पौराणिक विषय [अकारादि क्रम से]
(भाग-7)
अरक्किलम् (लाक्षागृह) : वारणावत में दुर्योधन द्वारा बनवाया गया लाक्षागृह, जो पाण्डवों की हत्या के षड्यंत्र हेतु निर्मित करवाया गया था। ऐनवक्त पर विदुर ने कनक की सहायता से पाण्डवों को उस षड्यंत्र की जानकारी दी और उन्हें वहाँ से सुरक्षित बाहर भी भेज दिया गया। बाद में पुरोचन ने दुर्योधन के निर्देश पर उस लाक्षागृह को अग्नि के हवाले कर दिया, जिसमें पुरोचन के अलावा छह अन्य लोगों की जलकर मृत्यु हो गई। उस समय लोगों ने यही अनुमान लगाया था कि पाण्डवों की भी इस अग्निकाण्ड में मृत्यु हो चुकी है। हालाँकि बाद में जब वे पुन: वापस हस्तिनापुर लौटे तो इस षड्यंत्र का पर्दाफाश हुआ। (महाभारत, आदिपर्व अध्याय 141-147)
अरणि : यज्ञ हेतु अग्नि उत्पन्न करने के लिए मंथन करने वाली लकड़ी। घर्षण से उत्पन्न अग्नि को यज्ञ के लिए पवित्र माना जाता है।
अरण्य (इक्ष्वाकु वंश) : इक्ष्वाकु वंश का एक राजा।
अरण्य (दशनामी): आद्यशंकराचार्य की दशनामी संन्यास परम्परा में से एक। वस्तुत: आद्यशंकराचार्य के चार प्रमुख शिष्य थे - पद्मपाद, हस्तामलक, सुरेश्वर और त्रोटक। हस्तामलक के दो शिष्य थे वन और अरण्य। सुरेश्वर के तीन शिष्य थे - गिरि, पर्वत और सागर। इसी प्रकार त्रोटक के तीन शिष्य थे - सरस्वती, भारती एवं पुरी। इन 10 शिष्यों से संन्यािसयों की जिस परम्परा का आरम्भ हुआ, वे दशनामी कहलायी।
अरण्यानी : ऋग्वेद में 10/146 में अरण्यानी वनदेवी या वनकुमारी के रूप में वर्णित हैं।
अरट्ट : प्राचीन भारत में एक प्रदेश का नाम। महाभारत में भी इसका उल्लेख आता है।
अरालि : महर्षि विश्वामित्र का एक पुत्र।
अरुण : सूर्य का सारथी। यह विनता का पुत्र और गरुड का ज्येष्ठ भ्राता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार यह पाँव रहित है। सूर्य मन्दिरों के सामने अरुण स्तम्भ इन्हें ही समर्पित होते हैं। वाल्मीकि रामायण में अपना परिचय देते हुए जटायु ने प्रजापतियों से लेकर अपने वंश का परिचय दिया है। उनके अनुसार 17वें और अन्तिम प्रजापति कश्यप का विवाह 14वें प्रजापति दक्ष की 8 कन्याओं (पुराणों के अनुसार 13 कन्याओं) से हुआ। वे हैं - अदिति, दिति, दनु, कालका, ताम्रा, क्रोधवशा, मनु और अनला। ताम्रा से उत्पन्न पाँच कन्याओं में श्येनी से श्येनों (बाजों) का जन्म हुआ तथा शुकी ने नता नामक कन्या को जन्म िदया और नता से विनता नामक पुत्री हुई और उनके दो पुत्र थे गरुड और अरुण। अरुण से ही जटायु और सम्पाति का जन्म हुआ था। (वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड, सर्ग 14)