benign disagreeable to intensely jealous and violent and nasty abusive.
3. The following should be taken into consideration while examining Guru-Chandala Yoga:
(a) Lagna, which determines the Bhava ownership of the Guru.
(b) The emotional state of the Guru.
(c) Rahu or Ketu conjunct Guru.
(d) Effect of Papagraha (especially Mars or Saturn) on Guru-Chandala Yoga.
(e) The planetary force of Guru and the planet concerned.
(f) Testing the strength of Guru-Chandala Yoga.
4. The influence of Soumyagraha on Guru-Chandala Yoga reduces its ominousness.
5. If the Guru is conjunct with Rahu and is influenced by another sinful planet (Mars or Saturn), it gives only daughter children or there are more daughter children than sons. If there is only a son, he is not an ideal.
Although Manikchand Jain in his book ‘Rahu & Ketu in Predictive Astrology’ does not explain Guru-Chandala yoga separately, he does express his views regarding the conjunction of Rahu with Guru. He writes:
1. Rahu-Jupiter conjunction in Leo, gives longevity.
2. The conjunction of Saturn and Rahu-Ketu seen from the Guru makes a great yogi.
3. Rahu in the center or trine from Jupiter makes the author.
4. If the conjunction of Rahu-Jupiter is in the eighth house, the Jataka has abdominal diseases and has a birthmark near the navel.
5. If Rahu-Jupiter and Venus are in conjunction in Taurus in the ninth house, the Jataka has long life.
6. If the Guru is conjunct Rahu or Ketu, and is not influenced by any auspicious planet, the Jataka is a detractor of Dharma and the higher values of life, but if the benign planets aspect him, the Jataka is learned and religious is respectful of individuals.
7. If Rahu-Jupiter is in conjunction in the fourth house and he is seen by gentle planets, then the Jataka is religious and God-fearing. He becomes rich and prosperous and famous as an advocate.
8. Ketu-Guru eliminates the auspicious fruits of the bhava in which they are situated.
9. If the Guru is in the first, fifth or ninth house in his own, higher or friendly sign from Rahu, the Jataka makes higher, progress and he is respected by all.
10. If Rahu and Jupiter are in conjunction in the ninth house in Capricorn Lagna, the Jataka does advance and is endowed with all kinds of material prosperity, but some of his children die.
11. If Rahu is conjunct with Guru in the fifth house, there is loss of children or abortion.
H.N. Katwe has also done a good job on Rahu-Ketu. In his timeless work ‘Rahu-Ketu and Eclipse Thoughts’, although the Guru-Chandala yoga is not discussed separately, he does express his views on the conjunction of Rahu and Guru. He writes that if their union is in an auspicious relationship, it is very respectful. Even though you don't want the right, you get the right. He becomes popular and is elected as a member of the Assembly. is intelligent and smart. This combination gives very good results in the first, fifth, ninth and tenth houses. The second, fourth, seventh and eleventh yield somewhat less fruit. There is little education. The third, sixth, eighth and twelfth places have less wealth and more education. ... Generally Guru is considered to be of Brahmin caste and Rahu of Chandala caste, therefore their conjunction is considered ominous as Guru-Chandala yoga, but in experience it has proved to be auspicious. If a person is very rich or famous as a result of the conjunction or competition of these planets, the condition of his descendants often deteriorates. If the Jataka has got fame and not wealth, the next generation completes education and earns good wealth, but they do not get fame.
Analysis : There are many yogas in astrology, which are often criticized for lack of adequate study. Among the same types of yogas is Guru Chandal Yoga. The definition of Guru-Chandala yoga has been limited to union. If Guru is in conjunction with Rahu or Ketu, it is called Guru-Chandala Yoga and its evil fruits are considered to be so high that the horoscope itself is contaminated or the main factor of all the evil fruits received by the person is.
In Guru-Chandala yoga, the conjunction of the yoga-making planets (Jupiter and Rahu or Ketu) can last for a maximum of thirteen months. Thus, it would be a ridiculous position to say that all persons born in the said period would be under the influence of the alleged Guru-Chandala Yoga, therefore the Guru-Chandala Yoga should be inspected by going through the following criteria:
1. Guru's sense of ownership.
2. The emotional position of the Guru with Chandala Yoga.
3. Zodiac position of Guru with Chandal Yoga.
4. The strength of the Guru; More ominous when weak and less ominous when strong. opposite in the third, sixth, eighth and twelfth.
5. Effect of gentle or sinful planets on Chandala Yoga.
6. Class position of Jupiter and Rahu-Ketu.
With these general facts, Guru Chandala Yoga should be examined and conclusions drawn only after that.
A study conducted at the Indian Institute of Astrology and Vedic Sciences found the following findings in the context of Guru-Chandala yoga:
(a) Guru-Chandala Yoga in various moods:
1. First House: Guru-Chandala Yoga in the first house affects not only temperament and health but also other areas. In Aries, Scorpio, Libra and Aquarius, the Jataka is hypocritical, stubborn, has a logical view of religion, is jealous and suffers from some long-term disease. Guru-Chandala Yoga in the first house in Leo and Capricorn Lagna makes the Jataka violent. Guru-Chandala Yoga in the first house in Taurus, Gemini, Virgo and Pisces Lagna afflicts the Jataka with psychiatric diseases and the Jataka quickly becomes distracted or in a state of depression etc. when stress is excessive. There are not many ominous effects of Guru-Chandala yoga in Cancer and Sagittarius Lagna.
2. Second Bhava: Generally, Guru-Chandala Yoga in the second house in all Lagnas reduces the marital happiness of the Jataka. He faces family strife. Jatakas in the fields of teaching, religious leaders, speakers, astrology, politics etc. have been seen to be more successful and earn wealth and fame.

A female race Date of Birth: November 10, 1983 Time of Birth: 05:51 p.m Place of Birth: Jaipur (Raj.)
Birth horoscope

The college lecturer got married in June, After marriage, she started having quarrels with her husband and in November, 2012, Pehar came to Mars in Rahu. In January, 2013, he filed a case in court in the inner state of Guru in Rahu. They got divorced by mutual consent in March, 2014 under the interposition of Venus in Jupiter in Rahu.
3. Third house: Aries, Taurus, Cancer, Leo, Scorpio, Sagittarius, Capricorn and Pisces are relatively more religious, have faith in the guru, participate in pilgrimage or satsang. Generally, in all Lagnas, the Jataka gets less brotherly happiness. Jatakas in Taurus, Libra and Capricorn also develop heroic and violent tendencies. Such a Jataka is also fanatical about his ideas.

Adolf Hitler Date of Birth: April 20, 1889 Birth time: 6:30 p.m Place of Birth: Bronau (Austria)
Birth horoscope

Guru-Chandala yoga in the third house in Hitler's horoscope is giving rise to authoritarian and radical ideology. It is also reducing fraternal happiness. Hitler rose in the Mahadasha of Rahu and fell at the end of this Dasha. In the inner state of the Guru in Rahu, he became the servant of his nation.

Chakravarti Rajagopalachari Date of Birth: December 18, 1878; Birth time: 05:20 p.m; Place of Birth: Thorapally (T.N.)
Birth horoscope

Mars has full sight on the Guru-Chandala yoga forming in the third house. Jupiter is in the lower sign. There is a mutual sign change relationship between Tritiyash and Panchamesh. Guru-Chandala yoga formed in the third house of Scorpio Lagna is usually favorable. That is why Rajagopalachari, while he enjoyed brotherly and childish pleasures in abundance, is considered to be a distinguished and illustrious politician.
4. Fourth house: Such Jatakas earn a living in politics, engineering, computers, education and other fields. The mother or father dies relatively quickly and suddenly. They engage in petty pursuits or lustful pursuits. Child happiness is often less available.

Vijayalakshmi Pandit Date of Birth: August 18, 1900; Birth time: 06:50 p.m; Place of Birth: Allahabad (UP)
Birth horoscope

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