पौराणिक विषय [अकारादि क्रम से]
(भाग-4)
अपाला : महर्षि अत्रि की पुत्री एवं वैदिककालीन विदूषी नारी, जिन्हें कुष्ठ रोग होने के कारण पति ने छोड़ दिया था। विवश होकर वे पिता के यहाँ आ गईं और वहाँ उन्होंने देवराज इन्द्र को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की। अन्तत: देवराज इन्द्र प्रसन्न हुए और उनके द्वारा दिए गए सोमरस के सेवन से वे कुष्ठ रोग से मुक्त हुइ।(ॠग्वेद)
अपान्तरतमस : महर्षि जो महाविष्णु द्वारा उच्चारित ‘भू’ शब्द से प्रकट हुए। इन्हें ‘सारस्वत’ एवं ‘अपान्तरात्मा’ के नाम से भी जाना जाता है। अपान्तरतमस इसलिए कहा जाता है, क्योंकि ये आन्तरिक अन्धकार से मुक्त हैं। वे भूत, वर्तमान एवं भविष्य के जानकार थे तथा उन्होंने विष्णु जी की आज्ञा से वेदों को वर्गीकृत एवं व्यवस्थित किया।
आद्य शंकराचार्य जी के अनुसार पराशर के पुत्र वेदव्यास जी के रूप में महर्षि अपान्तरतमस का पुनर्जन्म हुआ और उन्होंने पुन: वेदों को संिहताबद्ध, विभक्त एवं व्यवस्थित किया। (ब्रह्मसूत्रभाष्य एवं मुण्डकोपनिषदभाष्य)
अपराजित (रुद्र) : एकादश रुद्र में से एक रुद्र। अन्य दस रुद्र हैं : हर, बहुरूप, त्र्यम्बक, वृषकपि, शम्भु, कपर्दि, रेवत, मृग, व्याध, सर्प और कपालि। (अग्निपुराण, अध्याय-18)
अपराजित (महाविष्णु) : महाविष्णु का एक नाम। (महाभारत, अनुशासनपर्व, 149/89)
अपराजित (कौरव) : धृतराष्ट्र का एक पुत्र, जिसका वध भीम ने महाभारत युद्ध में किया था। (महाभारत, आदिपर्व, 67/101 तथा भीष्मपर्व, 21/22)
महाभारत में कौरव वंश के एक राजा का नाम भी अपराजित कहा गया है। (आदिपर्व, 94/54)
अपराजित (सर्प) : एक सर्प जो कश्यप एवं कद्रू की सन्तान है। (महाभारत, आदिपर्व, 35/13)
अपराजित (कालिकेय) : प्रसिद्ध कालिकेय संज्ञक अष्ट असुरों में से एक असुर, जो एक राजा था और पाण्डवों ने उसे युद्ध पर जाने से पूर्व आमंत्रित किया था। (महाभारत, आदिपर्व, 67/49 तथा उद्योगपर्व 4/21)
अपरकाशी : महाभारत (भीष्मपर्व, 9/42) में उल्लिखित एक स्थान विशेष।
अपरकुन्ती : महाभारत (भीष्मपर्व, 9/43) में उल्लिखित एक स्थान विशेष।
अपरम्लेच्छ : महाभारत (भीष्मपर्व, 9/65) में उल्लिखित एक स्थान विशेष।