पौराणिक विषय [अकारादि क्रम से]
(भाग-1)
‘सूतोवाच’ यह शब्द आपने पुराणों में अनेक बार पढ़ा होगा। वस्तुत: ‘सूत’ पुराणों के प्रवक्ता माने जाते हैं। शौनक आदि ॠषियों ने सूत से ही पुराणों की शिक्षा ग्रहण की थी। पौराणिक विषयों पर आधारित प्रस्तुत ृंखला का नामकरण करने का विचार जब आया, तो ‘सूतोवाच’ से बेहतर अन्य कोई शब्द मस्तिष्क पटल पर उभरकर नहीं आया। पुराणों में ‘सूत’ की उत्पत्ति ‘यज्ञ’ से मानी गई है। कूर्मपुराण में वर्णित है कि स्वायंभुव मनु द्वारा किए जा रहे यज्ञ में सुत्याह के दिन सूत की उत्पत्ति हुई थी। सूत को 'रोमहर्षण' या 'लोमहर्षण' कहा गया है, क्योंकि वे अपनी भावपूर्ण वक्तृता से श्रोता के रोंगटे खड़े कर देते थे। स्कन्दपुराण में उल्लेख है कि पुराणों की शिक्षा ग्रहण करते समय उनके रोंगटे खड़े हो जाते थे, इसलिए उन्हें रोमहर्षण कहा गया। मनुस्मृति में ब्राह्मण नारी और क्षत्रिय पुरुष से उत्पन्न व्यक्ति को सूत कहा गया है, परन्तु कौटिल्य के उद्धरण से पीवी काणे का मत है कि कौटिल्य के समय में सूत प्रतिलोम जाति के थे, परन्तु पुराणों में वर्णित प्रथम वाचकों के रूप मे सूत अलग श्रेणी के हैं। वे प्रतिलोम जाति के नहीं हैं। ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों दोनों से भिन्न हैं। पुराणों के सूत अधिक या कम मुनि के रूप में या अर्ध दैवी रूपमें पूज्य हैं।
पुराणों के रचयिता वेदव्यास हैं। वे ऋषि पराशर के पुत्र थे। उनका नाम कृष्णद्वैपायन था। कृष्ण वर्णीय होने के कारण उनका नाम कृष्ण था तथा यमुना नदी के एक द्वीप पर जन्म होने के कारण उन्हें द्वैपायन कहा गया। पुराणों में उन्हें विष्णु, ब्रह्मा और शिव के अवतार के रूप में उल्लिखित किया गया है। उनकी माता का नाम सत्यवती था। शुकदेव जी उनके पुत्र थे। वेदों को संकलित, वर्गीकृत एवं व्यवस्थित करने के कारण उन्हें 'वेद व्यास' कहा गया। उनके पाँच शिष्य उल्लेखनीय हैं - पैल, वैशम्पायन, जैमिनि, सुमन्तु और सूत रोमहर्षण। प्रथम चार को उन्होंने क्रमश: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद में पारंगत किया। सूत रोमहर्षण को इतिहास-पुराण की शिक्षा दी। सूत के पुत्र थे सौति, जिन्होंने महाभारत का पाठ शौनक एवं अन्य मुनियों को नैमिषारण्य सुनाया था। वायुपुराण में उल्लेख है कि सूत के छह शिष्य थे - सुनीति आत्रेय, अकृत काश्यप, अग्निवर्चा भारद्वाज, मित्रयु वासिष्ठ, सावर्णि सौमदत्ति एवं सुशर्मा शांशपायन। सूत को वेद के अध्ययन का अधिकार नहीं है। कूर्मपुराण में सूत स्वयं कहते हैं कि मेरे वंश के लोग वेद वर्जित हैं। इस प्रकार वे केवल पुराण ही सुनाते हैं।