Fast and Festivals (व्रत-पर्व) | Sharddha Paksha (श्राद्धपक्ष)

What do Ancestors want, listen to their own words...

10-September ,2022 | Comment 0 | gotoastro

What do Ancestors want, listen to their own words...

क्या चाहिए पितरों को सुनिए उन्हीं की जुबानी ...

पितृगणों को प्रसन्न करना कोई बहुत बड़ा काम नहीं है। वे हमारे पूर्वज हीं तो हैं। यही कारण है कि उनका हमसे भावनात्मक लगाव भी होता है। वर्तमान में समझा जाता है कि पितृशान्ति के निमित्त ही या पितरों को प्रसन्न करने के निमित्त बहुत लम्बे-चौड़े विधि-विधान की आवश्यकता होती है, लेकिन ऐसा नहीं है।
वराहपुराण में अध्याय 13 में स्वयं पितृगण कहते हैं : यदि श्राद्धकर्ता सम्पन्न है, तो धनलोलुपता छोड़कर हमारे निमित्त पिण्डदान करना चाहिए। ब्राह्मणों को रत्न, वस्त्र, वाहन एवं आवश्यक वस्तुएँ देनी चाहिए। यदि साधारण धनी है, तो श्राद्धकाल में भक्तिपूर्वक एवं विनम्रचित्त से उत्तम ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन कराना चाहिए। यदि अन्नदान में भी असमर्थ हो, तो उत्तम ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक फल-मूल, शाक या थोड़ी-सी दक्षिणा ही दे दे।
यदि इसमें भी असमर्थ है, तो किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को प्रणाम कर, उसे एक मुठ्ठी काले तिल ही दे, अथवा हमारा ध्यान करते हुए हमारे निमित्त भक्ति एवं विनयपूर्वक 7-8 तिलों से युक्त जलांजलि (तर्पण) ही दे दे। यदि इसका भी अभाव हो, तो कहीं से एक दिन के चारे का प्रबन्ध करके श्रद्धापूर्वक गाय को खिलाए और यदि यह भी न हो, तो अपने हाथ ऊपर करके सूर्य आदि दिक्पालों से यह कह दे कि ‘मेरे पास श्राद्धकर्म के योग्य न धन सम्पत्ति है और न कोई अन्य सामग्री, अत: मैं अपने पितरों को प्रणाम करता हूँ। वे मेरी भक्ति से ही सन्तुष्ट हों। मैंने अपनी दोनों भुजाएँ उनकी प्रसन्नता के लिए ऊपर उठा रखी हैं।

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