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How to do Ghatasthapana and Durga Puja?

21-September ,2022 | Comment 0 | gotoastro

How to do Ghatasthapana and Durga Puja?

शारदीय नवरात्र-2022
कैसे करें घटस्थापना-दुर्गापूजा?


सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख होकर रेशम, कम्बल, ऊन या कुशा के आसन पर बैठें। शिखाबन्धन करें एवं तिलक लगाएँ।
आचमन एवं पवित्रीकरण : अब आचमन करें। आचमन से मन पवित्र होता है और पूजन करने की योग्यता हमें प्राप्त होती है। निम्नलिखित मन्त्रोच्चारण के साथ तीन बार आचमन करें :
ॐ केशवाय नमः।
ॐ माधवाय नमः।
ॐ नारायणाय नमः।
आचमन के बाद 'ॐ हृषीकेशाय नमः' बोलकर हाथ धो लें। इसके पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र के साथ स्वयं पर तथा सामग्री पर जल का प्रोक्षण करते हुए पवित्र करें :
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु।
भद्रसूक्त/स्वस्तिवाचन : इसके बाद सुपारी पर मौली लपेट कर गणेशजी का प्रतीक बनाएँ और उन्हें चौकी पर अक्षत रखकर उस पर स्थापित करें और स्वस्तिवाचन का पाठ करें। स्वस्तिवाचन से वातावरण में व्याप्त अशुभ शक्तियाँ निष्प्रभावी होती हैं और मन में शान्ति एवं एकाग्रता में वृद्धि होती है। स्वस्तिवाचन हेतु हाथ में थोड़े अक्षत एवं पुष्प लें और निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करें : 
हरि ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः। देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे।। देवानां भद्रा सुमतिर्ॠजूयतां देवानाꣳ रातिरभि नो निवर्तताम्। देवानांꣳ सख्यम्पसेदिमा वयं देवा न आयु: प्रतिरन्तु जीवसे।। तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्त्रिधम्। अर्यमणं वरुणꣳ सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत्।। तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः। तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम्।। तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्यमवसे हूमहे वयम्। पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये॥ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।। पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं यावानो विदथेषु जग्मयः। अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे नो देवा अवसागमन्निह।। भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः। स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाꣳसस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः।। शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम्। पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः।। अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्रः। विश्वे देवा अदितिः पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम्।। द्यौः शान्तिरन्तरिक्षꣳ शान्तिः पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः। वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वꣳ शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि।। यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु। शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः पशुभ्यः।। सुशान्तिर्भवतु॥
गणपति-स्मरण : तत्पश्चात् हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर गणेशजी का निम्नलिखित ध्यान मन्त्रों से स्मरण करें और उसके पश्चात् हाथ में लिए हुए अक्षत-पुष्प गणेश जी पर चढ़ा दें : 
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।। 
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
सर्वदेव नमस्कार : निम्नलिखित मन्त्रों के साथ सम्बन्धित देवता को नमस्कार करें : 
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः। 
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। 
उमामहेश्वराभ्यां नमः। 
वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः। 
शचीपुरन्दराभ्यां नमः। 
मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः। 
इष्टदेवताभ्यो नमः। 
कुलदेवताभ्यो नमः। 
ग्रामदेवताभ्यो नमः। 
वास्तुदेवताभ्यो नमः। 
स्थानदेवताभ्यो नमः। 
सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः। 
सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। 
गणेशाम्बिकाभ्यां नमः। 
एतत्कर्मप्रधानदुर्गादेव्यै नमः।
संकल्प : अब संकल्प लें। संकल्प से ही किसी भी कार्य की सिद्धि होती है, क्योंकि इसी में हम अपनी मनोकामना का उच्चारण करते हैं और जो कार्य हम करने जा रहे हैं, उसका विवरण भगवान् के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। दायें हाथ में जल, अक्षत, दूर्वा, सुपारी एवं दक्षिणा लेकर निम्नलिखित संकल्प करें : 
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णो:राज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽिह्न द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे ... ... (ग्राम, नगर का नाम लें) नाम्नी स्थाने नलनाम संवत्सरे संवत् 2079 आश्विन मासे शुभे शुक्लपक्ष प्रतिपदा तिथौ सोमवासरे प्रात:/मध्याह्नकाले ... ... (गोत्रनाम) गोत्रोत्पन्नो ... ... (अपने नाम का उच्चारण करें) (शर्मा/वर्मा/गुप्तो) अहं मम इह जन्मनि जन्मान्तरे वा दुर्गा-प्रीति द्वारा सर्वपापक्षयपूर्वक दीर्घायु, विपुलधनधान्यप्राप्त्यर्थे, मम सपुत्रस्य सबान्धवस्य अखिलकुटुम्बसहितस्य समस्त भयव्याधिजरापीडामृत्युपरिहारेण, आयुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं परमंत्र-परतंत्र परयंत्र-परकृत्याप्रयोगछेदनार्थं गृहे सुखशांति- प्राप्त्यर्थं मम जन्मकुण्डल्यां, गोचरकुण्डल्यां, दशाविंशोत्तरी कृत सर्वकुयोगनिवारणार्थं मम जन्मराशि: अखिल कुटुम्बस्य वा जन्मराशे सकाशाद्ये-केचिद्विरुद्ध चतुर्थाष्टमद्वादशस्थानस्थिता क्रूरग्रहास्तैः सूचितं सूचयिष्यमाणं च यत्सर्वारिष्टं तद्विनाशं द्वारा नवम एकादशस्थान स्थितवच्छुभफलप्राप्त्यर्थं आदित्यादि नवग्रहानुकूलता सिद्धयर्थं दैहिकदैविक भौतिकतापत्रय शमनार्थं धर्मार्थकाममोक्ष फलावाप्त्यर्थं श्री महादुर्गादेवता प्रसन्नार्थं सदभीष्टसिद्ध्यर्थे शारदीय नवरात्र प्रतिपदा विहिता कलश स्थापन दुर्गापूजनं अहम् करिष्ये । तत्रादौ निर्विघ्नताया परिसमाप्ति कामः श्रीगणेशाम्बिकयो पूजनं यथाज्ञानेन यथा मिलितोपचारद्रव्यैः चाहं करिष्ये।
दिग्-रक्षण : इसके पश्चात् सर्वप्रथम दिग्-रक्षण करना चाहिए। दिग्-रक्षण करने से साधक को सभी दिशाओं से सुरक्षा प्राप्त होती है और पूजन कर्म में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती है। इस हेतु बायें हाथ में पीली सरसों लेकर उसे दाहिने हाथ से ढकें और फिर निम्नलिखित रक्षा-स्तोत्र का पाठ करें : 
ॐ अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूमि संस्थिताः।
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया।।
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतोदिशम्। 
सर्वेषामवरोधेन पूजाकर्म समारंभे।
यदत्र संस्थितं भूतं स्थानमाश्रित्य सर्वतः।
स्थानं त्यक्त्वा तु तत्सर्वं यत्रस्थं तत्र गच्छतु।
भूतप्रेतपिशाचाद्या अपक्रामन्तु राक्षसाः। 
स्थानादस्माद्व्रजन्त्वन्यत्स्वीकरोमि भुवंत्विमाम्।। 
भूतानि राक्षसा वापि येऽत्र तिष्ठन्ति केचन।
ते सर्वेऽप्यपगच्छन्तु पूजाकर्म करोम्यहम्।।
इसके पश्चात् हाथ में ली हुई सरसों को दसों दिशाओं में थोड़ा-थोड़ा फेंक दें। फेंकते समय निम्नलिखित मंत्रों का पाठ करें : 
पूर्वे रक्षतु गोविन्द: आग्नेय्या गरुडध्वजः। 
याम्यां रक्षतु वाराहो नारसिंहस्तु नैर्ॠत्ये।। 
वारुण्या केशवो रक्षेद्वायव्यां मधुसूदनः। 
उत्तरो श्रीधरो रक्षेदीशाने तु गदाधरः।। 
उर्ध्वं गोवर्धनो रक्षेदधस्ताच्च त्रिविक्रमः। 
एवं दशदिशो रक्षेद्वासुदेवो जनार्दनः।। 
इसके पश्चात् अपने हाथ धो लें।
गणेशाम्बिका-पूजन : सर्वप्रथम हाथ में अक्षत लेकर भगवान् गणेश का ध्यान करें : 
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।।
भगवान गणेश का आवाहन करें : 
ॐ गणानां त्वा गणपतिꣳहवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिꣳहवामहे निधीनां त्वा निधिपतिꣳहवामहे वसो मम । आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।
हाथ के अक्षत गणेशजी को समर्पित करें।
तत्पश्चात् जलस्नान, पञ्चामृतस्नान, पुनः जलस्नान कराकर यज्ञोपवीत, वस्त्र, आभूषण, गन्ध, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, इत्र, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, ताम्बूल एवं अन्त में दक्षिणा के साथ पूजन करें, तदनन्तर कर्पूर से आरती करें तथा प्रार्थना करें। अब हाथ में अक्षत लेकर अम्बिका का ध्यान करें : 
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः। 
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।। 
गणेशजी के दाहिनी ओर अम्बिका का आवाहन करें : 
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन। 
ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्।। 
हेमाद्रितनयां देवीं वरदां शंकरप्रियाम्। 
लम्बोदरस्य जननीं गौरीमावाहयाम्यहम्।।
अक्षत अम्बिका पर छोड़ें तथा गणेश-पूजन की भाँति माँ अम्बिका का भी पूजन करें।
दीप-पूजन : तत्पश्चात् अखण्ड दीप की स्थापना निम्नलिखित मन्त्र के साथ करें और मन्त्र पढ़ने के बाद अक्षत-पुष्पादि दीपक के समीप चढ़ा दें :
अखण्डं दीपकं देव्या प्रीतये नवरात्रकम् 
उज्ज्वालये अहोरात्रमेकचित्तोघृत व्रतः।। 
दीपस्थदेवतायै नम: पंचोपचारार्थे  गंधाक्षत पुष्पाणि समर्पयामि।
कलश-स्थापन : अब घटस्थापना के लिए मृत्तिका (मिट्टी) कलश लें, उसे जल से शुद्ध कर लें तथा उस पर स्वस्तिक बनाएँ। कलश के कण्ठ पर मौली बाँधें। चौकी के सामने शुद्ध मिट्टी बिछा दें तथा दाहिने हाथ से निम्नलिखित मन्त्र के साथ भूमि स्पर्श करें : 
ॐ भूरसि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्री। पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृꣳ ह पृथिवीं मा हिꣳ सीः।।
उसके पश्चात् मिट्टी के ऊपर निम्नलिखित मन्त्र से जौ प्रक्षेपित करें : 
ॐ धान्यमसि धिनुहि देवान् प्राणाय त्वो दानाय त्वा व्यानाय त्वा। दीर्घामनु प्रसितिमायुषे धां देवो वः सविता हिरण्यपाणिः प्रति गृभ्णात्वच्छिद्रेण पाणिना चक्षुषे त्वा महीनां पयोऽसि ।
फिर मिट्टी पर निम्नलिखित मन्त्र के साथ कलश की स्थापना करें : 
ॐ आ जिघ्र कलशं मह्मा त्वा विशन्त्विन्दवः। 
पुनरूर्जा नि वर्तस्व सा नः सहस्रं धुक्ष्वोरुधारा पयस्वती पुनर्मा विशताद्रयिः।।
कलश में जल भरें, तत्पश्चात् उसमें चन्दन, सर्वोषधि (मुरा, जटामासी, वचकुट, शिलाजीत, हल्दी और दारुहल्दी, सठी चम्पक, मुस्ता), दूब, पञ्चपल्लव (बरगद, गूलर, पीपल, आम, अशोक के पत्ते), कुश, सप्तमृत्तिका (घुड़साल, हाथीसाल, बाँबी, नदियों के संगम, तालाब, राजा के द्वार, गौशाला की मिट्टी), सुपारी, पञ्चरत्न (सोना, हीरा, मोती, पुखराज व नीलम), दक्षिणा (पैसे) छोड़ें तथा कलश के ऊपर वस्त्र रखें तथा चावल या अन्य धान्य भरकर पूर्णपात्र (ढक्कन) रखें तथा उस पर नारियल रखें। फिर कलश में देवी-देवताओं का आवाहन करें : 
ॐ तत्त्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भिः। 
अहेडमानो वरुणेह बोध्यरुशꣳ स मा न आयुः प्र मोषीः।।
अस्मिन् कलशे वरुणं साङ्गं सपरिवारं सायुधं सशक्तिकमावाहयामि।
कलशस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रुद्रः समाश्रितः।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।।
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा। 
ॠग्वेदोऽथ यजुर्वेदः सामवेदो ह्यथर्वणः।।
अङ्गैश्च सहिताः सर्वे कलशं तु समाश्रिताः।
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टिकरी तथा।। 
आयान्तु देवपूजाथ दुरितक्षयकारकाः।
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धुकावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
सर्वे समुद्राः सरितस्तीर्थानि जलदा नदाः। 
आयान्तु मम शान्त्यथ दुरितक्षयकारकाः।।
फिर हाथ में अक्षत-पुष्प लेकर निम्नलिखित मन्त्र से कलश की प्रतिष्ठा करें :
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञꣳ समिमं दधातु।
विश्वे देवास इहमादयन्तामो3म्प्रतिष्ठ।
उक्त मन्त्र का उच्चारण अक्षत-पुष्प कलश के पास छोड़ दें।
इसके बाद गणेश पूजन की भाँति वरुणादि देवी-देवताओं का कलश के साथ पूजन करें तथा अन्त में निम्नलिखित मन्त्रों से प्रार्थना को : 
देवदानवसंवादे मथ्यमाने महोदधौ।
उत्पन्नोऽसि तदा कुम्भ विधृतो विष्णुना स्वयम्।।
त्वत्तोये सर्वतीर्थानि देवा: सर्वे त्वयि स्थिताः।
त्वयि तिष्ठन्ति भूतानि त्वयि प्राणा: प्रतिष्ठिताः।।
शिवः स्वयं त्वमेवासि विष्णुस्त्वं च प्रजापतिः। 
आदित्या वसवो रुद्रा विश्वेदेवाः सपैतृकाः।।
त्वयि तिष्ठन्ति सर्वेऽपि यतः कामफलप्रदाः।
त्वत्प्रसादादिमां पूजां कर्तुमीहे जलोद्भव।
सांनिध्यं कुरु मे देव प्रसन्नो भव सर्वदा।।
नमो नमस्ते स्फटिकप्रभाय सुश्वेतहाराय सुमङ्गलाय।
सुपाशहस्ताय झषासनाय जलाधिनाथाय नमो नमस्ते। ॐ अपांपतये वरुणाय नमः।
अब हाथ में पुष्प लेकर कलश को निम्नलिखित मन्त्रों से नमस्कार करें :
ॐ वरुणाद्यावाहित-देवताभ्यो नमः प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।
इस नाम-मन्त्र से नमस्कारपूर्वक पुष्प समर्पित करें।
अब हाथ में लिए हुए जल को निम्नलिखित मन्त्र के साथ कलश के पास छोड़ते हुए समस्त पूजन-कर्म भगवान् वरुणदेव को निवेदित करें :
कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम।
नवग्रह-पूजन : वरुण पूजन के पश्चात् सूर्यादि नवग्रहों का पूजन किया जाता है। इसके लिए दोनों हाथ जोड़कर सूर्यादि नवग्रहों का ध्यान करें और निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें : 
ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मत्य च। 
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ।। 
सूर्यादिनवग्रहेभ्यो नमः ।।
पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।।
अब हाथ में लिए हुए अक्षत-पुष्प आदि को नवग्रहों की पूजा के निमित्त नवग्रह-मण्डल पर अथवा सामने बने हए अष्टदल कमल पर चढ़ा दें।
पंचलोकपाल-पूजन : नवग्रहों का पूजन करने के पश्चात् पंचलोकपालों का पूजन करना चाहिए। इस हेतु हाथ में अक्षत-पुष्य लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण को : 
ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो वेन आवः। 
स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठा: सतश्च योनिमसतश्च विवः।।
ब्रह्मादि पंचलोकपालेभ्यो नमः॥ 
पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।। 
अब हाथ में लिए हुए अक्षत-पुष्प आदि सामने बने हुए पंचलोकपाल मण्डल पर अथवा अष्टदल कमल पर चढ़ा दें।
देवी पूजन : अब इन सबका पूजन करने के पश्चात् प्रमुख देवता के रूप में माँ दुर्गा का पूजन किया जाता है। यह पूजन सबसे मुख्य है। इसलिए पूर्ण एकाग्रता और भक्तिभाव के साथ इसे करें। 
ध्यान : अब सर्वप्रथम दुर्गाजी का अग्रलिखित मन्त्र से ध्यान करें : 
सिंहस्था शशिशेखरा मरकतप्रख्यैश्चतुर्भिर्भुजै:
शंखं चक्रधनु:शरांश्च दधती नेत्रैस्त्रिभि: शोभिता।
आमुक्ताङ्गदहारकंकणरणत्काञ्चीरणन्नूपुरा
दुर्गा दुर्गतिहारिणी भवतु नो रत्नोल्लसत्कुण्डला। 
ॐ दुर्गायै नमः ध्यानार्थे अक्षतपुष्पाणि समर्पयामि।
आवाहन : निम्नलिखित मन्त्र के साथ माँ दुर्गा का आवाहन करें : 
आगच्छं त्वं महादेवि! स्थाने चा स्थिरा भत्र। यावत् पूजां करिष्यामि तावत् त्वं सुस्थिरो भव।।
आसन : अब निम्नलिखित मन्त्र से देवी को आसन प्रदान करें :
अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्।
इदं हेममयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ दुर्गायै नमः, आसनं निवेदयामि।
पाद्य : अब निम्नलिखित मन्त्र से देवी को पाद्य हेतु जल अर्पित करें :
गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्य आनीतं तोयमुत्तमम्।
पाद्यार्थं ते प्रदास्यामि गृहाण परमेश्वरि।।
ॐ दुर्गायै नमः, पाद्यं समर्पयामि।
अर्घ्य : अब निम्नलिखित मन्त्र से देवी को जल से अर्घ्य प्रदान करें :
गन्धपुष्पाक्षतैर्युक्तमघ्य सम्पादितं मया।
गृहाण त्वं महादेवि प्रसन्ना भव सर्वदा।।
ॐ दुर्गायै नमः, अघ्य समर्पयािम।
आचमन : अब निम्नलिखित प्रकार से आचमन करवायें :
आचम्यतां त्वया देवि भक्तिं मे ह्यचलां कुरु इप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गतिम्।। 
ॐ दुर्गायै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि।
स्नान : अब निम्नलिखित मन्त्रों का उच्चारण करते हुए शुद्ध जल से स्नान कराएँ : 
जाह्नवीतोयमानीतं शुभं कर्पूरसंयुतम्। 
स्नापयामि सुरश्रेष्ठे त्वां पुत्रादिफलप्रदाम्।।
ॐ दुर्गायै नमः, स्नानार्थे जलं समर्पयामि।
पंचामृत स्नान : अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए पञ्चामृत से स्नान कराएँ: 
पयो दधि घृतं क्षौद्रं सितया च समन्वितम्। 
पंचामृतमनेनाद्य कुरु स्नानं दयानिधे।। 
ॐ दुर्गायै नमः, स्नानार्थे पंचामृतं समर्पयामि।
शुद्धोदक स्नान : अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए शुद्ध जल से स्नान कराएं : 
ॐ परमानन्दनोबोधाब्धि निमग्ननिजमूर्तये। 
साङ्गोपांगमिदं स्नानं कल्पयाम्यहमाश ते।।
ॐ दुर्गायै नमः, स्नानार्थे शुद्धजलं समर्पयामि।
वस्त्र : अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवी को वस्त्र अर्पित करें : 
वस्त्रं च सोमदैवत्यं लज्जायास्तु निवारणम्।
मया निवेदितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि।।
ॐ दुर्गायै नमः, वस्त्रं निवेदयामि।
गन्ध : अब अग्रलिखित मन्त्रोच्चारण के साथ गन्ध अर्पित करें : 
परमानन्दसौभाग्यपरिपूर्णदिगन्तरे।
गृहाण परमं गन्धं कृपया परमेश्वरि।।
ॐ दुर्गायै नमः, गन्धं निवेदयामि।
कुंकुम :
अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवी को रोली अर्पित करें :
कुंकुमं कान्तिदं दिव्यं कामिनीकामसम्भवम्।
कुंकुमेनार्चिते देवि प्रसीद परमेश्वरि।।
ॐ दुर्गायै नमः, कुंकुमं समर्पयामि।
आभूषण : अब निम्नलिखित मन्त्र से देवी को आभूषण अर्पित करें :
स्वभावसुन्दराङ्गायै नानाशक्त्याश्रिते शिवे। 
भूषणानि विचित्राणि कल्पयाम्यमरार्चिते।।
ॐ दुर्गायै नमः, आभूषणानि समर्पयामि।
सिन्दूर : अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवी को सिन्दूर अर्पित करें : 
सिन्दूरमरुणाभासं जपाकुसुमसन्निभम्। 
पूजितासि मया देवि प्रसीद परमेश्वरि।। 
ॐ दुर्गायै नमः, सिन्दूरं समर्पयामि ।
काजल : अब निम्नलिखित मन्त्र से देवी को काजल अर्पित करे : 
चक्षुभ्या कज्जलं रम्यं सुभगे शान्तिकारके। 
कर्पूरज्योतिरुत्पन्नं गृहाण परमेश्वरि।। 
ॐ दुर्गायै नमः, कज्जलं समर्पयामि।
मंगलसूत्र : अब निम्नलिखित मन्त्र से देवी को मंगलसूत्र अर्पित करें : 
सौभाग्यसूत्रं वरदे सुवर्णमणिसंयुते। 
कण्ठेबध्नामि देवेशि सौभाग्यं देहि मे सदा।। 
ॐ दुर्गायै नमः, सौभाग्यसूत्रम् समर्पयामि।
पुष्पमाला : अब निम्नलिखित मन्त्र में देवी को पुष्पमाला अर्पित करें :
सुरभिपुष्पनिचयैर्ग्रथितां शुभमालिकाम्।
ददामि तव शोभाथ गृहाण परमेश्वरि।।
ॐ दुर्गायै नमः, पुष्पमालां समर्पयामि।
बिल्वपत्र : अब निम्नलिखित मन्त्र से देवी को बिल्वपत्र अर्पित करें :
अमृतोद्भव: श्रीवृक्षो महादेवि प्रियः सदा।
बिल्वपत्रं प्रयच्छामि पवित्रं ते सुरेश्वरि।।
ॐ दुर्गायै नमः, बिल्वपत्रं समर्पयामि ।
धूप : अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवी को धूप दिखाएँ : 
दशाङ्गं गुग्गुलं धूपं चन्दनागरुसंयुतम्। 
समर्पितं मया भक्त्या महादेवि प्रतिगृह्यताम्।। 
ॐ दुर्गायै नमः, धूपं आघ्रापयामि।
दीप : अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए देवी को दीप दिखाएँ : 
घृतवर्तिसमायुक्तं महातेजो महोज्ज्वलम्।
दीपं दास्यामि देवेशि सुप्रीता भव सर्वदा।।
ॐ दुर्गायै नमः, दीपकं दर्शयामि।
इसके पश्चात् हाथ धो लें।
नैवेद्य : अब निम्नलिखित मन्त्र से देवी को नैवेद्य निवेदित करें : 
अन्नं चतुर्विधं स्यादु रसैः षड्भिः समन्वितम्।
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्तिं मे ह्यचलां कुरु।।
ॐ दुर्गायै नमः, नैवेद्यं निवेदयामि। 
ॠतुफल : अब निम्नलिखित मन्त्र से ॠतुफल अर्पित करें : 
द्राक्षाखर्जूर कदलीपनसाम्रकपित्थकम्।
नारिकेलेक्षुज्म्ब्वादि फलानि प्रतिगृह्यताम्।।
ॐ दुर्गायै नमः, ॠतुफलं समर्पयामि ।
आचमन : अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए आचमन कराएँ :
कामारिवल्लभे देिव कुर्वाचमनमम्बिके।
निरन्तरमहं वन्दे चरणौ तव चण्डिके।।
ॐ दुर्गायै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि।
नारियल : अब निम्नलिखित मन्त्र से देवी को नारियल अर्पित करें :
नारिकेलं च नारङ्गं कलिङ्गं मञ्चिरं तथा।
उर्वारुकं च देवेशि फलान्येतानि गृह्यताम्।।
ॐ दुर्गायै नमः, श्रीफलं समर्पयामि।
ताम्बूल-पूंगीफल : अब निम्नलिखित मन्त्र से देवी को ताम्बूल-पूंगीफल अर्पित करें : 
एलालवङ्गकस्तूरीकर्पूरैः सुष्टुवासिताम्।
वीटिकां मुखवासार्थमर्पयामि सुरेश्वरि।।
ॐ दुर्गायै नमः, ताम्बूलवीटिका समर्पयामि।
दक्षिणा : अब निम्नलिखित मन्त्र से देवी को दक्षिणा अर्पित करें : 
पूजाफलसमृद्ध्यथ तवाग्रे स्वर्णमीश्वरि।
स्थापितं तेन मे प्रीता पूर्णान् कुरु मनोरथान्।।
द्रव्य-दक्षिणाम् समर्पयामि।  ॐ दुर्गायै नमः।
आरती : अब एक थाली के मध्य में स्वस्तिक बनाकर उस थाली में कर्पूर, घी का दीपक एवं धूप जलाकर आरती करें।
आरती 
अम्बे तू है जगदम्बे काली, 
जय दुर्गे खप्पर वाली, तेरे ही गुन गाये भारती, 
ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती।। टेर ।।
तेरे भक्तजनों पर मैया भीर पड़ी है भारी, भीर पड़ी भारी दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके सिंह सवारी, करके सिंह सवारी, 
सौ-सौ सिंहों से भी बलशाली अष्ट भुजाओं वाली, दुखियों के दुखड़े निवारती। 
ओ मैया ।।टेर।।
माँ बेटे का है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता, बड़ा ही निर्मल नाता, 
पूत कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता, ना माता सुनी कुमाता।
सब पे करुणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली, दुखियों के दुखड़े निवारती।
ओ मैया  ।।टेर।।
नहीं माँगते धन और दौलत ना चाँदी ना सोना, ना चाँदी ना सोना, 
हम तो माँगें माँ तेरे मन में, इक छोटा-सा कोना, इक छोटा-सा कोना।
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली, सतियों के सत को सँवारती। 
ओ मैया ... ...  अम्बे तू है ... ...
पुष्पांजलि : अब निम्नलिखित मन्त्र के साथ देवी को पुष्पांजलि अर्पित करें :
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः 
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददािस।
दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या 
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽद्रचित्ता ।
ॐ दुर्गायै नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
प्रदक्षिणा : अब निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए प्रदक्षिणा करें :
नमस्ते देवि देवेशि नमस्ते इप्सितप्रदे।
नमस्ते जगतां धात्रि नमस्ते भक्तवत्सले।।
अब निम्नलिखित मन्त्र से देवी को दण्डवत् प्रणाम करें :
नमः सर्वहितार्थायै जगदाधारहेतवे।
साष्टाङ्गोऽयं प्रणामस्तु प्रयत्नेन मया कृतः।।
क्षमा प्रार्थना : अब निम्नलिखित मन्त्रों का हाथ जोड़कर उच्चारण करे और पूजन में जाने-अनजाने हुई गलतियों के लिए माँ जगदम्बा से क्षमा प्रार्थना करें :
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।
दुर्गा शिवां शांतिकरीं ब्रह्माणीं ब्रह्मणः प्रियाम्। सर्वलोकप्रणेत्रीं च प्रणमामि सदा शिवाम्।।
मङ्गलां शोभनां शुद्धां निष्कलां परमां कलाम्।
विश्वेश्वरीं विश्वमातां चण्डिकां प्रणमाम्यहम्।। 
सर्वदेवमयीं देवीं सर्वरोगभयापहाम्।
ब्रह्मेशविष्णुनमितां प्रणमामि सदा उमाम्।।
विन्ध्यस्थां विन्ध्यनिलयां   दिव्यस्थाननिवासिनीम्। 
योगिनीं योगमायां च चण्डिकां प्रणमाम्यहम्।।
ईशानमातरं देवीमीश्वरीमीश्वरप्रियाम्।
प्रणतोऽस्मि सदा दुर्गां संसारार्णवतारिणीम्।।
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते।।
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरी।
यत्पूजितं मयादेवि, परिपूर्णं तदस्तु मे।।
आवाहनम् न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैवं न जानामि क्षम्यताम् परमेश्वरि।।
यदक्षरं पदंभ्रष्टं मात्राहीनं च यद् भवेत्।
तत्सर्वं क्षम्यतां देव प्रसीद परमेश्वरि।।
अब हाथ में जल लेकर निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करें और किया गया समस्त पूजन कर्म माँ दुर्गा को समर्पित कर दें।
कृतेन अनेन पूजन कर्मणि। 
दुर्गाप्रीत्यर्थ समर्पयामि।।

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Ajay Dubey

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