क्या खोजना है अब यहाँ,
दर्षित कोई मन की व्यथा।
संसार में चलना सही,
नहीं कोई भी नूतन कथा।।
सब जोहते हैं बाट को,
अन्तिम क्षणों की बात को।
दिन की कहाँ तक पहुँच है,
सोचे सभी ये रात कोे।।
ये रात भी सँवर यहाँ,
कुछ काल तक बस दिख रही।
सच में यही है यहाँ पर,
जो प्रश्न को ही लिख रही।।
प्रश्न जब उत्तर बने,
तब लक्ष्य की दिखती दिशा।
मैं भी नहीं तुम भी नहीं,
होती प्रकाशित भी निशा।।
सब अँधेरों को छोड़कर,
रोशन करें मन को सभी।
दीपन करें नित स्वयं का,
रोशन करें कण कण अभी।।
हमने यहाँ पर क्या किया,
जो चल रहा उसको जिया।
ऐसे पलों को चुन रहे,
जिनके क्षणों ने गम दिया।।
संग्रह किया उन क्षणों का,
जिनका भूत संदिग्ध है।
हम जी रहे उस काल में,
जो स्वयं ही उद्विग्न है।।
संचय किया उस नाम का,
जिसका कोई चेतन नहीं।
मन भी जडों से युक्त है,
जिसमें स्पन्दन नहीं।।
रूप को हमने संवारा,
जो बदलता नित नया।
जो आज है पर आज ही,
कल में वही समझो गया।।
संग्रह करें संचेतना,
संग्रह बने चित् का सभी।
हम भी कभी तो पूर्ण थे,
पर अंश चित् का है अभी।।