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Mythology [in alphabetical order] (Part-10)

26-May ,2023 | Comment 0 | gotoastro team

Mythology [in alphabetical order] (Part-10)

पौराणिक विषय [अकारादि क्रम से]
 (भाग-10)

अर्बुद (पर्वत) : हिन्दू और जैन धर्मों में पवित्र पर्वतों में एक जिसका तीर्थ के समान महत्त्व है। पश्चिम राजस्थान में स्थित इस पर्वत पर महर्षि वशिष्ठ ने एक यज्ञ किया जिसमें से प्रतिहार, परमार, चालुक्य तथा चाहमान (चौहान) नामक योद्धा उत्पन्न हुए, जिनसे इन राजपूत राजवंशों की उद्भव हुअा, इसका उल्लेख पृथ्वीराज रासों में मिलता है। यज्ञ कुण्ड से उत्पन्न होने के कारण ये राजवंश अग्निवंशीय कहलाते हैं। अर्बुद पर्वत पर अनेक प्राचीन शिव मन्दिर हैं।
अर्य : वेदों में उल्लिखित इस शब्द का अर्थ वेदभाष्यकार महीधर ने वैश्य लगाया है। वाजसनेयी संहिता में इसका प्रयोग वैश्य के अर्थ में मिलता है : यथेमां वाचं कल्याणीमा वदानि जनेभ्य:। ब्रह्मराजन्याभ्या शूद्राय चार्याय च।।
अर्यमा : एक वैदिक देवता, जिन्हें सूर्य का एक स्वरूप माना जाता है। वैदिक काल में आदित्य वर्ग के अनेक देवता थे। बाद में उन सबका अवसान एक देवता सूर्य में हो गया, जो बिना किसी भेद के उन्हीं के नामों यथा सूर्य, आदित्य, सविता, विवस्वान, मित्र, अर्यमा, उषा आदि नामों से जाने जाते हैं।
अलका : कुबेर की नगरी का नाम। इसे अलकापुरी भी कहा जाता है। इसका स्थान कैलास के समीप माना जाता है। कुबेर उत्तर दिशा के दिक्पाल माने जाते हैंं।
अलकनन्दा : देवलोक की गंगा अलकनन्दा है। जब गंगा पितृलोक में रहती है, तो वैतरणी कहते हैं। अलकनन्दा का उद्गम विष्णु पद से माना जाता है। वर्तमान में अलकनन्दा  गंगा की प्रमुख सहायक नदी है, जो गढवाल के समीप भागीरथी गंगा से मिलती है। जहाँ मंदाकिनी इसमें मिलती है, वह नन्द प्रयाग है।
अलक्ष्मी : लक्ष्मी की अग्रजा जो दरिद्रा देवी हैं। इन्हें निर्ऋति, ज्येष्ठा देवी आदि भी कहा जाता है।
अलम्बल : महाभारत कालीन दैत्य योद्धा जटासुर का पुत्र था और जिसने कौरवों की ओर से महाभारत युद्ध में भाग लिया था। इसका वध घटोत्कच ने किया था, वहीं जटासुर का वध भीम ने किया था।
अलम्बुष : एक राक्षस जो ऋष्यशृंग नामक राक्षस का पुत्र था। महाभारत युद्ध में अलम्बुष कौरवों की ओर से लड़ा तथा अभिमन्यु से पराजित हुआ।
अलम्बुषा : ऋषि कश्यप और प्रधा की पुत्री।
अलोलुप : धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक।
अलर्क : काशी का एक राजा जो श्रेष्ठ प्रजापालक था और धर्मराज की परिषद् का सदस्य था। उसने योग और ध्यान से मुक्ति प्राप्त की। 

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