हनूमान् जी की जन्मपत्रिका
Horoscope of Lord Hanumana
प्रकाशन तिथि - अप्रैल, 2007
सप्त चिरंजीवियों में स्थान प्राप्त महावीर हनूमान् ने चारित्रिक दृढ़ता, बल, शौर्य, एवं स्वामीभक्ति का जो अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है, वह सर्वत्र दुर्लभ है|
श्री हनूमान् जी के जन्मकाल और जन्म-समय के सम्बन्ध में अनेक मतभेद विद्वानों के मध्य हैं, लेकिन शोध और विश्लेषण के पश्चात् जो प्रामाणिक जन्मपत्रिका हमें उपलब्ध हुई, उसके अनुसार हम इनके व्यक्तित्व और कृतित्व का आँकलन प्रस्तुत कर रहे हैं|
हनूमान् जी की जन्मपत्रिका में लग्न मकर है और चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में स्थित है| सूर्य, मंगल, शुक्र, गुरु और शनि अपनी उच्च राशियों में स्थित हैं| इनकी और भगवान् श्रीराम की जन्मपत्रिका में बहुत अधिक साम्य है|
हनूमान् जी की कुण्डली
जन्मपत्रिका में लग्न का प्रमुख स्थान होता है| श्री हनूमान् जी की जन्मपत्रिका में मकर लग्न है| मकर लग्न वाले सामान्यत: मजबूत कदकाठी वाले और बलिष्ठ होते हैं| इसका सर्वोत्तम उदाहरण हनूमान् जी हैं| इसके अतिरिक्त चन्द्र लग्न, सूर्य लग्न और जन्म लग्न तीनों में ही उच्च के ग्रह स्थित हैं| लग्नेश शनि उच्च का है और लग्न पर उच्च के गुरु की दृष्टि है| इसी कारण श्री हनूमान् जी ने त्याग और भक्ति का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया है|
लग्न स्थान में उच्च राशि का मंगल स्थित है| पराक्रम भाव में उच्च राशि का श्ाुक्र स्थित है| इन ग्रह स्थितियों के कारण ही महावीर हनूमान् महान् पराक्रमी और अतुलनीय शत्रुहन्ता हुए| सूर्य, रावण, मेघनाथ, भीम और इन्द्र जैसे महान् योद्धाओं के गर्व को भी उन्होंने अपने पराक्रम से चूर—चूर कर दिया था|
पंचमेश शुक्र एक शुभ ग्रह है और उच्चस्थ है, साथ ही विद्या का स्वामी कारक गुरु भी केन्द्र स्थान में चतुर्थेश मंगल (उच्च अध्ययन का कारक) से द्रष्ट होकर उच्च राशि में है| इन योगों के प्रभाव से ही श्री हनूमान् जी को भगवान् सूर्य जैसे गुरु मिले थे और इन्होंने सभी वेदों और शास्त्रों का सम्पूर्ण ज्ञान अल्प समय में ही प्राप्त कर लिया था|
माता—पिता से दूर रहने का योग
श्री हनूमान् जी की जन्मपत्रिका में मातृ स्थान में पाप ग्रह सूर्य स्थित है| पितृ स्थान में शनि—चन्द्र विषयोग बना रहे हैं और चतुर्थेश मंगल पर द्वादशेश गुरु (पृथक्ताकारी) की दृष्टि है| इन सभी ग्रह स्थितियों के कारण हनूमान् जी माता—पिता के साथ बहुत अधिक समय तक नहीं रहे| प्रारम्भ में वे शिक्षा—प्राप्ति के लिए भगवान सूर्य के पास रहे और फिर गुरुदेव सूर्य की आज्ञा से सुग्रीव के साथ उनके प्रमुख मंत्री बनकर रहे| तत्पश्चात् भगवान् श्रीराम के साथ सदा उनकी सेवा में लगे रहे| इस तरह वे अपने माता—पिता के साथ बहुत अधिक समय तक नहीं रह सके|
ब्रह्मचारी रहने के योग
भक्त हनूमान् आजीवन ब्रह्मचारी ही रहे थे| उन्होंने विवाह नहीं किया| इसके पीछे भी मूल कारण विभिन्न ग्रह स्थितियॉं ही हैं| सप्तम भाव जिससे कि विवाह का विचार किया जाता है| इस भाव में गुरु (द्वादशेश) स्थित है| गुरु जहॉं स्थित होता है, स्थान—हानि ही करता है| इसके अतिरिक्त विवाह भाव पर शनि और मंगल दो पाप ग्रहों की दृष्टि है| दोनों ही ग्रह विवाह—सुख का नाश करते हैं अथवा विलम्ब तो करते ही हैं| इन सबके अतिरिक्त मंगलीक योग भी बन रहा है| इन सभी ग्रह स्थितियों के कारण भक्त हनूमान् ने विवाह नहीं किया और ब्रह्मचारी रहते हुए अपना जीवन सेवा में ही समर्पित कर दिया|
पंचमहापुरुष योग
इनकी जन्मपत्रिका में तीन पंचमहापुरुष योग, ‘रुचक योग’, ‘हंस योग’ और ‘शश योग’ बन रहे हैं|
पर्वत योग
इस योग की गणना भी प्रमुख योगों में होती है| लग्नेश और द्वादशेश जब एक—दूसरे से केन्द्र स्थान में होते हैं, तो पर्वत योग का निर्माण होता है| पर्वत योग में जन्म लेने वाला जातक भाग्यशाली, यशस्वी, दानी, संप्रेषण कला में निपुण और शास्त्रज्ञ होता है| हनूमान् जी भी इन सभी गुणों से पूर्णत: परिपूर्ण थे| इसी कारण भगवान् श्रीराम ने इन्हें अपना दूत बनाकर रावण के दरबार में भेजा था|
गजकेसरी योग
चन्द्रमा से गुरु जब केन्द्र स्थान में होता है, तो गजकेसरी योग का निर्माण होता है| ऐसा जातक सिंह के समान ही बलशाली और महान व्यक्तित्व वाला होता है| साथ ही तेजस्वी, धनी, मेधावी, दबंग, राजप्रिय और सभा में चातुर्य से काम लेने वाला होता है|
काहल योग
गुरु और चतुर्थेश परस्पर केन्द्र में हो और लग्नेश भी बली हो, तब यह योग बनता है| इस योग में उत्पन्न जातक ओजस्वी, साहसी, बली, सेना या सहयोगियों से युक्त और प्रत्येक कार्य में दक्ष होता है| ऐसा जातक जहॉं भी जाता है, एक विशिष्ट छाप सभी पर छोड़ता है|
पाश योग
जब जन्मपत्रिका में सभी ग्रह किन्हीं पॉंच स्थानों में स्थित हों, तो पाश योग का निर्माण होता है| इसके प्रभाव से जातक धनवान्, लोकप्रिय और सुखी होता है, लेकिन साथ ही इसका एक नकारात्मक प्रभाव भी होता है कि ऐसे जातक के बंधन में पड़ने के या जेल जाने के योग बनते हैं| हनूमान् जी भी सदा अजेय रहे हैं, लेकिन इसके प्रभाव से वे भी एक बार ब्रह्मास्त्र में बँध गये थे|
मरुत्वेग योग
लग्नेश उच्च राशिस्थ ग्रह से देखा जाए, तो मरुत्वेग नाम का योग बनता है| इस योग के प्रभाव से जातक वायुवेग के समान शीघ्रगमन करने वाला और अत्यधिक कल्पनाशील होता है| पवनपुत्र हनूमान् जी भी पवन वेग से कहीं भी आने—जाने में समर्थ थे|
अमला योग
लग्न या चन्द्रमा से दशम भाव में जब कोई शुभ ग्रह स्थित हो, तो यह योग बनता है| इस योग में उत्पन्न जातक बहुत कीर्तिवान् होता है| उसके नहीं रहने पर भी लोग उसे याद करते हैं| अत: हनूमान् जी की जन्मपत्रिका में चन्द्रमा से दशम स्थान में उच्च राशि का गुरु स्थित है| हनूमान् जी की कीर्ति सूर्य चन्द्रमा के रहने तक अक्षुण्य रहेगी|