पौराणिक विषय [अकारादि क्रम से]
(भाग-8)
अरुण औपवेशि गौतम : प्राचीन आचार्य जिनका उल्लेख संहिता, ब्राह्मण एवं उपनिषद् में हुआ है। उद्दालक आरुणि उनके शिष्य थे।
अरुन्धती (प्रथम) : इन्हें अक्षमाला भी कहा गया है। ये महर्षि वसिष्ट की पत्नी थीं। उनके पिता का नाम कर्दम प्रजापति तथा माता का नाम देवभूति था। आकाश में सप्तर्षियों के मध्य वसिष्ट के पास अरुन्धती का तारा है। हिन्दू परम्परा में अरुन्धती स्थायी विवाह सम्बन्ध का प्रतीक माना जाता है। विवाह में सप्तपदी गमन के पश्चात् वर मन्त्र का उच्चारण करता हुआ वधू को अरुन्धती के दर्शन करवाता है। महाभारत में उल्लेख है कि ब्रह्माजी की सभा में अरुन्धती का प्रमुख स्थान था। उनकी गणना पृथ्वी, ह्री, स्वाहाकीर्ति, सुरा, शची के साथ की जाती थी।
अरुन्धती (द्वितीय) : विष्णुपुराण के अनुसार काल की दस पत्नियों में से एक। ये पत्नियाँ हैं : अरुन्धती, वसु, यमी, लम्बा, भानु, मरुत्वति, संकल्पा, मुहूर्ता, साद्या और विश्वा।
अर्धनारीश : भगवान् शिव (ईश) का विशेष स्वरूप, जिसका आधा भाग उनके अर्धांगिनी पार्वती जी (अर्धनारी) का है। उनका प्रसिद्ध ध्यान इस प्रकार है :
नील-प्रवाल-रुचिरं विलसत्-त्रिनेत्रम्
पाशारुणोत्पल-कपालक-शूल-हस्तम्।
अर्धाम्बिकेशमनिशं प्रविभक्त-भूषम्
बालेन्दु-बद्ध-मुकुटं प्रणमामि रूपम्।।
अर्थात् नीले प्रवाल के समान सुन्दर शरीर है। तीन नेत्रों से सुशोभित हैं। चार हाथों में पाश, लाल कमल, नर-कपाल और शूल लिए हैं। आधा शरीर अम्बिका का और आधा शिव का है, वैसी ही अलग-अलग वेशभूषा है। मुकुट पर बाल चन्द्रमा सुशोभित है। इस प्रकार के रूप वाले भगवान् अर्धनारीश्वर को मैं प्रणाम करता हूँ।
अर्धनारीश को अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है।
अर्धनारीश्वर तिथि : अष्टमी से युत नवमी अर्धनारीश्वर या उमा माहेश्वरी तिथि कहलाती है —
अष्टमी नवमी युक्ता नवमी चाष्टमीयुता।
अर्धनारीश्वरप्राया: उमामाहेश्वरी तिथि:।।
अर्धलक्ष्मीहरि : भगवान् विष्णु का विशेष स्वरूप, जिसमें वे आधे लक्ष्मी के आकार में तथा आधे स्वयं के आकार में हैं। ‘गौतमीय तन्त्र’ आदि में इसका उल्लेख मिलता है।
अर्बुद (ॠषि) : एक ॠषि जिनका उल्लेख ‘एेतरेय ब्राह्मण’ (6/1) तथा ‘कौशितकि ब्राह्मण’ (29/1) में मिलता है।