पौराणिक विषय [अकारादि क्रम से]
(भाग-5)
अपरनन्दा : महाभारत (आदिपर्व, 214/6-7 तथा अनुशासनपर्व 165/28) में उल्लिखित एक पवित्र नदी जिसे अर्जुन ने पार किया था।
अपराजिता : युद्ध में अपराजित देवी अर्थात् दुर्गा। आश्विन शुक्ल दशमी को अपराजिता की पूजा का विधान है।
दशम्यां च नरै: सम्यक् पूजनीयापराजिता।
मोक्षार्थं विजयार्थञ्च पूर्वोक्त विधिना नरै:।।
अपराजिता दशमी : आश्विनशुक्ल दशमी को किया जाने वाला व्रत। ‘हेमाद्रि’ और ‘स्मृति कौस्तुभ’ के अनुसार श्रीराम ने इसी दिन लंका पर आक्रमण किया था। उस दिन श्रवण नक्षत्र था। इस दिन अपराजिता देवी की पूजा होती है। (हेमाद्रि, व्रतखण्ड पृष्ठ 968-973)
अपराजिता सप्तमी : भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को अपराजिता सप्तमी के रूप में जाना जाता है। इसी से इस व्रत का आरम्भ होता है। इसमें एक वर्ष तक सूर्य पूजन होता है।
अपरान्त : प्राचीन काल में दक्षिण भारत के पश्चिमी तटीय क्षेत्र में अपरान्त नामक एक नगर था। (महाभारत, भीष्मपर्व, 9/67)।
अपरा विद्या : भारतीय परम्परा में ज्ञान के दो वर्ग या प्रकार बताए गए हैं : परा विद्या और अपरा विद्या। परा विद्या वह ज्ञान या विज्ञान है, जिसकी सहायता से अनादि और अनन्त ब्रह्म को जाना जाता है। वह ब्रह्म न तो देखा जा सकता है और न ही किसी ज्ञानेन्द्रिय से महसूस किया जा सकता है। इसके विपरीत अपरा विद्या वह ज्ञान है, जिसमें चारों संिहताएँ, वेदांग, दर्शन, धर्मशास्त्र, पुराण, न्यायशास्त्र, वैद्यिकी, गन्धर्वशास्त्र, धनुर्वेद, अर्थशास्त्र आदि सम्मिलित किए जाते हैं।
अपराधशत : भविष्योत्तर पुराण (146/6-21) में वर्णित 100 अपराध जो मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी से आरम्भ होने वाले अपराधशत व्रत के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत में भगवान् विष्णु की पूजा-अर्चना होती है।
अपरोक्षानुभूति (ब्रह्मज्ञान) : ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति जब बिना किसी बौद्धिक माध्यम के हो जाती है, तो उसे अपरोक्षानुभूति कहते हैं।
अपरोक्षानुभूति (ग्रन्थ) : शंकराचार्य का एक ग्रन्थ, जिस पर माधवाचार्य की ‘अपरोक्षानुभूतिप्रकाश’ नामक टीका है।