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दशम भावस्थ गुरु का पितृसुख पर प्रभाव

14-September ,2021 | Comment 0 | gotoastro

दशम भावस्थ गुरु का पितृसुख पर प्रभाव

दशम भावस्थ गुरु का पितृसुख पर प्रभाव
Effect of Tenth House Jupiter on Father's Happiness
लेखक - सुरेश तंवर
प्रकाशन तिथि - जनवरी, 2007



ज्योतिष में कुण्डली के दशम भाव को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है| जीवन का आधार कर्म है और कर्म का हेतु दशम भाव है| जातक का पद, नौकरी, जीवन निर्वाह हेतु कार्य, प्रकार, प्रतिष्ठा और कीर्ति आदि दशम भाव दर्शाता है|
सौर मण्डल के नौ ग्रहों के परिवार में बृहस्पति को देवगुरु कहा गया है| देव गुरु अर्थात् देवताओं का गुरु (शिक्षक, अध्यापक, मार्गदर्शक आदि) कहा गया है|  शुभ ग्रहों को देवता कहा जाता है| गीता में भी कृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि :
पुरोधयां च मुख्य मां विद्धि पार्थ बृहस्पतिम् ... |
अर्थात् हे पार्थ, पुरोहितों में मुख्य बृहस्पति मै हूँ| इस प्रकार बृहस्पति को शुभता में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है| इसकी दृष्टि को अमृत छिडकने के तुल्य मानी जाती है| इसके प्रमुख कारकत्व हैं सम्पन्नता, धन, सुख-सुविधाएँ, राज कृपा, कानून, राजकोष, वाक् शक्ति, पति एवं पुत्र आदि| कुण्डली के भावों में यह द्वितीय, पंचम, सप्तम, नवम, दशम एवं एकादश का कारक होकर सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रह माना जाता है|
दशम भावस्थ बृहस्पति के सुखकारक, शुभ कर्मों को करवाने वाला, पवित्र कर्म क्षेत्र देने वाला आदि माना गया है, किन्तु अनेक बार यह शुभ फल नहीं देता है, अत: यह एक विस्तृत अध्ययन का विषय है|

दशम भावस्थ गुरु पर विद्वानों का मत
1. बी.वी. रमन : राजकीय सेवा में उच्च पदस्थ धनी, गुणी, स्पष्टवक्ता आध्यात्मिक एवं धार्मिक जीवन जीने वाला होता है| वह बुद्धिमान्, सुखी, नैतिक जीवन जीता है| यदि शुक्र भी साथ में हो, तो राज्य पक्ष से उसे विशेष कार्य सौपा जाता है| राहु के साथ गुरु जातक को छली-कपटी बनाता है| मंगल की दशम भावस्थ गुरु पर दृष्टि हो, तो जातक शोधकर्ता, उच्च शिक्षा के संस्थान में कार्य करता है|
2. ज्योतिषी स्व. एच.एन. काटवे : (अनुभव के आधार पर ) पुराणों में दुर्योधान के अधोपतन का कारण दशमस्थ गुरु बतलाया है| अनुभव में आया है कि दशम भावस्थ गुरु के फलस्वरूप 16 या 24 वर्ष पूर्व पिता की मृत्यु होती है| या उससे झगड़ा होकर अलग रहना पड़ता है| दोनों का भाग्योदय साथ नहीं होता है| कर्ज बढ़ता है, कारावास का प्रसंग भी आता है| पिता की कमाई का उपयोग नहीं होता| लोगों से याचना करनी पड़ती  अपयश मिलता है| इन फलों का अनुभव विशेष रूप से वृषभ, कन्या, तुला, मकर एवं कुंभ लग्न वालों में विशेष रूप से पाया गया है|
3. कृष्ण कुमार (आजीविका विचार) :
(i) अपने बड़े या चचेरे भाई से धन लाभ कराता है|
(ii) न्यायालय संबंध कार्यालय में जज या मजिस्ट्रेट होता है|
(iii) धार्मिक संस्था से जुड़कर धर्मोपदेश, पूजा, कथा, कृत्य कराता है|
(iv) गुरु धन का नैसर्गिक कारक होने से ब्याज, मकान किराया या बैंक की नौकरी का लाभ देता है|
(v) नवम भाव या नवमेश से संबंध होने पर राज्य अधिकारी बनाता है|
4. फलदीपिका : यदि गुरु दशम भाव में हो, तो जातक अत्यन्त धनी और राजा का प्यारा होता है| वह उत्तम आचरण वाला और यशस्वी भी होता है|
5. श्री के.एन. राव : श्री राव के अनुसार दशम भावस्थ गुरु जातक को किसी न किसी रूप में विश्‍वविद्यालय से जोड़ता है|
6. भार्गव नाड़ी (अडयार लाइब्रेरी, मद्रास) : भागर्व नाड़ी के अनुसार दशम भावस्थ गुरु उसकी नवांश में स्थिति के अनुसार फल देता है|
1. सिंह नवांश में : मंत्री पद|
2. धनु नवांश में : विद्वता|
3. शत्रु नवांश (3,6,2,7) : शिक्षा विहिन और दु:खी|
4. मित्र नवांश में (1,8) : राजक्षेत्र में प्रसिद्ध|
5. कुंभ नवांश में : कठोर वाणी|
6. नीच नवांश में : अनेक पाप कर्म|
7. उच्च नवांश में : शास्त्रों का ज्ञाता और विद्वान्‌|
8. स्व नवांश (12) : दूसरों का सहारा|
ज्योतिष विद्वानों के उपर्युक्त कथनों को ध्यान में रखते हुए आइए, हम दस विभिन्न विभूतियों की जन्म कुण्डलियों का अध्ययन करें|
उदाहरण 1 : गौतम बुद्ध
दिनांक : 14 अप्रैल, 623 बीसी
जन्म समय : दोपहर
जन्म स्थान : 27:08 उत्तर; 83:05 पूर्व
राशि कुण्डली


नवांश कुण्डली


यह जन्म चक्र राजा शुद्धोदन के पुत्र राजकुमार सिद्धार्थ का है, जो संन्यासी बन बौद्ध धर्म के संस्थापक बन गौतम बुद्ध के नाम से विश्‍व में प्रसिद्ध हुए| गुरु की महादशा के अंतिम चरण में ही इनके  मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया था| 30 वर्ष की आयु में पिता का महल त्याग कर वन को चले गए थे|
कुण्डली में गुरु दशम भावस्थ एवं मित्र नवांश में उच्च का है| धर्म भावेश गुरु दशम भावस्थ होकर आध्यात्मिक एवं धर्म के कर्म का प्रतीक है| गुरु की महादशा 15 वर्ष की आयु तक रही| इसी के दौरान इनमें वैराग्य की भावना का उदय हो गया था|
उदाहरण 2 : शिरडी के साईं बाबा
जन्म दिनांक : 27 सितम्‍बर 1838
दिनांक समय : 12:05:27
जन्म स्थान : मनमाड़ (मध्यप्रदेश)
राशि कुण्डली


नवांश कुण्डली


यह जन्म चक्र विश्‍व प्रसिद्ध महान् सन्त एवं आध्यात्मिक विभूति शिरड़ी के साईं बाबा का है| आज भी इन्हें ईश्‍वर के समान पूजा जाता है|
कुण्डली में दशम भावस्थ गुरु धर्म भाव के स्वामी सूर्य एवं आध्यात्मिक ग्रह केतु से संयुक्त है| गुरु मीन नवांश में स्थित है| जन्म लेते ही इनको जन्म देने वाले माता-पिता ने त्याग दिया और जंगल में चले गए थे| एक मुसलमान फकीर और उसकी पत्नी ने इनको पाला- पोसा था| जब ये चार साल के हुए तो उस फकीर की भी मृत्यु हो गयी| इस प्रकार इनको पिता का सुख नहीं मिला था|
गुरु की महादशा जुलाई 1894 से शुरू हुई| उस समय लोग इनको भगवान् मानने लगे और इनके दर्शन के लिए भीड़ उमड़ने लगी थी| यह एक आध्यात्मिक महान् संत माने जाने लगे|
उदाहरण 3 :  बी.वी. रमन
जन्म दिनांक : 8 अगस्त, 1912
जन्म समय : 19:42:20 बजे
जन्म स्थान : बंगलौर
राशि कुण्डली


नवांश कुण्डली


उपर्युक्त जन्म कुण्डली अंग्रेजी की ज्योतिष मासिक पत्रिका के सम्पादक श्री बी.वी. रमन की है, जो स्वयं एक विश्‍व ख्याति प्राप्त ज्योतिषी थे|
कुण्डली में दशम भावस्थ गुरु शत्रु नवांश तुला में है| जीवन का प्रारंभिक भाग अनेक कष्टों से परिपूर्ण रहा| पिता के साथ नहीं रह पाएँ| पिता का सुख नगण्य रहा| स्थायी सम्पत्तियॉं बेचनी पड़ीं| मॉं की मृत्यु लगभग 5 वर्ष की आयु में ही हो गयी थी| शिक्षा भी सामान्य रही| दादा के संरक्षण में पले-बढ़े और ज्योतिष की शिक्षा प्राप्त की| ज्योतिष विषय में योगदान के लिए कुमायुँ विश्‍वविद्यालय ने अनेक सम्मान दिए|
गुरु की महादशा में धन और यश प्राप्त हुआ| गुरु तुला नवांश में तो है, लेकिन शुक्र जन्म लग्न और नवांश लग्न से योग कारक है| गुरु लग्नेश गुरु के नक्षत्र में है|
उदाहरण 4 : ऑगस्ट सीजर
दिनांक : 23 सितम्‍बर, 63 बी.सी.
जन्म समय : 05:48 बजे
जन्म स्थान :  41:53 उत्तर; 12:28 पूर्व
राशि कुण्डली


नवांश कुण्डली


सीजर रोम का वह सम्राट् था, जिसने रोम को एक नया स्वरूप दिया| उसने रोम को ही नहीं वरन् पूरे यूरोप को विघटन से बचा लिया था| कुण्डली में दशम भावस्थ गुरु उच्च का है| वह नवांश में यद्यपि बीच का है, किन्तु गुरु से भाव परिवर्तन कर स्वगृही (स्व नवांश) तुला बन गया है|
इनके पिता की जब ये मात्र 5 वर्ष की आयु के थे मृत्यु हो गयी थी| उस समय राहु में गुरु का अन्तर चल रहा था| गुरु की महादशा प्रारंभ होते ही ये सम्राट् बने और अपने शत्रुओं को परास्त कर रोम में राजनीतिक स्थिरता और शान्ति स्थापित की|
उदाहरण 5 : जॉर्ज षष्ठ
जन्म दिनांक : 14 दिस., 1895
जन्म समय : 03:05 बजे
जन्म स्थान : 52:51 उत्तर; 00:30 पूर्व
राशि कुण्डली


नवांश कुण्डली


ब्रिटिश सम्राट् जार्ज षष्ठ की उपर्युक्त जन्म कुण्डली दशम भावस्थ गुरु के संबंध में विशेष उल्लेखनीय है|
कुण्डली में गुरु उच्च का और स्व नवांश में स्थित है| इस श्रेष्ठ गुरु की दृष्टि सूर्य एवं चन्द्रमा पर उच्च की है| ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार उच्च के ग्रह से दृष्ट चन्द्रमा बली राजयोग का निर्माण करता है| जनवरी, 1936 में जब ये 41 वर्ष के थे पिता की मृत्यु हो गयी थी|
उच्च का गुरु बुध के नक्षत्र में है, अत: बुध ने गुरु का फल देते हुए अपनी महादशा में श्रेष्ठ भाग्योदय किया| केतु में बुध के अन्तर में सम्राट् बने थे| गुरु की महादशा जीवन में नहीं आयी थी|
उदाहरण 6 : चन्द्रबाबू नायडू
जन्म दिनांक : 20 अप्रैल, 1959
जन्म समय : 11:30 बजे
जन्म स्थान : रायसीमा (आन्ध्रप्रदेश)
राशि कुण्डली


नवांश कुण्डली


उपर्युक्त जन्म कुण्डली आन्ध्रप्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री चन्द्रबाबू नायडू की है| गुरु की महादशा में देश की राजनीति के शिखर पर रहे श्री नायडू शनि की महादशा में अपदस्थ हो जमीन पर आ गये|
कुण्डली में गुरु ‘हंस योग’ ‘गजकेसरी योग’ का निर्माण होकर दशम भावस्थ है| गुरु सिंह नवांश में होकर मंत्री पद दिलवाने वाला ग्रह है| श्री नायडू लम्बे समय तक  विश्‍वविद्यालय से जुड़े रहे| वहीं से छात्र राजनीति में प्रवेश कर छात्र संघ के अध्यक्ष रहे|
गुरु की महादशा (7 फरवरी, 1983 से 6 फरवरी, 1999) में मंत्री और फिर मुख्यमंत्री बने|
उदाहरण 7 : संजय गॉंधी
जन्म दिनांक : 14 दिसम्‍बर, 1946
जन्म समय : 09:27 बजे
जन्म स्थान : दिल्ली
राशि कुण्डली


नवांश कुण्डली


यह जन्म चक्र भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गॉंधी के कनिष्ठ पुत्र संजय गॉंधी का है, जिनका जून, १९८० को ३४ वर्ष की आयु में हवाई दुर्घटना में निधन हो गया था|
कुण्डली में दशम भावस्थ गुरु शत्रु राशि तुला में और शत्रु नवांश वृषभ में स्थित है| दोनों कुण्डलियों में श्ाुक्र से संयुक्त भी है| इनकी शिक्षा सामान्य रही और इस छोटी आयु में अनेक संकटों से गुजरना पड़ा था| पिता का भी सुख और साथ नहीं मिला था|
उदाहरण 8 : राहुल गांधी
जन्म दिनांक : 19 जून, 1970
जन्म समय : 21:52 बजे
जन्म स्थान : देहली
राशि कुण्डली


नवांश कुण्डली

 


उपर्युक्त कुण्डली कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गॉंधी के पुत्र और भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गॉंधी के पुत्र सांसद राहुल गॉंधी की है|
कुण्डली में दशम भावस्थ गुरु वक्री एवं वर्गोत्तम है| गुरु चन्द्र लग्नेश और सूर्य से दशमेश भी है, अत: गुरु स्वनवांश के समान और स्वगृही के समान फल प्रदान करने वाला ग्रह है| इसकी महादशा आयु के 64वें वर्ष के बाद शुरू होगी|
वर्तमान में चन्द्रमा की महादशा चल रही है| बुध (भाग्येश) चन्द्रमा के नक्षत्र में पंचम भाव में स्थित है| यह महादशा महत्त्वपूर्ण पद दिलवा सकती है| इनके पिता की मृत्यु 21 मई, 1991 में हुई थी, जब ये मात्र 21 वर्ष के थे, अत: पिता का सुख और साथ अल्पकालिक रहा|
उदाहरण 9 : माधवराव सिंधिया
जन्म दिनांक : 09 मार्च, 1945
जन्म समय : 00:36 बजे
जन्म स्थान : ग्वालियर
राशि कुण्डली


नवांश कुण्डली


यह जन्म कुण्डली राजस्थान की मुख्यमंत्री श्री वसुंधरा राजे के बड़े भाई और भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री सिंधिया की है| इन्होंने 1984 के लोकसभा चुनाव में भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी को परास्त कर चुनाव जीता और सभी को आश्‍चर्यचकित कर दिया था|
कुण्डली में दशम भावस्थ गुरु वक्री एवं धनु नवांश में है| इसने इन्हें योग्य, विद्वान् और धार्मिक बनाया| पिता का सुख एवं साथ अल्पकालीन रहा| इन्होंने अनेक शिक्षण संस्थानों में सहयोग दिया था| गुरु की महादशा सन् 1986-2002 तक रही थी| इसमें ये अनेक बार चुनाव जीते और केन्द्रीय मंत्री पदों पर रहे थे|
उदाहरण 10 : डॉ. रवीन्द्रनाथ चतुर्वेदी
जन्म दिनांक : 07 नवम्‍बर, 1942
जन्म समय : 06:15 बजे
जन्म स्थान : भरतपुर
राशि कुण्डली


नवांश कुण्डली


यह जन्म चक्र विश्‍वविद्यालय के शिक्षक एवं अन्य महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे विद्वान् का है| इनकी कुण्डली में गुरु दशम भावस्थ होकर उच्च का और वर्गोत्तम है| शिक्षा के विषय ने अनेक शोध के कर्ता श्री चतुर्वेदी ने अनेक मौलिक पुस्तकें लिखी हैं|
गुरु की महादशा सन् 1964-1980 तक रही थी| इस दौरान इन्होंने शिक्षा पूरी कर अपना मौलिक शोध प्रस्तुत किया| अनेक विश्‍वविद्यालयों में शिक्षण का कार्य कर अपना श्रेष्ठ योगदान दिया| पिता का सुख कम मिला|
निष्कर्ष : उपर्युक्त अध्ययन से हम निम्नलिखित सारभूत तथ्य प्राप्त करते हैं|
1. दशम भावस्थ गुरु का अध्ययन करते समय हमें उसकी नवांशगत स्थिति का अवश्य ध्यान रखना चाहिए|
2. यदि लग्न से गुरु शुभ स्थान का स्वामी हो, तो शुभ फल विशेष प्राप्त होते हैं| जैसे 
धनु और मीन लग्न के लिए लग्नेश
मेष लग्न के लिए भाग्येश
मिथुन लग्न के लिए स्वगृही
कर्क लग्न के लिए भाग्येश
सिंह लग्न के लिए पंचमेश
वृश्‍चिक लग्न के लिए पंचमेश इत्यादि|
3. दशम गुरु आध्यात्मिक, धार्मिक, शिक्षा का क्षेत्र अवश्य प्रदान करता है|
4. यदि दशम भावस्थ गुरु लग्न विशेष के लिए योगकारक होकर शुभ नवांश में हो, तो धन, पद और प्रतिष्ठा प्रदान करता है|
5. पिता के सुख और साथ में कमी देता है|
उपसंहार : उपर्युक्त अध्ययन में हमने पाया कि कर्म स्थान में स्थित गुरु श्रेष्ठ फल देता है, यदि वह शुभ नवांश में स्थित हो| शनि के सामने या उससे दृष्ट होने पर लम्बे संघर्ष के बाद सफलता मिलती है| अन्य ग्रहों से युति से फल में परिवर्तन आता है| आध्यात्मिक और धार्मिक पक्ष के लिए यह श्रेष्ठ फलदायक है| पिता के सुख और साथ में कमी देता है|•

 

 

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