पौराणिक विषय [अकारादि क्रम से]
(भाग-6)
अपवर्ग : संसार से मुक्ति या मोक्ष ही अपवर्ग कहलाता है।
अपविद्ध : धर्मशास्त्र में वर्णित 12 प्रकार के पुत्रों में से एक। मनुस्मृति में कहा गया है कि अपविद्ध माता-पिता द्वारा त्यागा हुआ एक पुत्र है।
मातापितृभ्यामुत्सृष्टं तयोरन्यतरेण वा।
यं पुत्रं परिगृह्णीयादपविद्ध: स उच्यते।।
– मनुस्मृति, 9/171
मेधातिथि का मत है कि इस पुत्र त्याग का कारण परिवार की आर्थिक स्थिति अथवा पुत्र के द्वारा किया गया कोई जघन्य अपराध होता था। ऐसे त्यागे हुए पुत्र पर द्रवित हो यदि कोई उसे पालता था, तो उसका स्थान दूसरी श्रेणी के पुत्रों जैसे घटकर होता था।
अपुनर्भव : पुनर्जन्म न होने की स्थिति। इसको मुक्ति या कैवल्य भी कहा जाता है। इसमें पुनर्जन्म नहीं होता।
अप्नवान : ॠग्वेद में अप्नवान का उल्लेख भृगुओं के साथ हुआ है – यमप्नवानौ भृगवो विरुरुचु:। (ॠग्वेद, 4/7/1)
लुडविग की मान्यता है कि अप्नवान भी भृगुकुल के थे।
अप्पण्णाचार्य : एक प्रसिद्ध वेदान्ती टीकाकार।
अप्राचि : नरक की एक श्रेणी अथवा प्रकार। (विष्णुपुराण 2/6)
अप्रतिष्ठा : नरक की एक श्रेणी अथवा प्रकार।
अप्सरा : गान्धर्व विद्या (नृत्य, संगीत, नाटक आदि) में प्रवीण स्त्रियाँ जो देवसभाओं में मनोरंजन आदि करती हैं। पुराणों के अनुसार इनकी श्रेणी मनुष्य एवं देवताओं के मध्य की है। वाल्मीकि रामायण में इनका उद्भव समुद्र मंथन से बताया गया है। पुराणों में उल्लेख है कि महर्षि कश्यप की पत्नी अरिष्टा से 13 अप्सराओं का जन्म हुआ था। इसके अतिरिक्त गन्धर्व, हाहा, होहो, अतिभाहु और तुम्बरू का जन्म भी अरिष्टा से ही हुआ था। (बालकाण्ड, 45/32)
अप्सुहोम्य : एक महर्षि जो युधिष्ठिर की सभा में थे। (महाभारत, सभापर्व 4/12)
अरा (अरजस) : महर्षि शुक्र की कन्या, जिसके साथ इक्ष्वाकु वंशीय राजा दण्ड ने जबर्दस्ती की थी। बाद में पिता के कहने पर अरा ने तपस्या की और उसकी तपस्या के फलस्वरूप इन्द्र ने अग्नि वर्षा करके दण्ड के साम्राज्य को भस्म कर दिया था। उसके बाद वह क्षेत्र भयंकर अरण्य में बदल गया, जिसमें कोई पशु-पक्षी भी नहीं रहता था। यह अरण्य दण्डकारण्य के नाम से जाना गया। (उत्तर रामायण)