मंगल : मंगल भी अमंगल भी
Mars : Mars is Malefic, also Benefic
एस.पी. गुप्ता
प्रकाशन तिथि : फरवरी, 2007
सौरमंडल में सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं| हमारी पृथ्वी का परिभ्रमण पथ मंगल और शुक्र ग्रहों के निकट (लगभग 487 लाख मील की दूरी) और कभी काफी दूर (लगभग 2333 लाख मील की दूरी) पर चला जाता है| इसलिए यह कभी छोटा और कभी बड़ा दिखाई देता है| यह लगभग 687 दिनों में सूर्य की प्रदक्षिणा करता है| मंगल का व्यास पृथ्वी से लगभग आधा (लगभग 4221 मील) है| सूर्य से दूर होने के कारण यह आकाश में सरलता से देखा जा सकता है| मंगल उदित होने के लगभग 10 माह बाद वक्री होता है, फिर लगभग दो माह के बाद मार्गी होता है और उसके लगभग दस माह बाद अर्थात् उदय होने के लगभग 22 माह बाद अस्त हो जाता है|
मंगल की अंगार समान लाल, उष्ण प्रकृति, अग्नि तत्त्व और तमोगुणी प्रवृत्ति है| मेष और वृश्चिक राशि तथा मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा नक्षत्रों का यह स्वामी है| मेष राशि इसकी मूल त्रिकोण राशि भी है| सूर्य, चन्द्र और गुरु इसके मित्र हैं, जबकि बुध से इसकी शत्रुता है| मकर राशि में यह उच्च का और कर्क में नीच प्रवृत्ति का होता है| आकाशीय संसद में सूर्य को राजा और मंगल को सेनापति का पद दिया गया है| मंगल उदर से पीठ, पुट्ठे, नाक, कपाल, स्नायु, जननेन्द्रियों के बाह्य भाग का कारक माना गया है| यह कुष्ठ रोग, रक्त विकार, ज्वर, व्रण, चोट, रक्तस्राव, विषपान, नेत्र रोग आदि का भी कारक है| भाई, पृथ्वी, पुत्र सुख, निर्माण कार्य, झगड़ा, ससुराल, आग आदि इसके प्रभावाधीन आते हैं|
मंगल घोर स्वाभिमानी, अनुशासनप्रिय, अत्यधिक कठोर और क्षत्रिय (सेनापति) स्वभाव का ग्रह है| ऐसा स्वभाव सामान्य रूप में असहनीय होता है और इसलिए मंगल को क्रूर पापी स्वभाव का पुरुष प्रकृति का ग्रह माना गया है| जन्मकुंडली में मंगल अपने स्थान से चतुर्थ, सप्तम और अष्टम स्थान को देखता है| चतुर्थ स्थान सुख का, सप्तम स्थान जीवनसाथी और भागीदार का तथा अष्टम स्थान आयु और नाश (मृत्यु) का है, जो जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं| यह क्रोध, उत्तेजना और आवेश का द्योतक है| क्रोध-उत्तेजना की स्थिति में विवेक का साथ छूट जाता है और जातक सुख से वंचित हो जाता है और जीवनसाथी और सहयोगी से अनबन या वैचारिक मतभेद से उनका साथ और सहयोग छूट जाता है, जिससे उसका जीवन कष्टमय बन जाता है और उसकी जीवन शक्ति (आयु) का ह्रास होता है|
मंगल जन्मकुंडली के तीसरे और छठे भाव का कारक ग्रह है| यदि मंगल अपनी राशि में या उच्च का होकर केन्द्र भाव में स्थित हो, तो ‘रुचक’ नाम का योग बनता है, जिसमें उत्पन्न जातक शरीर का मजबूत, आकर्षक, बलवान्, धनी, राजा या उसके समकक्ष होता है|
मंगल का अर्थ शुभता, मांगलिकता, मधुरता, अनुकूलता से है| यह पराक्रम, शौर्य, बल और साहस का प्रतीक है| यह मंगल बली और शुभ प्रभाव में हो, तो यह शक्ति, सामर्थ्य, भू-सम्पत्ति और वैभव देता है और स्पष्ट व्यवहारवादी, पराक्रमी, नायक (अगुवा) बनाता है| यदि मंगल निर्बल और अशुभ प्रभाव में हो, तो जातक को क्रोधी, आलसी, धोखेबाज, मूर्ख, हठी, झगड़ालू, कुकर्मी बनाता है और जातक अपनी इन आदतों से अपना नुकसान कर जीवन को कष्टमय बना लेता है|
महान् पराक्रमी और लोकप्रिय सम्राट् पृथ्वीराज चौहान की जन्मकुंडली में मंगल लग्नेश होकर सप्तम भाव में स्थित होकर लग्न को पूर्ण दृष्टि से देख रहा है| मंगल पर दशमेश (राज्येश) और एकादशेश (लाभेश) शनि की तृतीय उच्च दृष्टि मंगल को और बल प्रदान कर रही है| पराक्रम स्थान (तृतीय भाव) में उच्च के राहु भी मंगल को पंचम दृष्टि से देख रहे हैं| पराक्रमेश बुध, धनेश शुक्र और भाग्येश गुरु दशम भाव (राज्य स्थान) में विराजमान हैं और उन पर लग्नेश मंगल की चतुर्थ उच्च दृष्टि ने उनको और बल प्रदान किया है, जिसके फलस्वरूप जातक महान् पराक्रमी और योग्य शासक बने|
प्रस्तुत जन्म कुण्डली कुख्यात दस्यु मानसिंह की है| यहॉं लग्नेश मंगल अष्टम भाव में है| अष्टमेश बुध उच्च के होकर एकादश भाव में नीच के शुक्र (द्वादशेश) के साथ हैं, जिन पर मंगल की चतुर्थ दृष्टि है| मंगल की मूल त्रिकोण राशि मेष में षष्ठ भाव में राहु है, जिस पर शनि (पराक्रमेश) की तृतीय नीच दृष्टि है, जिसके कारण राहु का शनि युक्त प्रभाव मंगल ने अर्जित किया| मंगल की सप्तम दृष्टि द्वितीय (धनभाव) तथा अष्टम उच्च दृष्टि तृतीय (पराक्रम) भाव पर पड़ रही है और दूषित मंगल षष्ठेश होकर षष्ठ से षष्ठ अर्थात् एकादश भाव को भी चतुर्थ दृष्टि से देख रहा है| फलस्वरूप जातक ने अपने पराक्रम और बाहुबल को लाभ अर्जन और धन संचय हेतु डकैती, हिंसा और आतंक का सहारा लिया| शनि की दशम दृष्टि, लग्नेश स्थित गुरु पर पड़ने से बुद्धि बल का दुरुपयोग हुआ और जातक के जीवन की दिशा सद्मार्ग से भटक गई|
प्रस्तुत जन्म कुण्डली नाथूराम गोड़से की है| कुण्डली में मंगल षष्ठेश और एकादशेश (षष्ठ से षष्ठ) का स्वामी है और दोनों भाव हिंसा प्रधान हैं| मंगल लग्न में है, जिस पर नीच शनि की तृतीय दृष्टि और केतु की नवम दृष्टि है, जो उसके पाप प्रभाव को और बढ़ा रही है| दूषित मंगल की चतुर्थ दृष्टि चन्द्रमा (मन) और गुरु (बुद्धि) को भी दूषित कर रही है| मंगल बुध की राशि में लग्न में है, जिससे लग्न और लग्नेश बुध दूषित हो रहे हैं| लग्नेश बुध द्वादश भाव में है, जो मंगल से तो दूषित है ही, एक ओर शनि और दूसरी ओर मंगल होने से पापकर्तरि योग में भी है| बुध स्वयं भी सूर्य और राहु के साथ है| इस प्रकार मन, बुद्धि और विवेक के दूषित होने से जातक (नाथूराम गोडसे) द्वारा महात्मा गॉंधी जैसे महापुरुष की हत्या का दुष्कर्म किया गया|
मंगल अपने स्वभाव, स्थिति और बल के अनुसार फल देता है| मंगल का सूर्य से सम्बन्ध दो उष्ण प्रकृति वाले ग्रहों से सम्बन्ध है, जो प्रबल ऊर्जा का स्रोत है| इस पर शुभ प्रभाव जातक को अन्यत्र साहसी, सृजनात्मक कार्यों में संलग्न (सर्जन, डॉक्टर, अभियंता, सेना, पुलिस अधिकारी आदि), भूमिपति आदि बना सकता है, वहीं अशुभ प्रभाव दुष्कर्म, हिंसा और अराजकता की ओर ले जा सकता है| मंगल का चन्द्र से सम्बन्ध अग्नि और जल तत्त्वों का सम्बन्ध है जिससे वाष्प उत्पन्न होती है, जिसकी सकारात्मक शक्ति इंजन चला सकती है, वहीं नकारात्मक दिशा में वह सर्वनाश भी कर सकती है अर्थात् चन्द्र-मंगल पर शुभ प्रभाव जातक को ऊँचाइयों पर पहुँचा सकता है, वहीं अशुभ प्रभाव उसके जीवन को नारकीय बना सकता है| मंगल का बुध से सम्बन्ध साहस और विवेक का सम्बन्ध है| अगर यह शुभ और सकारात्मक हो, तो जातक अपने कार्यों से बहुत उन्नति और ख्याति अर्जित कर सकता है, वहीं अशुभ और नकारात्मक प्रभाव उसको विनाश के कगार पर खड़ा कर सकता है| मंगल और गुरु का सम्बन्ध साहस और ज्ञान-धर्म अर्थात् बल-बुद्धि का सम्बन्ध है| अगर यह शुभ है, तो जातक अच्छा विद्वान्, शिल्पी, ज्योतिषी, नेता, वरिष्ठ अधिकारी और सम्पन्न व्यक्ति बनकर प्रसिद्धि अर्जित करता है, किन्तु अशुभ प्रभाव जातक की ऊर्जा की गलत दिशा की ओर मोड़ देंगे, जिससे जातक दुष्प्रवृत्ति का हो जाएगा| शुक्र कामशक्ति और सौन्दर्य का प्रतीक है, फलस्वरूप मंगल एवं शुक्र का संबंध जातक को अतिशय कामी बना देता है| इस पर अशुभ प्रभाव जातक को मर्यादाहीन, व्यसनी, व्यभिचारी बना सकता है| शुभ प्रभाव जातक को व्यापार में कुशलता और वाहन सुख की बाहुल्यता भी देता है| मंगल और शनि का सम्बन्ध दो तमोगुणी, किन्तु शुभ ग्रहों का है तथा अग्नि और वायु तत्त्वों का संयोग है, जिसके फलस्वरूप मंगल की प्रखरता में कुछ कमी तो आती है, किन्तु उसके प्रभाव का दायरा बढ़ जाता है| इन पर अशुभ प्रभाव जातक को व्यवहार में धूर्त, कपटी और अविश्वासी बना देता है| मंगल-राहु की युति सामान्यत: मंगल के अशुभ प्रभाव में और योगदान देता है, वहीं मंगल-केतु की युति मंगल की अशुभता में कमी कर उसके शुभत्व को बढ़ाती है| यहॉं यह तथ्य ध्यान में रखने योग्य है कि राहु-केतु जिस राशि में होते हैं, उसके स्वामी ग्रह के गुणों को आत्मसात कर परिणाम देते हैं|
प्रस्तुत जन्म कुण्डली जर्मनी के तानाशाह शासक हिटलर की है| यहॉं मंगल स्वराशि का सप्तम (केन्द्र) स्थान में स्थित होकर ‘रुचक योग’ बना रहा है| उच्च के सूर्य (एकादशेश-लाभेश), बुध (नवमेश-भाग्येश) और शुक्र (लग्नेश) के साथ होने से मंगल बली है| गुरु अपनी राशि धनु में तृतीय (पराक्रम) भाव में है, जहॉं दशमेश (राज्येश) चन्द्र भी विराजमान है| उच्च राशि (धनु) स्थित केतु, गुरु और चन्द्र के बल में अतिशय वृद्धि कर रहे हैं| फलस्वरूप जातक एक साधारण सैनिक से जर्मनी का शासक और पराक्रमी योद्धा बना| मंगल पर शुभ प्रभाव के अतिरिक्त अशुभ प्रभाव भी है| मंगल पर शनि की दशम नीच दृष्टि है तथा केतु की पंचम दृष्टि है| मंगल पर अष्टमेश शुक्र और द्वादशेश बुध का भी प्रभाव है| इन अशुभ प्रभावों ने उसके पराक्रम और बुद्धि को दूषित किया और उस पर विध्वंसकारी प्रभाव कर दिया| फलस्वरूप जातक की विचारधारा और प्रकृति तानाशाह शासक की हो गई और उसकी निष्ठुरता और विनाशकारी प्रवृत्ति उसे पतन की ओर ले गई|
प्रस्तुत जन्म कुण्डली जो कि योगिराज अरविंद घोष की है, में पंचमेश और दशमेश मंगल लग्न में नीच के हैं, जहॉं गुरु (षष्ठेश और भाग्येश) उच्च के होकर विराजमान हैं| फलस्वरूप मंगल का नीचत्व भंग हो गया और उसे गुरु का शुभत्व भी मिला| चन्द्र (मन) और गुरु (ज्ञान) की प्रतिस्थिति है, क्योंकि गुरु चन्द्रमा की राशि कर्क और चन्द्रमा गुरु की राशि धनु में है, जो श्रेष्ठ फलदायक होकर मन से ज्ञान प्राप्ति की स्थिति दर्शाती है| लग्न में स्थित गुरु नवमी दृष्टि से नवम (भाग्य और धर्म) स्थान को स्वक्षेत्रीय दृष्टि से तथा पंचम दृष्टि से पंचम (बुद्धि) भाव को देख रहा है| फलस्वरूप जातक की ऊर्जा, कर्म और बुद्धि धर्म और ज्ञान की ओर उन्मुख हो गई और उन्होंने महान् योग शक्ति प्राप्त की|
प्रस्तुत जन्म कुण्डली एक सफल व्यक्ति जो बाद में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी बने, की है| यहॉं लग्नेश मंगल चतुर्थ भाव में बुध (पराक्रमेश और षष्ठेश) के साथ है, जो दशम स्थान (कर्म भाव) को देख रहे हैं| फलस्वरूप कर्म, बुद्धि और साहस का संयोग बना| धनेश शुक्र पंचमेश सूर्य से युक्त है और उन पर भाग्येश गुरु की पंचम दृष्टि है| चतुर्थेश चन्द्र और दशमेश लाभेश शनि की पंचम (बुद्धि) भाव में युति है और उन पर गुरु (भाग्येश) की दृष्टि है, जिसके फलस्वरूप पंचम भाव (बुद्धि स्थान) और बलवान् हो गया| लग्नेश मंगल और षष्ठेश बुध की युति ने विधि (दंड) सम्बन्धी व्यवसाय को दर्शाया, वहीं कर्म, बुद्धि एवं भाग्य के संयोग ने उसमें अतिशय प्रगति की| फलस्वरूप जातक ने एक सफल विधि व्यवसायी (विशेषकर आपराधिक मामलों में) बनकर ख्याति और समृद्धि अर्जित की और न्यायाधीश के गरिमामय पद को भी सुशोभित किया|
प्रस्तुत जन्म कुण्डली एक सफल महिला चिकित्सक की है| यहॉं मंगल गुरु की राशि धनु में सूर्य (द्वादशेश) और राहु के साथ चतुर्थ (सुख) भाव में स्थित है और उन पर शनि (पंचमेश और षष्ठेश) की दृष्टि है| लग्न में चतुर्थेश और सप्तमेश गुरु कुंडली को शुभता और बल प्रदान कर रहे हैं| शनि पंचमेश और षष्ठेश होकर दशम स्थान में है, जो सूर्य-मंगल से दृष्ट है और चिकित्सा क्षेत्र में सफलता को दर्शाता है| लग्नेश-दशमेश बुध वृश्चिक राशि का होकर तृतीय (पराक्रम) भाव में है जो साहसी, निपुण और कार्यकुशल होने का परिचयायक धनलाभ का संकेत देता है| जातिका एक प्रसिद्ध शल्य चिकित्सक है, जिसने अपनी दक्षता और साहस से कई जटिल मामलों में सफल ऑपरेशन कर धन और यश प्राप्त किया| चतुर्थ भाव में मंगल पर राहु-केतु और शनि का पाप प्रभाव, शुक्र की षष्ठ भाव में उपस्थिति और राहु की उस पर नवम दृष्टि, सप्तम भाव पर मंगल और शनि की दृष्टि ने इनके गृहस्थ जीवन में कई परेशानियॉं पैदा कीं, किन्तु सप्तम स्थान पर कारक गुरु की स्वक्षेत्रीय दृष्टि ने इनके गृहस्थ जीवन को टूटने से बचा लिया|
प्रस्तुत जन्म कुण्डली में चतुर्थ स्थान में लग्नेश मंगल नीच के होकर चतुर्थेश चन्द्र के साथ हैं, जहॉं दशमेश और लाभेश शनि भी वक्री होकर विराजमान है, जिसके फलस्वरूप लग्न (तनु) और चन्द्र (मन) दोनों में दूषित प्रभाव आ गया| सप्तम भाव में स्वराशि तुला के शुक्र पर राहु की पंचम दृष्टि और दूषित मंगल की चतुर्थ दृष्टि से शुभ ‘मालव्य योग’ को भी नगण्य बना दिया| पतिकारक गुरु वक्री होकर षष्ठ स्थान में है जिन पर वक्री शनि की तृतीय दृष्टि है| मंगल की शुक्र पर चतुर्थ दृष्टि ने जातिका को वासनामयी बना दिया| मनकारक चन्द्रमा और लग्नेश मंगल की क्रूर पापी वक्री ग्रह शनि से युति ने इस मानसिकता में और वृद्धि की, जिसके फलस्वरूप जातिका के सम्बन्ध कई व्यक्तियों से बने, किन्तु उनकी परिणति विवाह के रूप में नहीं हो पायी| द्वादश भाव में द्वादशेश गुरु की स्वक्षेत्रीय दृष्टि और सप्तमेश के स्वराशिस्थ होने से जातिका को अस्थायी रूप से शय्या सुख तो मिला, किन्तु पतिकारक गुरु और चतुर्थ एवं सप्तम पर अशुभ प्रभाव ने उसे विवाह और गृहस्थ सुख से वंचित रखा|
प्रस्तुत जन्म कुण्डली एक इंजीनियर की है, जिसने अपना उद्योग स्थापित कर आशातीत प्रगति की| यहॉं मंगल चतुर्थ भाव में उच्च के शनि के साथ है| मंगल पंचमेश और दशमेश होने से योगकारक है और दशम (व्यवसाय) और एकादश (लाभ स्थान) को देख रहा है| भाग्येश गुरु पंचम (बुद्धि) भाव में स्थित होकर भाग्य (नवम), लाभ (एकादश) और लग्न को देख रहा है| लग्नेश चन्द्र की नवमेश गुरु से युति पंचम (त्रिकोण) भाव में होने से चन्द्र के नीचत्व का अशुभ प्रभाव नगण्य हो गया| शनि-मंगल का सम्बन्ध इंजीनियरिंग उद्योग को इंगित करता है| उच्चस्थ शनि की धनेश सूर्य पर तृतीय दृष्टि और लग्न पर दृष्टि जातक को उद्योग द्वारा धन प्राप्ति का योग दर्शाती है| लाभेश शुक्र की तृतीयेश और द्वादशेश बुध के साथ सप्तम (व्यापार) भाव में युति आयात-निर्यात या विदेश व्यापार से लाभ इंगित करती है| दशमेश मंगल की लाभेश शुक्र और लाभ भाव पर दृष्टि, भाग्येश गुरु की लग्न, भाग्य और लाभ भाव पर दृष्टि लाभ में कर्म और भाग्य का प्रबल सहयोग बताता है| लग्नेश चन्द्रमा का भाग्येश गुरु के साथ पंचम भाव में युति पूर्व जन्म के पुण्य फल और शुभत्व का संकेत देती है| जातक एक इंजीनियर और सफल उद्यमी है, जिसका व्यवसाय देश-विदेश में फैला हुआ है| इसका जीवन धन, सुख, स्वास्थ्य, धर्म और सम्मान से परिपूर्ण है|