पौराणिक विषय [अकारादि क्रम से]
(भाग-3)
अभिमन्यु (द्वितीय) : विष्णु पुराण में मनु के दस पुत्रों में से एक पुत्र अभिमन्यु भी हैं। ये दस पुत्र हैं : कुरु, पुरु, शतद्युम्न, तपस्वी, सत्यवान्, शुिच, अग्निष्टोम, अभिरात्र, सुद्युम्न और अभिमन्यु। (िवष्णु पुराण, प्रथम अंश, त्रयोदश अध्याय)
अपराजिता : जो देवी पराजित न हों अर्थात् दुर्गा। दशमी पर इनकी पूजा की जाती है। आश्विन शुक्ल दशमी अपराजिता देवी के पूजन का विशेष पर्व है।
अपराजिता सप्तमी : भाद्रपद शुक्ल सप्तमी से आरम्भ करते हुए एक वर्ष तक अपराजिता सप्तमी का व्रत-पूजन किया जाता है। इसमें सूर्य पूजन होता है। (कृत्युकल्पतरु, व्रतकाण्ड, 132-135; हेमाद्रि, व्रतखण्ड, पृष्ठ 667-668) भविष्यपुराण में भाद्रपदशुक्ल सप्तमी से आरम्भ करते हुए ‘फल सप्तमी’ का व्रत कहा गया है, जिसमें प्रत्येक शुक्लपक्ष की सप्तमी को सूर्य का फलों से पूजन किया जाता है और स्वयं भी फल भक्षण किया जाता है।
अपराजिता दशमी : आश्विन शुक्ल दशमी अपराजिता दशमी के रूप में जानी जाती है। हेमाद्रि आदि धर्मग्रन्थों में इसे राजा के लिए विशेष पालनीय बताया गया है। स्मृतिकौस्तुभ और हेमाद्रि में उल्लेख है कि श्रीराम ने अपराजिता दशमी के दिन लंका पर आक्रमण किया था, उस दिन श्रवण नक्षत्र था। (हेमाद्रि, व्रतखण्ड, पृष्ठ 968-673)
अपर्णा : तपस्या के दौरान जिसने पत्ते भी नहीं खाए, वे पार्वती अपर्णा कही गई हैं। दुर्गा के पर्याय के रूप में भी यह नाम प्रचलन में है। कुमारसम्भव में उल्लेख है :
स्वयं विशीर्णद्रुमपर्णवृत्तिता
परा हि काष्ठा तपसस्तया पुन:।
तदप्यपाकीर्णमित: प्रियंवदाम्।
वदन्त्यपर्णेति च तां पुराविद:।।
अपवर्ग : संसार से मुक्ति अर्थात् मोक्ष।
अपविद्ध : माता-पिता द्वारा त्यागे गए पुत्र को अपविद्ध कहते हैं। मनुस्मृति (9/171) में इसका उल्लेख है। मेधातििथ लिखते हैं कि इस पुत्रत्याग का कारण परिवार की माली हालत होती थी अथवा पुत्र द्वारा किया गया कोई जघन्य अपराध होता था। ऐसे त्यागे हुए पुत्र को यदि कोई अन्य पालता है, तो इसका स्थान दूसरी श्रेणी के पुत्रों जैसा होता है।
अप्नवान् : अप्नवान् का उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है। भृगुओं के साथ इसका उल्लेख होने के कारण विद्वान् इसे भृगुकुल का मानते हैं। (यमप्नवानो भृगवो वरुरुचु: 4/7/1)